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Saturday, November 24, 2007

फर्जी मुठमेड़ में पुलिस ने बेकसूर को गोली मारी

दस्यु समस्या से प्रभावित सतना जिले के तराई क्षेत्र में नाकाम हो रही पुलिस ने अब डकैतों के नाम पर बेकसूरों को मुठभेड़ में मारने का काम शुरू कर दिया है. कुछ ऐसा ही वाकया २३ नवंबर को सतना पुलिस ने कर दिखाया. घर से पकड़ कर युवक को गोली मारने के बाद यह प्रचारित किया गया कि मुठभेड़ के दौरान युवक की मौत हुई है और यह युवक द्स्यु गिरोह का सदस्य है लेकिन मामला तूल पकड़ने पर बाद में अज्ञात पुलिस वालों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया. अब सवाल यह उठता है कि यदि आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की बात होती तो मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिस कर्मियों के नाम मिल जाते लेकिन अब जब हत्या का मामला है तो पुलिस कर्मी अज्ञात हो गये.
पुलिस के लिये चुनौती बन चुके दस्यु सरगना गौरी यादव एवं मुन्नीलाल यादव गिरोह का बाल बांका नहीं कर पाये पुलिस वालों ने एक बेकसूर ग्रामीण का इनकाउंटर कर दिया. नयागांव थाना इलाके के उदयपुर गांव से सटे जंगल में पुलिस ने इस घटना को मुठभेड़ की आड़ में अंजाम दिया . वाहवाही लूटने के लिये बेकसूर गणेश साहू को मौत के घाट उतारने के इस सनसनीखेज मामले में मृतक के पिता द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद तीन अज्ञात पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया. बताया गया है कि नयागांव पुलिस को सुबह मुखबिर से यह सूचना मिली थी कि गौरी यादव व खड़ग सिंह दस्यु गिरोहउदयपुर गांव के पास डेरा डाले है. सूचना पर पुलिस ने घेराबंदी की लेकिन डकैत चकमा दे कर निकल गए. तब खिसियाए पुलिसवाले अपनी नाक ऊंची बनाए रखने के लिये खेत में काम कर रहे पालदेव गांव के युवक गणेश साहू का इनकाउंटर कर दिया और प्रचारित कर दिया गया कि एक दस्यु मुठभेड़ में ढेर हो गया. लेकिन आंखो के सामने हुए इस घटनाक्रम को उसके पिता ने जब बेखौफ होकर सबके सामने उजागर किया तो पुलिस वालों का भांडा फूटा और वह अब बचाव की मुद्रा में है. लेकिन उस निर्दोष गणेश जो अब इस दुनिया में नहीं उसके साथ क्या न्याय हो पाएगा?
मेरी आंखों के सामने गोली मारी : मृतक गणेश साहू के पिता बोदा साहू का कहना है कि तीन पुलिस वाले चितकबरी वर्दी में घर आए. पुत्र गणेश को पकड़ा . बिना किसी प्रकार की पूछताछ के उसके सीने में गोली डाल दी. जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.

दोषी पुलिसकर्मी जेल भेजे जाएंगेःआईजी
आईजी अशोक सोनी ने कहा है कि मृतक सीधा साधा लड़का था. उसे किसकी गोली लगी यह नहीं मालूम. मृतक के पिता का कहना है कि उसके पुत्र को तीन पुलिस वालों ने गोली मारी है. यदि पुलिस वाले दोषी पाए गए तो उन्हे किसी भी कीमत में छोड़ा नहीं जाएगा. उन्हे सलाखों के पीछे भेजा जाएगा.

मृतक निर्दोष थाः एसपी
पुलिस अधीक्षक कमल सिंह राठौर ने कहा है कि घटना की मजिस्ट्रीयल जांच कराई जाएगी. मृतक के पास किसी प्रकार का हथियार नहीं होना यह सिद्ध करता है कि वह निर्दोष था. उसके खिलाफ कोई अपराध हमारे यहां दर्ज नहीं है. दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा.

प्रमोशन की साजिश?
तराई व दस्यु प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों की माने तो उनका कहना है यहां ऑउट ऑफ टर्न प्रमोशन का धंधा चल रहा है. फर्जी मुठभेड़ दिखा कर निर्दोषों को मारा जा रहा है. डकैत घूम रहे है. हमेशा मुठभेड़ के बाद बताया जाता है सैकड़ों राउण्ड फायरिंग हुई लेकिन क्यों कोई डकैत नहीं मरता गिनती की फायरिंग को निर्दोष धराशायी कर दिये जाते है. इनकी माने तो अब तक यहां जितने डकैत मरे हैं उनमें 75 फीसदी की मौत फर्जी मुठभेड़ में हुई है. वे या तो सरेडर कर रहे थे या फिर किसी और द्वारा मारे गए थे या आपसी गैंग वार में मरे थे जिसका श्रेय बाद में पुलिस ने लिया.

Tuesday, November 6, 2007

प्रोटोकॉल की ऐसी की तैसी

विगत दिवस मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक निजी कार्यक्रम में सतना आना हुआ. उनके आने के पहले ही कुछ भाजपा नेता अपने जिलाध्यक्ष के साथ स्वागत व अपने चेहरे दिखाने तो कुछ मीडिया में अपनी फोटो छपवाने के लिये हवाई पट्टी पहुंचे. चूंकि व्हीव्हीआईपी के आगमन का मामला था सो संभागायुक्त, आईजी सहित जिले के तमाम आला अधिकारी भी पहुंचे. सुरक्षा के मद्देनजर हवाई पट्टी में लोगों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया. लेकिन कुछ भाजपा के नेताओं को यह नागवार गुजरा और उन्होंने वहां ऐसा नंगापन दिखाया कि सब को शर्म आ जाये. तमाम अधिकारियों को न केवल लताड़ा बल्कि अपशब्द भी कहे. गालियों की बौछार भी की. अब देखा जाय तो अधिकारियों का दोष इतना था कि उन्होंने सुरक्षा को प्राथमिकता दी. प्रश्न यहां यह उठता है कि इन भाजपाइयों को स्वागत का इतना ही शौक था तो उन्होंने सीएम का कार्यक्रम अपने कार्यालय में क्यों नहीं रखा? क्या पार्टी का मुख्यमंत्री हो जाने पर उन्हें प्रशासन व पुलिस को गाली देने व अपमानित करने का अधिकार मिल जाता है? यदि इस दौरान कोई हादसा हो जाता तो इसका जिम्मेदार कौन होता?
लेकिन धन्य है भाजपा के कार्यकर्ता व पदाधिकारी जिन्हे नियम कायदे का पालन करवाने वालों को गाली देने में मजा आता है.

Thursday, November 1, 2007

सरकारी गलती से ११ वर्षीय छात्रा के विरुद्ध वारंट

सरकारी कार्यशैली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ग्यारह वर्षीय मासूम बालिका बगैर अपराध के वारंटी बन गई और विभागीय अधिकारी अब कुछ बोलने को तैयार नहीं है.
यह मामला श्रम विभाग सतना के एक निरीक्षक की घोर लापरवाही का नतीजा है जिसके चलते एक ११ वर्षीय बालिका के विरुद्ध न केवल प्रकरण दर्ज कर दिया गया और उसके खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया गया. नतीजतन बालिका की जमानत करानी पड़ी. सरकारी तौर पर ऑन रिकार्ड हुई गड़बड़ी के चलते बालिका इस कदर डरी सहमी है कि उसे हर पल पुलिस का खौफ है जिसका असर उसकी पढ़ाई पर भी पड़ रहा हैं.
मामले के अनुसार सतना के चौक बाजार में साहेब जी गिफ्ट सेंटर के संचालक जगदीश गिरधानी की ११ वर्षीय पुत्री सुरभि गिरधानी के विरुद्ध श्रम विभाग के एक निरीक्षक की रिपोर्ट पर दुकान-स्थापना अधिनियम १९५८ के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है. अनुविभागीय दण्डाधिकारी रघुराज नगर के न्यायालय से सुरभि के विरुद्ध जारी जमानती वारंट की तामीली कराने जब पुलिस गिरधानी की दुकान पर पहुंची तो गिरधानी परिवार के होश उड़ गए. वारंट के साथ पहुंची पुलिस सुरभि को गिरफ्तार करने पर अड़ी थी लेकिन श्री गिरधानी के आरजू मिन्नत करने पर पुलिस कर्मियों ने भी मामला एक मासूम छात्रा के होने के कारण सहृदयता दिखाई और ५ हजार के मुचलके पर छोड़ दिया. अब सुरभि को १५ नवंबर को एसडीएम न्यायालय में पेश होने का नोटिस दिया गया है.

जिम्मेदार कौन ?
सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली इस ग्यारह वर्षीय नन्ही सुरभि को दुकान स्थापना अधिनियम के तहत आरोपी बनाने के पीछे श्रम विभाग के बहादुर निरीक्षक की क्या मंशा थी और उसके पास क्या आधार था यह तो वे ही जाने लेकिन सुरभि की मनोदशा के लिये के लिये आखिर कौन जिम्मेदार है. यदि देखा जाय तो श्री गिरधानी के मुताबिक दुकान का पंजीयन उनकी पत्नी श्रीमती वर्षा गिरधानी के नाम है. ऐसे में दुकान स्थापना अधिनियम को लेकर कोई मामला बनता भी था तो वह श्रीमती खिलवानी के नाम पर बनता न कि उनके खानदान पर. लेकिन श्रम विभाग के निरीक्षक ने तो लड़की के ही खिलाफ मामला दर्ज कर डाला. यदि यह लापरवाही है तो फिर इस लापरवाही की सजा कौन भुगतेगा.
सुरभि की मनोदशा पर असर
दुकान-दुकान अवैध वसूली करते घूमते श्रम विभाग के इन निरीक्षक की करतूत के चलते इस मासूम के खिलाफ वारंट तो जारी हुआ ही उसकी मनोदशा पर भी काफी प्रभाव पड़ा है. जिस दिन से पुलिस उसे पकड़ने उसे उसके घर आयी है उस दिन से वह डरी सहमी रहने लगी है. अक्सर वह गुमसुम रहती है तथा उसने अब बाहर खेलना कूदना भी बंद कर दिया है. पढ़ाई में अव्वल रहने वाली सुरभि का मन अब पढ़ाई में भी नहीं लगता है. उसे हर पल अब पुलिस का भय सताता रहता है और अब तो वह यह भी कहने लगी है कि अंकल पुलिस वाले फिल्मों की तरह ही मारते हैं क्या? पापा मैं थाने नहीं जाउंगी.


निरीक्षक के खिलाफ होगी कार्रवाई
उधर मासूम छात्रा के खिलाफ वारंट जारी होने के मामले में एसडीएम रघुराजनगर आर.के.चौधरी कहते हैं कि वारंट जारी करने के मामले में कोई त्रुटि हुई है तो अभियोग पत्र पेश करने वाले निरीक्षक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. अभियोग पत्र में कहीं उम्र का जिक्र नहीं है. यदि उम्र दर्शायी गई होती तो वारंट जारी नहीं होता. इस मामले का परीक्षण कर त्वरित और उचित कार्रवाई की जाएगी. सुरभि के साथ न्याय होगा.

Friday, October 12, 2007

कड़े सुरक्षा घेरे में आजमगढ़ ले जाया गया अबू सलेम

मुंबई पुलिस के कड़े सुरक्षा घेरे में अण्डर वर्ल्ड डॉन अबू सलेम को उसके गृह ग्राम आजमगढ़ ले जाया गया. उसे वहां उसकी मां के अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया है. इसकी जानकारी काफी गोपनीय रखी गई है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस ट्रेन से उसे ले जाया गया है उसके यात्रियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी गई . उसे पांच दिन बाद महाराष्ट्र ले जाया जाएगा.
सतना रेलवे स्टेशन में आज कड़े सुरक्षा इंतजाम किये गये थे लेकिन कारण किसी को पता नहीं था. डाउन महानगरी एक्सप्रेस रात ८ बजकर दस मिनट पर जेसे ही सतना पहुंची उसकी जनरल बोगी को स्थानीय जीआरपी और आरपीएफ के जवानों ने घेर लिया . आज ट्रेन अपने नियत प्लेटफार्म पर न आकर सबसे किनारे वाले प्लेटफार्म पर लाई गई. ट्रेन जब रुकी तो उस बोगी के सभी खिड़की दरवाजे बंद थे. तभी अचानक एक खिड़की खुली और सलेम ने चाय वाले वेंडर को पुकारा तभी एक झलक मीडिया को मिल पाई. हालांकि मीडिया से अबू सलेम को दूर रखने पूरा इंतजाम किया गया था. इस बोगी को बर्थ के दोनो ओर रस्सियों की जाली बना दी गई थी और एक दर्जन जवान वहां आधुनिक शस्त्रों के साथ तैनात थे. खबर है कि इलाहाबाद या बनारस से ट्रेन चेंज की जाएगी . तथा यह भी पता चला है कि आजमगढ़ से कुछ स्टेशन पहले उसे उतार कर विशेष वाहन से अंतिम संस्कार स्थल तक ले जाया जाएगा.
मोनिका के नाम पर ठिठका सलेम
कुछ ही पलो का जब मौका मिला तब सलेम से जब मोनिका के बारे में बात की गई तो वह ठिठका और घूरते हुए संवाददाता की आंखों मे आंखे डाल कर फिर सिर झुका लिया तभी अंदर से खिड़की बंद कर दी गई . बोगी के अंदर किसी को प्रवेश नहीं करने दिया गया . स्थानीय जीआरपी को भी परमिशन नहीं दी गई. सुरक्षा के लिये कुछ घंटे पहले ही आरपीएफ को सूचना दी गई थी. इसके अलावा ट्रेन की अन्य बोगियों में भी सादी वर्दी में जवान तैनात थे.

Tuesday, October 9, 2007

देहव्यापार का ऑन लाइन बढ़ता कारोबार

मध्यप्रदेश के व्यापारिक शहरों में बढ़ रहे देह व्यापार के कारोबार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सतना जैसे मझोले शहर भी ऑन लाइन देह व्यापार के कारोबारियों के निशाने पर आ गए है. बकायदा वेब पेज बना कर उसमें मोबाइल नम्बर देकर चाही गई जगह पर देह उपलब्ध करने वालों ने खुलेआम कामन चैट रूम में जाकर अपना प्रचार भी कर रहे है.
ऐसा ही एक मामला विगत दिवस जियोसिटी के एक वेबपेज में खुली सेक्स दुकान से सामने आया है.
यह वेबसाइट नियत राशि अदा करने पर चाही गई जगह पर कॉल गर्ल या कॉल ब्वाय भेजने की व्यवस्था कराती है. जो शहर इस साइट में कॉल गर्ल भेजने के लिये बताए गए हैं उनमें प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित इन्दौर जबलपुर, सतना , ग्वालियर और इटारसी हैं. यह कारोबार किस सीमा तक पहुंच गया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस वेबपेज में संपर्क करने के लिये बकायदा दो मोबाइल नम्बर दिये हैं.
आज के समय में इन्टरनेट देह के व्यापारियों के लिये सबसे सुरक्षित स्थान माना जाने लगा है और तेजी से फल फूल रहा है. इसकी सहायता से लोग बेखौफ होकर देह का कारोबार कर रहे हैं. इसी कारोबार का नमूना है जियोसिटी में लव नाम से बना वेबपेज. इसमें शुरुआत में कॉल गर्ल और कॉल ब्वाय की दुनिया में आने का स्वागत किया गया है. फिर आगे देश के किसी भी शहर के लिये निर्धारित राशि अदा करके सुविधा लेने की बात कही गई है. संपर्क के लिये बुकिंग का समय सुबह 10 बजे से दोपहर बाद 3 बजे तक का निर्धारित किया गया है तथा रविवार का दिन अवकाश घोषित है. यहां कॉल गर्ल की दर तीन हजार से 25 हजार तथा कॉल ब्वाय की दर 25 से 80 हजार तक बताई गई है. इसके बाद नीचे उन शहरों की सूची दी गई है जहां देह की सुविधा उपलब्ध करा सकते है. इसमें देश के सभी प्रमुख नगर भी शामिल है.
वहीं दूसरी ओर कॉल ब्वाय के लिये विज्ञापन भी दिया गया है . साथ ही मोनिका नामक छद्म आईडी द्वारा याहू मैसेन्जर के कामन रूम में बकायदे इस साइट का प्रचार किया जा रहा है.
अंत में यह बताया गया है कि इनकी किसी भी सेवा का लाभ लेने के लिये 50 फीसदी राशि अग्रिम तौर पर उनके बैंक अकाउंट में जमा करना पड़ेगा.

Tuesday, October 2, 2007

चिट्ठा जगत और नारद को क्या हो गया?

काफी देर से इन्हें खोलने का प्रयास कर रहा लेकिन सफल नहीं हो रहा? क्या मेरे कम्प्यूटर में कोई खराबी है या इन्हें किसी की नजर लग गई है?

Wednesday, September 26, 2007

सर्वश्रेष्ठ असफल क्यों?

क्या आपने कभी सोचा है कि अस्पताल, स्कूल या अन्य सरकारी संस्थाएं जहां सरकार कई चरणों की भर्ती प्रक्रिया के बाद बेहतरीन अभ्यर्थियों की भर्ती करती है फिर भी उनसे अपेक्षित सफलता क्यों नहीं मिल पाती है? स्कूल का मामला लें उन शिक्षकों की भर्ती होती है जिनकी योग्यता सर्वश्रेष्ठ होती है, वे प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बेहतरीन अंक लाते हैं , उनका साक्षात्कार भी बेहतर होता है , भर्ती उपरांत इन्हें अच्छा खासा वेतन भी मिलता है लेकिन जब ये शिक्षक बन कर सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं तो उन स्कूलों का परिणाम काफी कमजोर होता है. ठीक इसके दूसरी ओर निजी स्कूलों में कम तनख्वाह में अपेक्षाकृत कम योग्यता वाले शिक्षक शैक्षणिक दायित्व निभाते हैं इन्हें कम वेतन भी मिलता है लेकिन इन्हीं स्कूलों का परिणाम शानदार होता है. दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में बेहतरीन चिकित्सक रखे जाते हैं इन्हें भी अच्छे वेतन के साथ अच्छी खासी सरकारी सुविधाएं व अन्य फंड मिलते हैं लेकिन … इसके विपरीत निजी अस्पतालों में वे चिकित्सक जो सरकारी चयन में असफल रह जाते हैं उनको रखा जाता है लेकिन ज्यादातर मरीज सरकारी अस्पताल से यहां रेफर किये जाते हैं या फिर सरकारी की अपेक्षा निजी अस्पतालों में जाना पसंद करते हैं आखिर ऐसा क्यों … क्या यह माना जाए कि अब सर्वश्रेष्ठ असफल हो रहे हैं या सर्वश्रेष्ठता के मायने बदल गए हैं. जिस दिन इस पर विचार कर इस आधार पर योजनाएं तैयार होंगी तब शायद स्वास्थ्य व शिक्षा के बेहतर परिणाम मिलने लगेंगे.
वहीं इसका दूसरा पहलू और देखें - हम और आप सरकारी अस्पतालों में जाते हैं जहां पाते हैं गंदगी करने में कोई संकोच नहीं करते लेकिन निजी अस्पतालों में जाते ही तमाम निर्देशों का पालन करने लगते हैं. कचरा डस्टबीन में ही फेंकते हैं थूकने के लिए बाहर जाते हैं आदि… तो क्या हम सरकारी व्यवस्थाओं के सहयोगी नहीं हैं… इसमें भी व्यापक सुधार की आवश्यकता हैं वरना हम कह सकते हैं की निजीकरण ही ज्यादा बेहतर विकल्प है सफलता के लिये …

Friday, September 7, 2007

चैलेन्जः हिम्मत है तो एक फोल्डर बना कर दिखाएं


महोदय

आप सब को नमस्कार. मैं अपने कम्प्यूटर में एक फोल्डर बनाने की कोशिश करते-करते थक गया लेकिन con नाम से फोल्डर नहीं बना सका. अगर आप में दम है तो con नाम से फोल्डर बना कर दिखाएं यदि सफलता मिले तो उसके बनाने का तरीका बताएं और हो सके तो यह भी बताएं कि आखिर con नाम से फोल्डर साधारण तौर पर क्यों नहीं बनाया जा सकता है.

Tuesday, September 4, 2007

हीरा खदानों में अस्मत लुटाने को मजबूर अबला

चारों ओर हल्ला है कि महिलाओं की तस्वीर बदल रही है. लेकिन मेरे नजरिये से ऐसा कहने वाले तस्वीर का सिर्फ एक ही पहलू देख रहे हैं. यह सही है महिलाएं आज हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं कई मामलों में पुरुषों को भी पीछे छोड़ रही हैं लेकिन ग्रामीण भारत की स्थिति आज भी जस की तस है. यह अलग बात है कि कुछ एक महिलाएं अपवाद स्वरूप आगे आ रही हैं लेकिन संपूर्ण स्थितियों का यदि आकलन किया जाए तो आज भी हम उन्हीं पुरातन मान्यताओं के दायरे में उन्हें कैद पाते हैं. आज भी गांवों में महिलाएं शोषण और उत्पीड़न का शिकार हैं.
और तो और कई जगह तो महिलाओं की यह स्थिति है कि उन्हें उस व्यवस्था से गुजरना पड़ता है जिन्हें आज का समाज और कानून कहीं से मान्यता नहीं देता है.
भारत की सबसे प्रसिद्ध पन्ना की हीरा खदानों में महिला उत्पीड़न का नजारा सामान्यतौर पर देखने को मिल सकता है कुछ यही हालात चित्रकूट के तराई अंचल में चलने वाली खदानों के भी हैं. यहां की उथली हीरा खदानों में हजारों की संख्या में महिलाएं काम करती है. इन हीरा खदानों में शुरुआती चरण में जब खुदाई होती है और कठोर पत्थर निकलता है तब तक तो हालात सामान्य रहते हैं लेकिन जैसे ही खदान में भुरभुरा पर मिलता है तो महिलाओं की इज्जत का काला अध्याय यहां के स्थानीय ठेकेदार लिखना शुरू कर देते हैं. दरअसल भुरभुरी मिट्टी को छानने धोने की प्रक्रिया की जाती है क्योंकि इसी में हीरा मिलने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है. रोज शाम को जब मजदूर काम करके वापस जाने लगते हैं तो शुरू होता है इनकी तलाशी का दौर . इस दौरान बाकायदे सबको निर्वस्त्र करके तलाशी ली जाती है. चाहे वह पुरुष हो या महिला . और तलाशी लेने वाले ठेकेदार के आदमी होते हैं. महिला की तलाशी भी वही लेते है. अब कल्पना कीजीए कि इस दौरान महिला को किस स्थिति का सामना करना पड़ता होगा. कई बार तो तलाशी हैवानियत की हद तक पहुंच जाती है और तलाशी के नाम पर गुप्तांगों को भी नहीं बख्शा जाता. लेकिन अब यहां काम करने वाली महिलाएं इन सबकी आदी हो गई है. यहां शासन की रोजगार दिलाने की तमाम योजनाएं चलने के बाद भी वे इन तक नहीं पहुंच पा रही है और महिलाओं को इस प्रथा से मुक्ति नहीं मिल पा रही है. यहां काम करने वाला तबका ज्यादा तर वनवासी व आदिवासी है. जिसे शासन व उसकी योजनाओं का कोई ज्ञान नहीं है. कुछ यही हाल चित्रकूट के तराई क्षेत्र का है. यहां हर दिन महिलाओं की अस्मत से खेला जाता है. यहां काम करने वाली महिलाएं ज्यादातर ठेकेदार और उनके गुर्गों की हवस पूर्ति का साधन बन चुकी है. दरअसल यह क्षेत्र दस्यु प्रभावित है. यहां काम करने से सरकारी अमला डरता है और यदाकदा कोई सूचना मिलती भी है तो उसके निराकरण के लिये जाने से कतराता है. इसलिये यहां दैहिक शोषण जीवनशैली बन चुका है. और महिलाएं भी इसे अपने व्यवहार में शामिल कर चुकी हैं. हालात यहां इतने बदतर हैं कि इनके बच्चे बाहर खेल रहे होते हैं और अंदर झोपड़े में कोई इनकी अस्मत से खेल रहा होता है.
... अब इन परिस्थितियों को देख कर कौन कहेगा कि आज महिलाओं की तस्वीर बदल रही है. हां यह जरूर है तस्वीर का एक पहलू बदल रहा है .

भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार न्यायाधीश के सामने


देश में यदि भ्रष्टाचार दूर करने की मुहिम शुरू हो तो उसमें सबसे बड़ी बाधा न्यायालय ही होगा. हमेशा अखबारों और न्यूज चैनलों में यह खबर प्रमुखता से दी जाती है कि विश्व के सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में भारत फलां नम्बर पर... फिर बताया जाता है कि भारत में सर्वाधिक भ्रष्ट नेता हैं फिर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी हैं. लेकिन मेरी नजर में सबसे ज्यादा भ्रष्ट लोग न्यायालय के अंदर ही बैठे है. किसी भी लोवर कोर्ट में चले जाइए ... वहां बड़ी सहजता से खुले आम घूस लेते लोग आपको मिल जाएंगे. वो भी जज के सामने , लेकिन मजाल क्या किसी की कोई घूस देने से इंकार कर दे.अमूमन वादी - प्रतिवादी किसी को भी कोर्ट में अपनी पेशी बढ़वानी है या कोई दस्तावेज सम्मिलित करवाना है तो वहां कोर्ट के अंदर ही आपको वहां बैठे बाबू को पैसे देने ही होंगे. अपको किसी दस्तावेज की नकल लेना है तो पैसे देने ही होंगे. कोर्ट के रिकार्ड रूम से कोई दस्तावेज लेना है तो पैसे देने होंगे, कोई आवेदन लगाना हो तो पैसे लगेंगे. और यह सब जज के सामने ही खुलेआम होता है. क्या जज की निगाहें यहां नहीं जाती ....लेकिन मामला न्यायपालिका का है तो बोले कौन . फिर हम सुविधाभोगी हो ही चुके है, हमें आदत पड़ गई है गलत तरीके का पालन करने की तो फिर यहां सब जायज है. लेकिन मेरी नजर में भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है तो वह है न्यायपालिका में वह भी जज के सामने लेकिन कभी यह मामला न तो लिखा गया न ही दिखाया गया......है कोई माई का लाल जो इस पर रोक लगाने की बात कर सके ...... लेकिन मुझमें तो नहीं है यह हिम्मत क्योंकि शायद मैं अकेला ही खड़ा नजर आउंगा .... और अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता.

Sunday, September 2, 2007

योग से डरे क्रूसेड के धर्मयोद्धा

भारत को अंग्रेजों ने भले ही सन् १९४७ में आजाद कर दिया हो लेकिन आज भी वे भारत व भारत वासियों को गुलामी की मानसिकता से ही देखते हैं. यही कारण है कि वे हमारे विकास को पचा नहीं पाते चाहे वह विकास आर्थिक , सामाजिक , वैज्ञानिक ,सांस्कृतिक या फिर धार्मिक हो.
इस बार इनका भय हमारी प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धि योग से है. हमारे ऋषि मुनियों ने मानव शरीर को स्वस्थ व स्फूर्ति से भरा बनाए रखने के लिये शरीर के लिये कुछ व्यायाम के तरीके खोजे . जिसके लाभदायी परिणाम का नतीजा है कि यह भारतीय योग आज पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहा है. पूरा विश्व इसकी पनाह में आ रहा है. इस बढ़ती प्रसिद्धि से मिशनरी को अपने धर्म पर खतरा मंडराता दिखाई देने लगा है. या फिर वे आज भी भारत के सांस्कृतिक तौर पर अपना गुलाम मानते हैं.
विगत दिवस इंग्लैंड के बैपटिस्ट चर्च और सेट जेम्स चर्च के पादरियों द्वारा चर्च में चल रहे योग अभ्यास केन्द्रों पर रोक लगाते हुए स्कूलों में भी योग सिखाने पर पाबंदी लगाने की घटना उनकी ओछी और कमजोर मानसिकता को ही दर्शाती है. यह कहना कि ईसाइयत के अनुसार योग का दर्शनशास्त्र झूठा है तथा योग गैर - धार्मिक कृत्य है यह ईसाईत की कौन सी सोच और परिभाषा है ... यह मेरे समझ के परे है. शायद ईसाईत इतनी कमजोर है कि उसे योग से अपनी चूले हिलती नजर आ रही हैं तो फिर इस धर्म के बारे में कुछ कहना बेमानी है. बहरहाल मेरे नजरिये से योग सिर्फ एक शारीरिक व्यायाम का कौशल है जो शरीर को निरोगी रखता है.
वहीं ईसाईत की बात करे तो उनके हिन्दुस्तान में जो कृत्य है वे वास्तव में उचित नहीं कहे जा सकते हैं. कई ऐसे मामले है जो सीधे धर्मान्तरण से जुड़े हैं. फिर भी योग पर प्रतिबंध यह बताता है कि क्रूसेड के धर्मयोद्धा कितने कमजोर हैं .

Tuesday, August 28, 2007

60 मिनट के विश्व रिकार्ड का दावा

जलयोग आचार्य लक्ष्मी यादव ने पानी में शरीर के किसी अंग को हिलाए बगैर सीधे 90 डिग्री के कोण में बिना हिले डुले विश्व में सर्वाधिक समय तक खड़े रहने का दावा किया है. विस्तृत देखें http://www.jalyog.blogspot.com/

Friday, August 3, 2007

जिस्मः एडल्ट न्यूज शो या कुछ और ...

अभी दो दिनों से टीवी जगत के एक बहुत बड़े खुलासे का दावा करते हुए IBN7 ने एक एडल्ट शो चलाया. सब कुछ मिलाकर उसका लब्बो-लुआब यह था कि आज कल पत्नियों की अदला-बदली मध्यम वर्ग में की जा रही है. ... अब जनाब IBN7 ने इसका ऐसा प्रस्तुतिकरण किया कि यह समझ में ही नहीं आया कि वह कहना क्या चाह रहा है या दिखाना क्या चाह रहा है. एक जगह एंकर बोलता है १० शहरों में हमारे संवाददाताओं का सर्वे है तो उसी समय नीचे पट्टी चल रही होती है अनगिनत जोड़े शामिल हैं- यदि सर्वे है तो आंकड़ा दें चाहे वह औसत प्रतिशत में हो. इसके अलावा आपने इसे एडल्ट शो घोषित करके कौन सी बहस छेड़ना चाहते है. बहस का मुद्दा तो आज यह है कि खबरों के प्रस्तुतिकरण का यह कौन सा तरीका है. इससे पहले भी अन्य चैनलों ने भी कई मुद्दे इस तरीके के उठाएं है लेकिन ऐसा प्रस्तुतिकरण नहीं दिखा. टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पत्रकारिता का यह पतन बेहतर संकेत नहीं है. कुछ दिन बाद नैकेड न्यूज फार्म में भी बहस के नाम पर कुछ दिखा दें तो अब इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है. यदि वह बहस समाजशास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों में छेड़ना चाहते हैं तो मैं चाहूंगा कि बहस यहां भी छिड़े कि न्यूज चैनलों में आगे निकलने की ये जो होड़ और जो तरीका चला है क्या वह सही है?

Wednesday, August 1, 2007

पीपल के पत्ते से मोबाइल करें रीचार्ज !

इन दिनों सतना जिले में एक अनोखा प्रयोग छाया हुआ है. जिसे देखो वही अपने मोबाइल की बैटरी को पीपल के पत्ते से चार्ज करने में लगे है. और तो और इस प्रयोग के नतीजे भी 70 फीसदी तक सही साबित हो रहे है.
पीपल के पत्ते से मोबाइल की बैटरी रीचार्ज करने का तरीका बेहद आसान है. इसके लिये एक ताजा हरा पीपल का पत्ता लीजीए. दूसरी ओर अपने मोबाईल के पिछले हिस्से को खोलकर बैटरी बाहर निकाल लें. फिर पीपल के पत्ते का अगला सिरा (वह नहीं जिससे वह डाल से जुड़ता है) मोबाइल को बैटरी से जोड़ने वाले तीन पिन प्वाइंटों में से बीच वाले में छुला दे फिर पत्ते को लगाए हुए ही बैटरी को कनेक्ट कर दें. इस दौरान जो चक्र बनेगा उसमें मोबाइल और बैटरी तीन जोड़ने वाले पिन प्वाइंट आपस में जुडे तो रहेंगे लेकिन बीच वाले में पीपल के पत्ते की नोक भी बीच में होगी. फिर मोबाइल चालू करने पर आप पाएंगे कि मोबाइल की बैटरी कुछ ही पलों में चार्ज हो चुकी होगी या होने लगी होगी.
तो जनाब जब आप जंगल या ऐसी जगह है जहां बिजली न हो या चार्जर न हो तो बस एक अदद पीपल का पत्ता ढूढ़िये . आप का मोबाइल चार्ज हो जाएगा.
इस प्रयोग की शुरुआत जिले में म.प्र. -उ.प्र. सीमा के बीच स्थित चित्रकूट क्षेत्र से हुई. हालांकि अभी इस प्रयोग वनस्पति शास्त्री और रसायन शास्त्री दोनों हैरान है लेकिन इससे इनकार भी नहीं कर रहे. उनका मानना है कि यह वैज्ञानिक खोज का विषय है.
अब आप भी यह प्रयोग करें. मेरी कामना है आपको कामयाबी मिलेगी.

Monday, July 30, 2007

'आह' के लिये नहीं बारात लेकर आए थे राजकपूर

'आह' फिल्म में तांगे की सवारी कर सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता स्व. राजकपूर को सतना से रीवा जाते बहुत लोगों ने देखा होगा पर यह जानने वाले कम लोग ही होंगे कि राजकपूर आह फिल्म के लिये कभी सतना आए ही नहीं . वे आए जरूर थे लेकिन शूटिंग के लिये नहीं बल्कि अपनी शादी में बारात लेकर. इसका गवाह स्वयं वह तांगे वाला मधुसूदन लोनिया है जिसने 69 साल पहले उन्हें सतना से रीवा तक पहुंचाया था.
राजकपूर को तांगे में बैठाकर ले जाने वाले ९७ वर्षीय मधुसूजन तब की (सन् 1938) की बातें याद करके रोमांचित हो उठते हैं. वे बताते हैं कि उस दिन सतना रेलवे स्टेशन में काफी रंगीनियत थी. हर तांगे वाले की निगाहें स्टेशन की ओर लगीं थी . जैसे ही भाप का गुबार छोड़ते हुए ट्रेन रुकी और उससे मशहूर फिल्मी हस्तियां उतरीं तो हर तांगे वाला उन्हें अपने तांगें में बैठाने को लालायित था. मधुसूदन ने बताया कि यह मेरा सौभाग्य ही रहा कि राजकपूर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद सीधे मेरे तांगे तक आए .वहीं से उन्होंने वैजयंतीमाला और जीवन को भी अपने पास बुला लिया.
अचानक पहलू बदलते हुए मधुसूदन ने बताया कि पहले तो तांगे ही आवागमन का सहारा थे . हर दिशा में हर दूरी के लिये तांगें ही साधन थे लेकिन अब तो भूखों मरने की नौबत आ गई है. फिर उसने तुरंत कहा उस दिन सुबह के 8 बजे के लगभग ट्रेन पहुंची थी. उसमें से उतरने वाली मशहूर हस्तियों में राजकपूर सहित वैजयंतीमाला, दिलीप कुमार, ओम प्रकाश, जीवन, कुक्कू, सुरैया को मिला कर कुल 25 से 30 लोग रहे. सभी के सामान तांगों में रखने के बाद बिना देर किये पूरा काफिला रीवा की ओर चल पड़ा. रास्ते भर बाराती चुहलबाजी के साथ फिल्मी दुनिया की बाते सुन का रोमांचित होता मधुसूदन 12 बजे के लगभग 52 किलोमीटर की दूरी तय करके सतना रीवा पहुंचा . उसकी माने तो उस दिन रीवा के उपरहटी में उत्सव का माहौल था और मछरिया दरवाजा के पास बारात रुकी थी. किसके यहां यह तो वह नहीं बता पाया लेकिन यह जरूर कहा कि किसी पुलिस अफसर के यहां थी शादी. उत्साह के साथ उसने यह जरूर बताया कि किराए के 4 रुपये 50 पैसे होते थे लेकिन राजकपूर जी ने 10 रुपए दिये थे. मधुसूदन ने वह तांगा आज भी संभाल कर रखा हुआ है.

Wednesday, July 25, 2007

मीडिया और रामू का गधा

रामू धोबी का एक गधा था. कमजोर था सो उससे भार ढोया न होता था. दिनभर रेंकता रहता था. एक दिन उसका रेंकना कुछ अजीब सा हुआ सो लोगों ने कहा यह अंग्रेजी में रेंक रहा है. फिर क्या था बात फैली और मीडिया को भी खबर लगी. तभी किसी ने कहा लगता है कॉलेज वाले शर्मा जी मरे हैं उन्ही की आत्मा आ गई है क्योंकि वही दिनभर अंग्रेजी में गिटरपिटर करते थे.
बस आव देखा न ताव एक मीडिया वाले ने गधे सहित रामू को बैठा लिया स्टूडियो में .कुछ देर बाद गधा व मीडिया एक्सपर्ट भी आन लाइन जुड़ गए.
एंकर ने कहा देखिय यह गधा है और विशुद्ध तौर पर गधा है. ये तो इसकी किसी पीढ़ी ने स्कूल का मुंह नहीं देखा. इसके और इसके मालिक के भी बाप दादा नहीं जानते कि अंग्रेजी क्या है. लेकिन यह अंग्रेजी में रेंक रहा है. इ सके मोहल्ले वालों की माने तो यह आज से पहले ऐसे कभी नहीं रेंका. हमारे साथ एक दर्शक जुड़ रहे हैं कलुआप्रसाद . आइए देखते हैं क्या कहते हैं कलुआ जी.
एंकरः हां कलुआ जी क्या कहना चाहते हैं आप.
कलुआः वो क्या है कि इस गधे के बारे में देखने पर तो नहीं लगता हे कि ये अंग्रेजी बोलता होगा लेकिन
एंकरः हमारे पास समय कम है
कलुआः आप कह रहे हैंतो मान लेते हैं . इससे पूछिये जरा कि अपने बाप का नाम अंग्रेजी में बोल लेता है.
एंकर - हम आप से बाद में बात करेंगे और आप को बता देना चाहते हैं कि यह गधा अंग्रेजी में ही बोल रहा है और इतनी कठिन अंग्रेजी बोल रहा है कि न हमें समझ में आ रही है और न आपको लेकिन यह अंग्रेजी बोल रहा है.
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तभी रामू और उसका गधा दूसरे चैनल पर दूसरे दिन दिखा . वहां बताया जा रहा था यह जो आप देक रहे हैं यह गधा ही है यह रेंकता नहीं है . हमने इससे भार उठवा कर भी देखा लेकिन इसने उफ तक नहीं की जिससे साबित होता है कि यह गधा है इसमें कोई शक्ति नहीं है यह अन्य गधों की तरह ही रेंकता हैं
तभी गधे ने रेंक दिया और एंकर चिल्लाने लगा...
देखिये यह एक्सक्लूसिव सिर्फ हमारे पास है कि गधा रेंक रहा है और अंग्रेजी में नहीं रेंक रहा है. ... ... ...



इधर दर्शक सोच में है कि मीडिया को गधे से सरोकार है लेकिन जनहित व उसकी समस्याओं से नहीं . यही है मीडिया की हकीकत .

मीडिया का बाजार


आज चारों ओर पत्रकारिता पर बहस हो रही है लेकिन मेरी नजर में बहस बाजार पर होनी चाहिये . आज पत्रकारिता एक बाजार बन गई है या कह सकते हैं बाजार पत्रकारिता में प्रतिबिंबित होने लगा है. चाहे न्यूज चैनल हों या फिर प्रिंट मीडिया सभी बाजार से संचालित हो रहे हैं. सभी बाजार का एक हिस्सा बन गए है. मांग और पूर्ति का नियम यहां भी लागू है. जो बिक रहा होता है दुकानदार उसे ही अपने शोकेस में स्थान देता है ठीक यही स्थितियां मीडिया के सामने हैं . टीआरपी और सर्कुलेशन की लड़ाई में कई बार पत्रकारिता के मानदंड तारतार हो रहे है.
कुछ दिनों पहले दिलीप मंडल जी ने कहा है कि अगर नंदीग्राम में टीवी कैमरा नहीं होता, तो सीपीएम को शायद इतनी शर्म न आ रही होती।मैं भी उनकी बात से सहमत हूं लेकिन कितनी बार यही कैमरा आमजनमानस के साथ पत्रकारिता को भी शर्मशार करता है. कुछ दिन पहले ही एक युवती का नग्न होकर सड़क पर निकल पड़ना और उसका बार-बार न्यूज चैनलों में प्रदर्शन क्या साबित करता है. उसकी आवाज उठाएं यह गलत नहीं है लेकिन नग्नता का प्रदर्शन उचित है क्या? यदि यह प्रश्न उठाया जाये तो लोग कहेंगे कि मीडिया उसकी आवाज उठा रहा था लेकिन मीडिया आवाज के परिप्रेक्ष्य में एक सनसनाहट दिखाकर कुछ और बढ़ा रहा था.
आज की सुर्खियां रेप की घटनाएं बनती है. ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन इन घटनाओं को चासनी में डालकर पेश न किया जाता हो. खोजी पत्रकारिता के नाम पर रेप, भूत-प्रेत, सेक्स और कुछ इस जैसा ही दिखाया जा रहा है. दरअसल सनसनी के चक्कर में जो मिल रहा है उसे ही रंग कर प्रस्तुत करने के आदी होते जा रहे पत्रकार स्वयं पत्रकारिता भूल रहे हैं.
रही बात खोजपरक खबरों की तो यदि वो कारपोरेट जगत की हुई तो उसपर हाई लेबल पर ही सौदे हो जाते है या फिर यदि प्रशानिक स्तर की कोई बड़ी खबर हुई तो वह बेहतर संबंधों के नाम पर तो कई बार पैसों से मैनेज हो जाती है. तो ऐसे में सिर्फ रह जाती है घटना प्रधान खबरें. तो फिर शुरू हो जाती है चासनी लगा कर प्रस्तुतिकरण.
फिर चाहे वह भूतं शरणं गच्छामि हो या फिर सास बहू के झगड़े. कुछ न मिला तो बिपाशा और जॉन का झगड़ा तो मिल ही जाएगा.
आज न तो शिक्षा के मामले में कुछ बोला जा रहा न ही लिखा जा रहा न ही स्वास्थ्य के बारे में . और भी खबरे हैं जो जनहित से सरोकार रखती हैं लेकिन उन्हें कोई स्थान नहीं है. क्योंकि उनसे सर्कुलेशन या टीआरपी नहीं बढ़नी.
दूसरी ओर एक पुलिस वाले की सड़क दुर्घटना में मौत होती है तो वह बड़ी खबर बनती है लेकिन यदि कोई गरीब कुचल जाता है तो छोटा सा स्थान या फिर संक्षिप्त में सिमट जाता है. जहां जिंदगी के ऐसे दोहरे मापदंड हो तो स्वयं ही समझा जा सकता है कि पत्रकारिता की स्थिति क्या है.
हालांकि यह लंबी बहस का मुद्दा है क्योंकि आज पत्रकारिता और बाजार एक दूसरे के पूरक हो गए हैं और बिना एक दूसरे के चल भी नहीं सकते .

Friday, July 20, 2007

और वह ईसाई हो गया

उसके पास इतना भी नहीं था कि वह अपने बच्चे को दो जून की रोटी और पहनने को कपड़े दे सके. रोजगार की तलाश में पलायन की नौबत आ गई थी. तभी एक दूत उस तक पहुंचा और उसके सारे कष्ट हर दिए
.... और वह ईसाई हो गया.
सतना में मिशनरी कार्यकर्ताओं पर हमले के बाद सबकी निगाहें धर्मान्तरण की ओर गईं. सो हम भी पहुंचे माजरा समझने. काफी खोज बीन के बाद पता चला की ये मिशनरी कार्यकर्ता कुछ दिन पहले एक हरिजन बस्ती में गए थे . वहां के खालिस गरीबों को जाकर खाने पीने का सामान देते. फिर कपड़ो की व्यवस्था की. उनके लड़कों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया. धीरे - धीरे वे लड़के और उनका परिवार मिशनरियों के आश्रम आना शुरू कर दिया. बातो ही बातों में उन्हें अपनी प्रार्थना में भी शामिल करने लगे और एक दिन पाठ पढ़ाया कि देखों इस देवता को इसी के आदेश से हमें तुम्हारा पता चला और इसी की इच्छा थी कि तुम्हारी मदद हम करें. जब यह ईश्वर तुम्हारा इतना ख्याल रखता है तो तुम क्यों नहीं इसके अनुयायी बन जाते हो? बस फिर क्या था इन गरीबों को क्या चाहिये दो जून की रोटी व कपड़े फिर इनका भगवान कोई भी ... और फिर उसने ईसा का धर्म अपना लिया.
यह तो था मामला धर्मान्तरण का लेकिन इसके पीछे के तथ्य अभी भी विचारणीय है-
1. क्या वह गरीब न होता तो दूसरा धर्म अपनाता.
2. क्या उसके अपने धर्म व समाज वाले मदद नहीं कर सकते थे.
3. सरकारी योजनाएं(सतना में रोजगार गारंटी योजना चलरही है) होने के बाद भी पलायन की स्थिति क्यों बन रही है.
4. आज जो हिन्दू संगठन धर्म बदल लेने पर चिल्ला रहे हैं क्या उन्होंने पहले इस गरीब की ओर ध्यान दिया.
5. अपने व अपने परिवार को सुखमय जीवन जीने के अवसर प्रदान करने के लिये धर्म बदलना गुनाह है?
इसके अलावा भी कई प्रश्न हैं लेकिन उत्तर तो हम सबको ढूढ़ना पड़ेगा. नहीं तो हर दिन कोई अपना धर्म बदलेगा और इन स्थितियों में धर्म बदलना मेरी नजर में गुनाह नहीं है. क्योंकि मिशनरियों की तरह किसी भी हिन्दू संगठन में मदद का यह जज्बा नहीं है. हां यह जरूर है कि साल के किसी एक दिन किसी गरीब को कंबल या सेव फल बांट देते हैं ओर दूसरे दिन विज्ञप्तियों के माध्यम से हर अखबार में छप कर लोगों के सामने आ जाता है जिसे साल भर गाया जाता है. ..

Thursday, July 19, 2007

मिशनरी कार्यकर्ताओं पर हमला या न्युटन का 3rd लॉ

एक पखवाड़े के अन्दर रीवा संभाग में दूसरी बार सतना शहर में दर्जन भर नकाबपोशों ने चार मिशनरी कार्यकर्ताओं की लाठी डंडों से जमकर पिटाई की. दस मिनट तक हुई मारपीट के बाद वे घटनास्थल से भाग गए. घटना के कारणों का खुलासा नहीं हो सका है और न ही मिशनरी कार्यकर्ता भी कुछ बता रहे है. इसके पूर्व रीवा शहर में भी एक चर्च पर हमला कर कुछ मिशनरियों को घायल कर दिया गया था.
मिशनरी कार्यकर्ताओं पर हुए हमले का पुरजोर विरोध होने लगा है. हर पार्टी अपना अपना बयान देकर हमदर्द बनना चाह रही है. कुछ इसे भगवा दलों का हमला कह रहे हैं तो कुछ इसे सीधे तौर पर बजरंग दल का कृत्य बता रहे हैं. बहरहाल दोषी जो भी हो यह तो पुलिस जांच में सामने आएगा?
लेकिन एक तथ्य और है जो कइयों के जेहन में कौंध रहा है कि हमला क्यों हुआ. जहां तक कहा जाता है हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होता है लेकिन यहां कारण को छोड़ कर सबकुछ मौजूद है.
यदि हमलावर लुटेरे थे तो घटनास्थल की एक-एक चीज सलामत है. यदि हमलावर रौब जताना चाहते थे तो वे चुपचाप आए और मारपीट कर सीधे चले गए मौहल्ले से कोई मतलब नहीं था. मिशनरियों के अनुसार उनका कभी किसी से कोई विवाद नहीं हुआ जिसका वे बदला लेने आए थे .... फिर आखिर क्या था जो घटना का कारण बना.
क्या यहां न्युटन का तीसरा नियम गलत हो जाएगा कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो यह किस क्रिया की प्रतिक्रिया थी? यह न तो घायल बता रहे न कोई और, लेकिन घायलों की खामोशी में ही कई राज हैं जो कह रहे हैं कि न्युटन गलत नहीं हो सकता.
कहीं यह सेवाभाव की आड़ में धर्मपरिवर्तन का कोई विरोध तो नहीं था. क्योंकि यहां लगातार कई दिनों से ऐसे मामले सुनने को आ रहे हैं.
हालांकि घटना शर्मनाक थी लेकिन यदि यह धर्मान्तरण का प्रतिकार है तो प्रशासन को भी आंखे खोलनी होंगी. हमलावरों को सजा मिले ऐसे प्रयास तो हों साथ ही यह भी किया जाय कि सेवा की आड़ में कोई गरीब अपना धर्म न बदले.

Friday, July 6, 2007

और ये चैनल के (नंगे) रिपोर्टर

आप अपराधी हैं क्योंकि आप अपना परिवार पालने के लिये अपना स्वयं का व्यवसाय करते हैं और व्यवसाय करने के एवज में चैनल के रिपोर्टरों को पैसा नहीं देते. जी हां यह बिल्कुल सच है सतना शहर में. विगत दिवस पत्रकारों ने छापामार कार्रवाई की तर्ज पर खुद अन्वेषक बन कर जो नंगा नाच (मैं यही कहूंगा) किया वह पत्रकारिता व उन सभी चैनलों व अखबारों के लिये शर्मनाक है जिसके रिपोर्टर वहां शामिल थे.
इस घटना की शुरुआत एक सप्ताह पूर्व से हो गई थी. किसी व्यक्ति ने जी चैनल के नाम से एक चिकित्सक से कुछ रुपये डरा धमका कर ले आए. वजह यह बताई गई कि तुम दूसरे जिले से आकर यहां इलाज कर रहे हो जो कि गलत है. मीडिया की धौंस और वह साधारण सा बीएएमएस चिकित्सक. मारे भय के उसने कुछ रकम उसे दे दी. फिर यह बात सतना के ND टीवी व सहारा के रिपोर्टरों को पता चली. फिर क्या था पहुंच गए अपनी सेटिंग करने. बात बनी नहीं और दूसरे दिन के टाल दी गई . फिर बूधवार को एक बार फिर अंतिम प्रयास सेटिंग का किया गया. लेकिन चिकित्सक ने फिर पैसे देने से इन्कार कर दिया. तब जागरुक चैनल एनडीटीवी व सहारा के जागरुक पत्रकारों ने यहां के सभी चैनलों के संवाददाताओं व अखबारनवीसों को न्यौता देकर डॉक्टर के क्लीनिक में बुला लिया. फिर वहां पत्रकारों की फौज (संख्या व तरीके के अनुसार) पहुंची. फिर चिकित्सक पर प्रश्नों की बौछारें या कहें गाली गलौज का वह तांडव हुआ कि पत्रकारिता तार तार हुई. रिपोर्टर खुद पार्टी बन गए. खुद ही गाली गलौज व मारपीट की स्थितियों तक पहुंच गए. पैसे न पाने की नाराजगी का आतंक इस कदर रहा कि चिकित्सक घबराहट में अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहा था. या कहें स्पष्ट करने नहीं दिया जा रहा था. फिर पुलिस व प्रशासन के अमले को भी न्योता दिया गया. इसी दौरान चिकित्सक द्वारा क्लीनिक में रखी महंगी दवाओं को इन पत्रकारों ने चोरी से अपने कपड़ों के अंदर व जेबों में भी डाला(यह पराकाष्ठा थी). फिर सभी ने संतुष्टि के भाव से विदा ली और कहा आज शानदार स्टोरी बन गई.
सवाल यह उठता है कि यदि वह चिकित्सक गलत था तो नियमन कार्रवाई करवाई जा सकती थी या अपने पत्रकारिता के तरीकों से स्टोरी बनाई जा सकती थी. दूसरी ओर शहर में कई फर्जी चिकित्सक हैं उनपर नजर क्यों नहीं जाती ....
इसके अलाबा भी इस स्टोरी के बाद कई सवाल उठ रहे है जिनका जवाब शायद मैं नहीं दे पा रहा हूं. हां यह जरूर पता चला है कि दूसरे दिन पुलिस को उक्त चिकित्सक ने अपने प्रमाण-पत्र जरूर दिखाएं हैं .

Monday, July 2, 2007

कानून से उपर हैं विधायक पुत्र

कानून सिर्फ जमीन पर रेंगने वाले आम आदमियों के लिए होता है . मसलन ट्रैफिक के नियम आम आदमी तोड़ता है, अपराध आम आदमी करता है बलात्कार आम आदमी करता है और न जाने जितनी भी बुराइयां है वह सब आम आदमी ही करता है. लेकिन यदि कोई विधायक या सांसद का पुत्र या रिश्तेदार है तो उसपर नियम कानून लागू नहीं होते. ... ऐसा ही कुछ देखने को मिला सतना जिले में.
विगत दिवस शहर के एक चौराहे में यातायात पुलिस की चेकिंग चल रही थी . इसी दौरान बगैर नम्बर की बाइक पर तीन सवार पुलिस द्वारा धर लिये गए. कागजात मांगे जाने पर जब उपलब्ध नहीं कराए जा सके तो चालान की कार्रवाई प्रारंभ की जाने लगी तभी उनमें से एक ने कहा कि जानते नहीं मैं विधायक शंकरलाल तिवारी का पुत्र हूं. लेकिन नादान पुलिस कर्मी ... बोला... तो क्या हुआ नियम नियम होता है और चालान काट दिया. तभी पुत्र ने अपने विधायक पिता को यह जानकारी और पन्द्रह मिनट बाद विधायक शंकरलाल तिवारी अपने दलबल सहित वहां पहुंच गए. आते ही यातायात कर्मियों पर बरस पड़े साथ ही सिपाही के निलंबन की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए.
मध्यप्रदेश में भाजपा का शासन और भाजपा विधायक ही अपने समर्थकों सहित धरने पर बैठे तो हड़कंप मचना स्वभाविक था. आनन फानन में सिटी मजिस्ट्रेट पहुंचे. लेकिन विधायक ने लगभग गाली देने वाले अंदाज में बात की और एसपी व कलेक्टर को मौके पर आने की मांग की . एसपी शहर से बाहर थे तो कलेक्टर को बुलाया गया लेकिन कलेक्टर इस घटना से नाराज आने से मना कर दिया. फिर राजनीति की बिसात उपर से बिछी और कलेक्टर आए और सिर्फ इतना ही कहा ‘आप जाएं जो दोषी होगा उस पर कार्रवाई होगा’ और लगभग शाम 8 बजे से 11 बजे तक चली नौटंकी का अंत हुआ. लेकिन कुछ प्रश्न छूट गए जिसके जवाब हम आपको देने है. यहां यह बताना भी जरूरी है कि यह विधायक भाजपा झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ का प्रदेशाध्यक्ष भी है मतलब संगठन से जुड़ा आदमी भी है. ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह बात कि सरकार ईमानदारी से अपना काम करेगी पर का तो स्याह पन्ना है. सबसे बडी बात पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था की दुहाई देते घूमने वाले गृहमंत्री का यह गृह जिला भी है जहां विधायक खुद कानून की ऐसीतैसी करते घूम रहे है और दूसरे दिन एसपी कहते हैं- का करोगे भगवान सब देख रहा है.

Tuesday, June 5, 2007

मौसम और अपराध का गहरा नाता


मौसम और अपराध का काफी गहरा नाता है. जिस तरह से मौसम बदलता जाता है उसी प्रकार अपराध की संख्या और प्रकार में भी बदलाव आता है. मनोवैज्ञानिकों और विज्ञान के अनुसार अपराध और अपराध की प्रवृत्ति के लिए मौसम काफी हद तक जिम्मेदार होता है. शहर में हुए अपराधों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि तापमान जितना बढ़ता है अपराधों की संख्या में भी उतनी ही तेजी से इजाफा होता है वहीं जब तापमान चरम पर पहुंच जाता है तो अपराधों की संख्या घटने लगती है. इस तरह अपराध और तापमान में वक्र रैखीय समानता. यही नहीं मनोवैज्ञानिकों की माने तो मौसम का अच्छा खासा असर अपराध की प्रवृत्ति पर पड़ता है. मनौविज्ञानी डॉ. कुलभूषण सक्सेना के अनुसार अपराध का जिम्मेदार अपराधी की प्रवृत्ति होती है और प्रवृत्ति काफी हद तक मौसम द्वारा भी संचालित होती है. उन्होंने बताया कि बसंत के मौसम में चारों ओर खुशहाली होती है जिसका असर मानववृत्ति पर भी पड़ता है और यदि उस समय के अपराधों पर गौर करेंगे तो उनकी संख्या अन्य मौसमों से कम होगी या फिर अपराध की प्रवृत्ति काफी कम गंभीर होगी. अपराध शास्त्र के प्रोफेसर जी.डी. मालवीय के अनुसार अपराध के लिये विशुध्द तौर पर मौसम मुख्य कारक होता है. जैसे जैसे मौसम बदलता है वैसे-वैसे अपराध की प्रवृत्ति भी बदलती है. उन्होंने बताया इसके पीछे अपराधी की बदलती मनोस्थिति के साथ मौसम के साथ बदलती सामाजिक व पारिस्थितिक परिस्थिति भी जिम्मेदार है. उन्होने बताया कि गर्मी के मौसम में लूट और बलात्कार के अपराध ज्यादा होते है. इसके कारणों में उन्होंने बताया कि इस समय खेतों में फसल उत्पादन के बाद किसान अपनी फसल बेच कर लौटता है जो उसके लूट का कारण बनता है वहीं इसी समय खेतों में काफी संख्या में महिलाएं कटाई के लिये जाती है साथ ही तेज गर्मी में लोगों की आवाजाही भी नगण्य होती है जिससे अपराधी को बलात्कार के काफी अवसर मिलते है. इसी मौसम में महिला आत्महत्या की भी काफी घटनाएं होती है. उन्होने बताया कि ठीक इसी तरह बरसात की शुरुआत में जमीन मामलों के झगड़े काफी होते है इसकी बजह है कि बारिश के साथ ही बाड़ लगाने व खेत बोने के काम शुरू होते है और जमीन पर कब्जा झगड़े का कारण बनता है. उन्होंने बताया कि फरवरी मार्चतथा जुलाई अगस्त में गर्भपात की घटनाएं काफी होती है इसकी बजह में उन्होने कहा कि दिसंबर व जनवरी सेक्सुअल रिलेशन के लिये अच्छा मौसम माना जाता है तथा मई जून में बलात्कार ज्यादा होते है इसकी परिणति गर्भ ठहरने के रुप में होती है जिससे औसतन दो माह बाद गर्भपात के रूप में कारित किया जाता है. इस तरह अपराध शास्त्र के अनुसार हर मौसम के अपराध की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है.

माहवार अपराधों की प्रवृत्ति -

भ्रूण हत्या - जनवरी,फरवरी,जून,जुलाई
हत्या और गंभीर अपराध - जुलाई
पारिवारिक हत्या - जनवरी, अक्टूबर
जमीन संबंधी अपराध - जुलाई, अगस्त
प्रौढ़ो में बलात्कार - जुलाई, अगस्त
युवकों में बलात्कार - मई, जून
संपत्ति के विरुद्ध अपराध - दिसम्बर,जनवरी
व्यक्ति के विरुद्घ अपराध - मई,जून

Saturday, May 26, 2007

रामसेतु भारतीय इतिहास की प्राचीन धरोहर ?

सेतु समुद्रम परियोजना के वैकल्पिक मार्ग भी उपलब्ध हैं, और जानकारों का कहना है कि रामेश्वरम और धनुकोष्टि के बीच फैले रेत के टीलों को हटाकर नया रास्ता बनाया जा सकता है.

शायद इस देश के लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा रामसेतु का नाम सुनकर आश्चर्य में पड़ जाए कि आखिर राममंदिर के बाद रामसेतु नाम की कौन सी बात है जो पूरे देश में गंभीर बहस का मुद्दा बनती जा रही है. लेकिन शायद उन्हें यह पता न हो कि यह वही सेतु है जिसका लंका पर चढ़ाई के दौरान श्रीराम के निर्देश पर निर्माण किया गया था. अब सवाल यह उठता है इतने लंबे कालखंड के बाद उसका अस्तित्व में होना संभव है भी या नहीं. लेकिन इसकी पुष्टि नासा के अंतरिक्ष अभियान के दौरान यान और उपग्रहों से रामसेतु के खींचे चित्रों से हो जाती है वहीं पुरातत्व वेत्ताओं ने इसकी उम्र 17.50 लाख वर्ष बताई तो फिर लोगों का ध्यान अपने आप भारतीय पौराणिक मान्यताओं की ओर चला जाता है, क्योंकि यही समय श्री राम का भी है. (जिन्हे राम का अस्तित्व ही नहीं मानना है उनकी बात ही अलग है)

पुरातत्व और नामकरण के अनुसार यह वही सेतु है जिसे श्रीराम ने रामेश्वरम और लंका के बीच बनवाया था. कालान्तर मे इसे आदम पुल के नाम से भी जाना जाने लगा.
वस्तुतः आदम पुल नाम का जोर भारत सरकार का है क्योंकि अमेरिकी रणनीतिक दबाव में वह पुल को तोड़ना चाहती है(राजनीतिज्ञों के अनुसार) आदम पुल के पक्षधरों का कहना है कि श्रीलंका में आदम पुल की तरह आदम चोट भी है. वस्तुतः सन् 1806 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर्वे पर जनरल रैनल ने रामसेतु के लिये एडम्स ब्रिज या आदम सेतु नाम का इस्तेमाल किया. रही बात भारत सरकार द्वारा इसे सेतु नहीं मानने की तो खुद भारत सरकार का सर्वेक्षण विभाग भारत को आसेतु- हिमालय बखानता है. अर्थात वह भी इसे सेतु मानता है और भारत को रामसेतु से हिमालय तक मानता है.
ब्रिटिश विद्वान सी.डी मैकमिलन ने मैन्युअल आफ द एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ मद्रास में सन् 1903 में यह बताया था कि सन् 1430 तक भारत और श्रीलंका के लोग उक्त पुल से पैदल आते जाते थे. बाद में तूफानों एवं हिमाच्छादन से समुद्र का जलस्तर बढ़ जाने से उक्त पुल पानी में डूब गया जो अब भी तीन फीट से तीस फीट नीचे पानी में देखा जा सकता है.
जहां तक मान्यता का प्रश्न है कि प्रभु श्रीराम का सेतु पानी में बहने वाला था तो उसकी पुष्टि इसी से होती है कि यहा कोरल और सैंड स्टोन बहुतायत में पाये जाते हैं जो पानी मे तैरते हैं. वहीं डिस्कवरी व नेशनल जियोग्राफिक चैनल के अनुसार यहां 18 से 20 हजार वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में मानव उपस्थिति के भी साक्ष्य हैं.
रही बात सेतु समुद्रम के वैकल्पिक मार्ग की तो इसके पहले भी वैज्ञानिकों ने पांच परियोजनाएं सुझाईं थी जिनमें रामसेतु पर कोई आंच न आती लेकिन सरकार यह छठा सुझाव लेकर रामसेतु तोड़ने की हठधर्मिता कर रही है . एक सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री ने मार्च 2005 मे तूती कोसिन बंदरगाह से १६ प्रश्नों का जवाब मांगा था लेकिन फिर ऐसा क्या हो गया कि जवाब देखने के पहले ही 2 जुलाई 2005 को परियोजना के उद्घाटन करने पहुंच गए. वहीं बताया तो यह भी जा रहा है कि इसके लिये पम्बन और धनुकोष्टि के बीच 15 किमी की मुख्य भूमि में खुदाई कर स्वेज और पनामा की तरह जलमार्ग बनाया जा सकता है वह भी बगैर किसी प्रागैतिहासिक धरोहर को नष्ट किये. यहां सवाल किस सरकार ने योजना बनाई और कौन आगे बढ़ा रही है का नहीं है बल्कि ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का है. चाहे यह धरोहर प्रकृति निर्मित हो या फिर मानव निर्मित.

Wednesday, May 16, 2007

आरएसएस का स्याह चेहरा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जिसके बारे में जितना कहा जाये अपने में कम है. कई तो संघ के बारे में काफी कुछ कह कर भी नहीं थकते , लेकिन विगत दिवस हुए एक खुलासे ने मुझे झकझोर कर रख दिया. अब मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि संघ दूसरों को निवाला देने वाला संगठन है या दूसरों का हक मार कर अपना पेट भरने वाल संगठन.
यह मामला सतना जिले का है और सीधे तौर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत संघ चालक से जुड़ा है. एक तौर पर यह मामला उतना बड़ा नहीं है लेकिन इसके निहितार्थ देखे जाएं तो शायद संघियों का चेहरा सामने आ जाएगा. अभी तक मैं स्वयं इसे एक बेहतर संगठन और इसके पदाधिकारियों को अनुकरणीय मानता था. मामला यह है कि प्रांत संघ चालक श्री कृष्ण माहेश्वरी स्वयं में एक करोड़पति व्यवसाई हैं उनके फिनायल बनाने सहित और भी न जाने कितने धंधे है उनका भतीजा है मणिकांत माहेश्वरी जो स्वयं आर्किटेक्ट होने के साथ-साथ एक सफल व्यवसाई है. प्रति माह लाखों की कमाई है लेकिन इनकी हकीकत तब बयां हुई जब कलोक्टोरेट के कर्मचारी ने एक आदेश की कापी दी.
यह आदेश मध्यप्रदेश के पशुपालन एवं गौ संवर्धन विभाग मंत्री रमाकान्त तिवारी के स्वेच्छानुदान मद के ७७ हजार रुपये में से मणिकान्त माहेश्वरी के उपचार के लिये १५ हजार रुपए मंजूर करने संबंधी था.
यह अपने आप में सोचनीय है कि वास्तव में गरीब और बीमार किसी मरीज को मंत्री द्वारा कभी अपने स्वेच्छानुदान मद से राशि नहीं दी जाती लेकिन एक करोड़पति संघी के लिये मंत्री ने तुरंत १५ हजार रुपए दे दिये और धन्य है ये संघी जो करोड़पति होते हुए भी अपने इलाज के लिये मदद की आवश्यकता आ पड़ी और शासन से मदद ली. जब कि मेरी बेहतर जानकारी के अनुसार अभी तक मणिकान्त जी इतने बीमार भी नहीं पड़े थे.
दूसरों की सहायता का दम भरने वाले इन संघियों से अब आप क्या आशा करेंगे जब वे खुद किसी गरीब के हक का पैसा अपने इलाज के नाम पर खा रहे हैं वह भी तब जब वे संघ के इतने बड़े पदाधिकारी के भतीजे हैं व स्वयं संघ के सक्रिय सदस्य व स्थानीय पदाधिकारी है. कई बार तो यह बातें भी सामने आई हैं कि नगर निगम में फिनायल की सप्लाई इनके संघी होने के नाते करवाई जाती है और अधिकारी भाजपा शासन में कुछ करने से पहले संघी की क्षमता का आकलन तो लगा ही लेते है. कुळ मिलाकर संघ राज चल रहा है.

Friday, April 20, 2007

धर्म को धर्म रहने दें ...

मैं नहीं जानता कि इसे पढ़ने वाले आस्तिक है या नास्तिक, किस धर्म को मानने वाले है. लेकिन यदि वे आस्तिक हैं तो किसी देवी देवता पर विश्वास तो करते होंगे. किसी धर्म को मानते हैं तो उसपर आस्था भी होगी. आज जब पूरे विश्व को एक गांव बनाने की सोच जारी है ऐसे में मैं नहीं सोचता कि कोई एक किसी दूसरे की आस्था पर चोट करेगा. सहमत और असहमत होना एक अलग चीज है लेकिन यह नहीं कि हम किसी एक धर्म पर आस्था रखते हैं तो दूसरे धर्म को बुरा कहें. यहां मैं किसी को यह नहीं कहना चाह रहा कि तुमने ऐसा करके गलत किया है लेकिन मेरा निवेदन सभी से है कि किसी की आस्था पर चोट पहुंचा कर आप सच्चाई उजागर नहीं कर सकते. रही बात कमियों की तो वह सबमें कुछ न कुछ है. रही बात रीति रिवाजों की , कर्मकांडों की , प्रथाओं की तो उस धर्म की समाज को चलाने की एक व्यवस्था थी जिसे यह रूप दे दिया गया. हालांकि यह मेरा नजरिया है और जरूरी नहीं सभी इससे सहमत हों. पहले आज की तरह नियम-कानूनऔर शासन प्रणाली नहीं थी. ऐसे में समाज को सही राह दिखाने के लिये धर्म का सहारा लिया गया. धर्म भीरू जनता को बताया गया कि ऐसा करो नहीं तो ऐसा हो जाएगा. गलत काम मत करो वरना देवता - ईश्वर का कहर टूटेगा. जो आगे चलकर एक धर्म व उसके रीति रिवाज व मान्यताओं का रूप लिये. निश्चित तौर पर इनमें भी कोई कमियां रहीं होगी. रही बात किसी धर्म के सहिष्णु होने की तो यदि वह सहिष्णु नहीं होगा तो धर्म ही नहीं होगा. किसी एक व्यक्ति की सोच या खोज से मान्यताएं व विचारधारा नहीं बदल सकती. फिर देवताओं के हथियार रखने की बात जहां तक है तो देवता अच्छाई के प्रतीक है और बुराई के संहार के लिये हथियार रखने पड़े. एक अन्य धर्म में कर्बला में लड़ाई लड़ी गई . वहां भी निश्चित तौर पर हथियार रहे होंगे. सुरापान की बात करे तो होली ऑफ ग्रेल में क्या पिया गया था. रही बात वेश्यागामी होने की तो मेरे समझ में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि देवता वेश्यागामी थे . हां जितना मैने पढ़ा है यह जरूर कि दरबार में नृत्य की महफिल सजती थी अब इसे वेश्यागमन माने तो मैं कुछ नहीं कहूंगा. हां रोमन देवताओं के बारे में कुछ तथ्य जरूर हैं लेकिन वे भी प्रासंगिक है. दूसरा यदि यह सारी बातें सही भी मान ले कि “ये सहिष्‍णुता का धर्म नहीं है। इस धर्म के तमाम देवता हथियारों से लैस हैं, वेश्‍यागामी हैं और शराबी तो हैं ही“ तो इस धर्म में यह व्यवस्था भी है कि हर देवता के अपने - अपने उपासक है. तांत्रिक जो श्मसान पूजा करते हैं उनके देव अलग है तो प्रेमियों के कान्हा है तो आदर्श पुरुष देवतुल्य राम के उपासक अलग है. फिर इसी धर्म में ही यह व्यस्था है कि जीवन जीने की कला को चार आश्रमों में बांटा गया और सबमें एक स्पष्ट विभाजक रेखा है किसी को किसी से जोड़ा नहीं गया. अर्थात जीवन के पड़ाव को आश्रम से जोड़ कर उनके कृत्य निर्धारित कर दिए गए. निश्चित तौर पर इसमें भी कमियां हो सकती है. लेकिन जहां उपासना की इतनी छूट है इतने तरीके हैं साथ ही इसी धर्म में ही जैन , बौद्ध जो चीन से जापान तक पताका फहरा रहा है और भी न जाने कितने हैं, कितनी जातियां हैं जो इसमें समाहित है. नदियों को , पशुओं को (किसी की नजर में ) इसमें माता की हैसियत दी गई हो वह धर्म कैसे सहिष्णु नहीं हो सकता . यह तो मेरी अपनी आस्था है . और मैं मानता हूं यह धर्म सहिष्णु है. यह भी हो सकता है किसी को इसके नियम कायदे या कुछ न भाए तो मैं नहीं कहता कि वह इसे स्वीकारे लेकिन मैं यह भी नहीं चाहूंगा कि कमियों के नाम पर कोई किसी की आस्था को चोट करे न ही मैं किसी अन्य की आस्था को चोट पहुंचाना अच्छा समझता , इसलिये मुझ अल्पज्ञानी का निवेदन है कि दोबारा ऐसा न करें. धर्म और जाति की बहस सिर्फ विवाद को जन्म देती है. रही बात मुद्दों की तो इस जहां में और भी है. मैने पूरी कोशिश की है किसी को बुरा न लगे बावजूद यदि कुछ गलत लगा हो तो निवेदन है वो इसे अन्यथा न ले और मुझे कहे . मैं निश्चित तौर पर उसे हटा दूंगा.

Wednesday, April 18, 2007

मरीज को मार डालेंगे ये डॉक्टर

विगत दिवस सतना जिले के पहाड़ी इलाके में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक मरीज की मौत हो गई. इससे आक्रोशित स्थानीय निवासियों ने चिकित्सालय में तोड़फोड़ की, काफी उत्पात मचाया. पुलिस भी पहुंची. समझाइश भी दी और कुछ के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ.
ये था घटनाक्रम . वहां जाने के बाद जब घटना की हकीकत पर पहुंचे तो पता चला यहां पदस्थ चिकित्सक के इलाज के दौरान कई मरीज असमय काल के गाल में समा चुके हैं. हालांकि चिकित्सक में कोई खोट नहीं है. बाकायदा एमबीबीएस है लेकिन मरीज तो मर ही रहे है.
घटना के दूसरे दिन भी वहां गया. कुछ लोगों ने बताया कि डाक्टर साहब पड़ोस के गांव के ही हैं. ज्यादा दूर न होने पर हम चल दिये. अपने घर में डॉक्टर साहब मिल गए . बिल्कुल डरे सहमे. तमाम दलीलें फिर क्षेत्र में अशिक्षा, फिर क्षेत्र के बाहुबली नेता आदि पर चर्चा होती रही. बात -बात में उनकी शिक्षा पर भी बात होने लगी तब जाकर पता चला कि वे आरक्षित कोटे से चयनित हुए थे . प्रतिशत की बात छोड़िये हुजूर वे तो अंकों के आधार पर आरक्षण के पायदान पर चढ़ कर डाक्टर बन कर नौकरी कर रहे है.
वहां से लौट कर दो घटनाएं जेहन में दौड़ गई -
विगत वर्ष रीवा से 83 प्रतिशत पाने वाले सामान्य कोटे के छात्र का पीएमटी में चयन नहीं हुआ था वहीं महज कुछ अंक (याद नहीं है) पाकर आरक्षित कोटे का छात्र चयनित हो गया.
अब आप सहज ही समझ लीजिए कि इन चिकित्सकों के हाथों में मरीज का भविष्य क्या होगा. वहीं आज फिर उच्च शिक्षण संस्थाओं में एक बार फिर बहस गर्म है. लेकिन नीति नियंताओं को कौन बताए कि इन डाक्टरों का इलाज तो आकर देखें या लगातार 6 महीने खुद अपना इलाज इनसे करा लें और आरक्षण लागू कर दें.
वहीं एक सवाल यह भी है कि आखिर उस 83 फीसदी वाले छात्र का दोष क्या था? यदि उसका कोई दोष नहीं है तो फिर किसी पिछड़े वर्ग को आगे लाना है तो उसे सुविधाएँ देनी चाहिए न कि आरक्षण...

Monday, April 16, 2007

कौन सा नेहरू-गांधी खानदान

राहुल का बयान - देश की आजादी का श्रेय नेहरू गांधी खानदान को जाता है. बंगलादेश का निर्माण भी इसी खानदान ने कराया. ...

अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान को बंगलादेश निर्माण का जवाब विदेश मंत्री देंगे और इन्हें भारत की जनता. लेकिन इस बयान से यह सिद्घ हो गया कि इन्हें कितनी राजनीतिक समझ है और देश के बारे में कब और क्या बोलना है यह भी वे शायद नहीं जानते.

लेकिन नेहरू गांधी खानदान है क्या वे खुद जानते हैं इसके बारे में शायद नहीं तो देखें

बाकी इस खानदान की असलियत का चिट्ठा http://www.sikhsundesh.net/nehru_dynasty.htm में दिया हुआ है.

Sunday, April 15, 2007

देश से बड़ा है अफजल

राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की ब्रुसेल्स यात्रा के दौरान ब्रिटेन के एक मानवाधिकार संगठन ने अफजल गुरु मामले को यूरोप की संसद में उठाने की योजना बनाई है।
यह खबर महज खबर नहीं है बल्कि मेरे नजरिये से यह भारत की अस्मिता पर एक वैचारिक हमला है. आखिर भारत संपूर्ण प्रमुत्व सम्पन्न स्वतंत्र राष्ट्र है. इसके अनुसार हम अपना फैसला स्वयं लेते है. फिर आखिर भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल को फांसी की सजा पर ब्रिटेन की संसद का क्या काम. वहीं ब्रिटेन के 4 सांसद अफजल के प्रति दयालु रवैया अपनाने की बात करते हैं. आखिर ये दोगली नीति भारत के ही साथ क्यों. जब सद्दाम का मामला आया तब दयालु रवैया क्यों नही दिखा, अमेरिका में 11 सितंबर के बाद दयालु रवैया क्यों नहीं दिखा ... तब ये सांसद अंधे और बहरे थे क्या ...
लेकिन यह उनका नहीं हमारा ही दोष है जो हमने सबको कुछ भी कहने की छूट दे रखी है... अब वक्त है कि हम भी दूसरों के मामलों में बोले तब लोगों को शायद समझ में आए ...
इसके अलावा भारत में ही खुद अफजल के खैरख्वाह काफी है. मेरे नजरिये में तो इन्हें भी सजा सुना देनी चाहिये . क्योंकि अपराधी को शरण देने वाला व उसको बचाने की कोशिश करने वाला मेरी नजर में स्वयं एक अपराधी है.
यहां अफजल को फांसी न देने की वकालत करने वाले कश्मीर के गुलाम नबी आजाद, महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला कर रहे हैं . क्यों ? क्योंकि इन्हे न तो अफजल से मतलब है, न भारत की अष्मिता से, न संसद की गरिमा से, न आतंकवाद और न ही देश की सुरक्षा से. ये अपना भला और वोट के मोहताज है.
यही वे लोग हैं जो अब कश्मीर से सेना की वापसी चाहते है. अब तो इन्हें नेता कहने में शर्म आती है. ये नेता नहीं मौत व वोटों के सौदागर हैं. ये यह भी भूल जाते है कि आतंकवादी जब निर्दोष लोगों का खून बहा रहे हैं तब सेना ही इन्हें रोक रही है. अब भला सेना हटाकर ये किसका भला चाह रहे हैं आम जनता का या आतंकवादियों का. ऐसे में धन्य है प्रधानमंत्री जी जो सत्ता की लालच में इन्हे तव्वजों दे रहे हैं.
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इन्हे और इन जैसे लोगों के हाथों में देश की कमान है.
जब तक इनका स्वहित रहेगा तब तक स्वाधीन देश में भी हम स्वाधीन नहीं हैं. क्योंकि देश का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद के हमलावर को बचाने की कोशिश यह बताती है कि देश से बड़ा है अफजल.

Saturday, April 14, 2007

मेरा कमजोर हिन्दुस्तान

आज खबर पढ़ी कि ग्रेग चेपल ने एक आस्ट्रेलियाई अखबार में अपने साक्षात्कार में कहा है कि भारत का मीडिया सिर्फ सनसनी के लिए काम करता है फिर उल्लेख किया भारत छोड़ने से पहले अपने इलाज के दौरान की खबरों का साथ ही भारतीय टीम की हार के बाद अपनी असुरक्षा की. एक और खबर - इरान के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी अमेरिका को पच नहीं रही और एक बार फिर परमाणु करार टूटने का खतरा. फिर एक और खबर शांति वार्ता के दौरान पाकिस्तानी अधिकारी टेबल छोड़ कर चल दिये वहीं एक और खबर अग्नि 3 की सफलता चीन को रास नहीं आई उसने कठोर रवैया अपनाया ...
आखिर हम क्या इतने गिरे हुए है कि हमारी हर गतिविधि पर जिसे जो चाहे बोलने लगे. नहीं लेकिन कभी -कभी लगता है हां क्योंकि न तो कभी हम इसका सही खंडन करते हैं और न ही प्रतिकार. हां अपनी झूठी शान के लिये यह गाहे बगाहे जरूर कह देते हैं कि विश्व को हम आई टी में लीड करते है.
अरे हम चाहे तो आई टी ही नहीं सभी में लीड कर सकते हैं, लेकिन पुरानी सोच और पैमाने से निकलना होगा.
आखिर क्यों हमारे देश की प्रतिभाएं यहां से पलायन करती हैं. सभी जानते हैं सरकारें बयानबाजी करती हैं घोषणाएं होती है. लेकिन जमीनी हकीकत जस की तस . जब तक यह नहीं सुधरेगा हम कमजोर ही रहेंगे और हर कोई हमें घुड़की देता रहेगा.
अभी एक घटना और याद आ गई विगत वर्षों हमारे द्वारा पैदा किया बंगलादेश ही हमारी सीमा पर हमारे बीएसएफ कर्मियों को मारकर उनके शव बुरे हालात में लौटाए. और हमने क्या किया - कुछ नहीं. संसद पर हमला होने के बाद सीमा पर सेना पहुंची क्या हुआ - कुछ नहीं . चीन का हमारी सीमाओं के पास तक कहीं कहीं सीमा के अन्दर तक सैन्य पोस्ट तैयार किया जाना - यहां भी बोलने के अलावा हम कुछ नहीं कर सके ... कितने कमजोर है हम , कितना कमजोर है हमारा हिन्दुस्तान फिर कहते हैं मेरा देश महान्

Friday, April 13, 2007

उमर मुस्लिम समाज से बहिष्कृत !

विगत दिवस भोपाल में एक मुस्लिम युवक उमर द्वारा धर्म परिवर्तन कर अपना नाम उमेश रखकर सिंधी समुदाय की युवती प्रियंका से शादी रचाने के मामले ने तूफान का रूप ले लिया है. एक और जहां यह मामला राजनीतिक रंग भी ले रहा है तो दूसरी ओर धार्मिक संगठनों के मुल्ला मौलवियों व धर्म गुरुओं के बीच बहस शुरू हो गई है.इस शादी से भड़के सिंधी समाज के दबाव के चलते विगत दिवस पुलिस ने जहां लड़के के भाई जबरन थाने में बैठाए रही व उसके परिवार पर दबाव बनाया जाता रहा कि लड़के को पेश करों. वहीं दूसरी ओर नवदंपति को हाई कोर्ट ने राहत प्रदान करते हुए पुलिस को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिये व पुलिस को फटकार भी लगाई.लेकिन इसका दूसरा पक्ष जो है वह काफी स्याह है और इसपर सकारात्मक बहस की जरूरत है. इस विवाह से नाराज मुस्लिमों की संस्था मजलिस-ए-शूरा ने धर्म बदलकर शादी करने वाले उमर को कौम से बेदखल कर दिया है, साथ ही मुस्लिम महिलाओं व युवतियों को बुरका पहनने व पर्दा परंपरा का पालन करने कड़ी नसीहत दी है. तो सिंधी समुदाय ने भी लड़कियों को चेहरा ढंककर घर से बाहर निकलने और मोबाइल, स्कूटर के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फरमान जारी किया है. वहीं दूसरी ओर कुछ हिन्दू संगठनों ने भोपाल बंद का आह्वान किया है तो आल इण्डिया मुस्लिम त्योहार कमेटी ने भी इन विवाह पर नाराजगी जताते हुए उमर को कौम से बहिष्कृत करने के फैसले को सही ठहराया है.इस अंतरधार्मिक विवाह पर धार्मिक और सामाजिक आधार पर तरह-तरह की व्याख्याओं का दौर शुरू हो गया है तथा इसके समर्थन व विरोध में पुराने उदाहरणों के साथ बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया है. विश्व हिन्दू परिषद ने अगर-मगर के साथ समर्थन व विरोध की मुद्रा अख्तियार कर ली है. उसका कहना है कि उमर ने अगर धर्म परिवर्तन करके शादी की है तो कोई ऐतराज नहीं है लेकिन बगैर धर्म परिवर्तन के शादी हुई है तो इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा. वहीं जमीयत के प्रवक्ता ने कहा है कि शरीयत के मुताबिक ऐसे विवाह वर्जित है.अब सवाल यह उठ रहा है कि यह शादी इतने विवाद का विषय क्यों बन रही है. क्यों दोनों समुदाय अपने-अपने फरमान जारी कर रहे है. क्यों नवदंपति को अपनी जिंदगी नहीं जीने दी जा रही है. तब ये नैतिकता के ठेकेदार कहां थे जब भोपाल के नवाब पटौदी, वॉलीबुड सितारे शाहरुख खान व अरबाज खान, सितारवादक अमजद अली खान, भाजपा के शाहनवाज हुसैन व मुख्तार अब्बास नकवी, सपा के शाहिद सिद्दीकी ने हिन्दू कन्याओं से विवाह रचाया तो फिल्म अभिनेता ऋतिक रोशन और कांग्रेस सांसद सचिन पायलट ने मुस्लिम कन्याओं से विवाह रचाया. आखिर कब तक समाज व राजनीति के नाम पर प्यार को सूली पर चढ़ाया जाएगा.

Thursday, April 12, 2007

ये क्या हो रहा है

भारत में महिला प्रशासनिक अधिकारियों में इस बात को लेकर रोष है कि उनसे मासिक-धर्म संबंधी जानकारी देने के लिए कहा जा रहा है.
बीबीसी में यह लेख पढ़ते ही काफी कुछ सोचने को मजबूर हो गया. आखिर यह हो क्या रहा है? कामकाज का वार्षिक आकलन और उनकी स्वास्थ्य जाँच के नाम पर किसी की निजता भंग करने का यह कौन सा खेल है. क्या इससे पहले उनका कामकाज बेहतर नहीं होता है जो मासिक धर्म जैसी जानकारी देने के बाद कामकाज में तेजी आ जाएगी. यह तो किसी महिला के मानवाधिकारों का सीधा हनन है. वैसे गाहे बगाहे जागने वाले महिला आयोग को अब तक यह क्यों नहीं दिखा यह भी समझ से परे है.

Wednesday, April 11, 2007

बहस अब इस पर हो

मोहल्ले में आरफा का लेख आने के बाद तमाम जगह बहस शुरू हो गई है. सभी का नजरिया अपनी जगह सही है. लेकिन मैं अब चाहता हूं कि बहस अब इन मुद्दों पर शुरु हो-
1. अल्पसंख्यक कौन हो, उसके निर्धारण की प्रक्रिया क्या हो, कितना प्रतिशत रखा जाये कि वह अल्पसंख्यक कहलाए?
2. आरक्षण का आधार क्या हो, आरक्षण की वर्तमान प्रक्रिया अब खत्म की जानी चाहिये या नहीं?