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Friday, April 20, 2007

धर्म को धर्म रहने दें ...

मैं नहीं जानता कि इसे पढ़ने वाले आस्तिक है या नास्तिक, किस धर्म को मानने वाले है. लेकिन यदि वे आस्तिक हैं तो किसी देवी देवता पर विश्वास तो करते होंगे. किसी धर्म को मानते हैं तो उसपर आस्था भी होगी. आज जब पूरे विश्व को एक गांव बनाने की सोच जारी है ऐसे में मैं नहीं सोचता कि कोई एक किसी दूसरे की आस्था पर चोट करेगा. सहमत और असहमत होना एक अलग चीज है लेकिन यह नहीं कि हम किसी एक धर्म पर आस्था रखते हैं तो दूसरे धर्म को बुरा कहें. यहां मैं किसी को यह नहीं कहना चाह रहा कि तुमने ऐसा करके गलत किया है लेकिन मेरा निवेदन सभी से है कि किसी की आस्था पर चोट पहुंचा कर आप सच्चाई उजागर नहीं कर सकते. रही बात कमियों की तो वह सबमें कुछ न कुछ है. रही बात रीति रिवाजों की , कर्मकांडों की , प्रथाओं की तो उस धर्म की समाज को चलाने की एक व्यवस्था थी जिसे यह रूप दे दिया गया. हालांकि यह मेरा नजरिया है और जरूरी नहीं सभी इससे सहमत हों. पहले आज की तरह नियम-कानूनऔर शासन प्रणाली नहीं थी. ऐसे में समाज को सही राह दिखाने के लिये धर्म का सहारा लिया गया. धर्म भीरू जनता को बताया गया कि ऐसा करो नहीं तो ऐसा हो जाएगा. गलत काम मत करो वरना देवता - ईश्वर का कहर टूटेगा. जो आगे चलकर एक धर्म व उसके रीति रिवाज व मान्यताओं का रूप लिये. निश्चित तौर पर इनमें भी कोई कमियां रहीं होगी. रही बात किसी धर्म के सहिष्णु होने की तो यदि वह सहिष्णु नहीं होगा तो धर्म ही नहीं होगा. किसी एक व्यक्ति की सोच या खोज से मान्यताएं व विचारधारा नहीं बदल सकती. फिर देवताओं के हथियार रखने की बात जहां तक है तो देवता अच्छाई के प्रतीक है और बुराई के संहार के लिये हथियार रखने पड़े. एक अन्य धर्म में कर्बला में लड़ाई लड़ी गई . वहां भी निश्चित तौर पर हथियार रहे होंगे. सुरापान की बात करे तो होली ऑफ ग्रेल में क्या पिया गया था. रही बात वेश्यागामी होने की तो मेरे समझ में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि देवता वेश्यागामी थे . हां जितना मैने पढ़ा है यह जरूर कि दरबार में नृत्य की महफिल सजती थी अब इसे वेश्यागमन माने तो मैं कुछ नहीं कहूंगा. हां रोमन देवताओं के बारे में कुछ तथ्य जरूर हैं लेकिन वे भी प्रासंगिक है. दूसरा यदि यह सारी बातें सही भी मान ले कि “ये सहिष्‍णुता का धर्म नहीं है। इस धर्म के तमाम देवता हथियारों से लैस हैं, वेश्‍यागामी हैं और शराबी तो हैं ही“ तो इस धर्म में यह व्यवस्था भी है कि हर देवता के अपने - अपने उपासक है. तांत्रिक जो श्मसान पूजा करते हैं उनके देव अलग है तो प्रेमियों के कान्हा है तो आदर्श पुरुष देवतुल्य राम के उपासक अलग है. फिर इसी धर्म में ही यह व्यस्था है कि जीवन जीने की कला को चार आश्रमों में बांटा गया और सबमें एक स्पष्ट विभाजक रेखा है किसी को किसी से जोड़ा नहीं गया. अर्थात जीवन के पड़ाव को आश्रम से जोड़ कर उनके कृत्य निर्धारित कर दिए गए. निश्चित तौर पर इसमें भी कमियां हो सकती है. लेकिन जहां उपासना की इतनी छूट है इतने तरीके हैं साथ ही इसी धर्म में ही जैन , बौद्ध जो चीन से जापान तक पताका फहरा रहा है और भी न जाने कितने हैं, कितनी जातियां हैं जो इसमें समाहित है. नदियों को , पशुओं को (किसी की नजर में ) इसमें माता की हैसियत दी गई हो वह धर्म कैसे सहिष्णु नहीं हो सकता . यह तो मेरी अपनी आस्था है . और मैं मानता हूं यह धर्म सहिष्णु है. यह भी हो सकता है किसी को इसके नियम कायदे या कुछ न भाए तो मैं नहीं कहता कि वह इसे स्वीकारे लेकिन मैं यह भी नहीं चाहूंगा कि कमियों के नाम पर कोई किसी की आस्था को चोट करे न ही मैं किसी अन्य की आस्था को चोट पहुंचाना अच्छा समझता , इसलिये मुझ अल्पज्ञानी का निवेदन है कि दोबारा ऐसा न करें. धर्म और जाति की बहस सिर्फ विवाद को जन्म देती है. रही बात मुद्दों की तो इस जहां में और भी है. मैने पूरी कोशिश की है किसी को बुरा न लगे बावजूद यदि कुछ गलत लगा हो तो निवेदन है वो इसे अन्यथा न ले और मुझे कहे . मैं निश्चित तौर पर उसे हटा दूंगा.

Wednesday, April 18, 2007

मरीज को मार डालेंगे ये डॉक्टर

विगत दिवस सतना जिले के पहाड़ी इलाके में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक मरीज की मौत हो गई. इससे आक्रोशित स्थानीय निवासियों ने चिकित्सालय में तोड़फोड़ की, काफी उत्पात मचाया. पुलिस भी पहुंची. समझाइश भी दी और कुछ के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ.
ये था घटनाक्रम . वहां जाने के बाद जब घटना की हकीकत पर पहुंचे तो पता चला यहां पदस्थ चिकित्सक के इलाज के दौरान कई मरीज असमय काल के गाल में समा चुके हैं. हालांकि चिकित्सक में कोई खोट नहीं है. बाकायदा एमबीबीएस है लेकिन मरीज तो मर ही रहे है.
घटना के दूसरे दिन भी वहां गया. कुछ लोगों ने बताया कि डाक्टर साहब पड़ोस के गांव के ही हैं. ज्यादा दूर न होने पर हम चल दिये. अपने घर में डॉक्टर साहब मिल गए . बिल्कुल डरे सहमे. तमाम दलीलें फिर क्षेत्र में अशिक्षा, फिर क्षेत्र के बाहुबली नेता आदि पर चर्चा होती रही. बात -बात में उनकी शिक्षा पर भी बात होने लगी तब जाकर पता चला कि वे आरक्षित कोटे से चयनित हुए थे . प्रतिशत की बात छोड़िये हुजूर वे तो अंकों के आधार पर आरक्षण के पायदान पर चढ़ कर डाक्टर बन कर नौकरी कर रहे है.
वहां से लौट कर दो घटनाएं जेहन में दौड़ गई -
विगत वर्ष रीवा से 83 प्रतिशत पाने वाले सामान्य कोटे के छात्र का पीएमटी में चयन नहीं हुआ था वहीं महज कुछ अंक (याद नहीं है) पाकर आरक्षित कोटे का छात्र चयनित हो गया.
अब आप सहज ही समझ लीजिए कि इन चिकित्सकों के हाथों में मरीज का भविष्य क्या होगा. वहीं आज फिर उच्च शिक्षण संस्थाओं में एक बार फिर बहस गर्म है. लेकिन नीति नियंताओं को कौन बताए कि इन डाक्टरों का इलाज तो आकर देखें या लगातार 6 महीने खुद अपना इलाज इनसे करा लें और आरक्षण लागू कर दें.
वहीं एक सवाल यह भी है कि आखिर उस 83 फीसदी वाले छात्र का दोष क्या था? यदि उसका कोई दोष नहीं है तो फिर किसी पिछड़े वर्ग को आगे लाना है तो उसे सुविधाएँ देनी चाहिए न कि आरक्षण...

Monday, April 16, 2007

कौन सा नेहरू-गांधी खानदान

राहुल का बयान - देश की आजादी का श्रेय नेहरू गांधी खानदान को जाता है. बंगलादेश का निर्माण भी इसी खानदान ने कराया. ...

अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान को बंगलादेश निर्माण का जवाब विदेश मंत्री देंगे और इन्हें भारत की जनता. लेकिन इस बयान से यह सिद्घ हो गया कि इन्हें कितनी राजनीतिक समझ है और देश के बारे में कब और क्या बोलना है यह भी वे शायद नहीं जानते.

लेकिन नेहरू गांधी खानदान है क्या वे खुद जानते हैं इसके बारे में शायद नहीं तो देखें

बाकी इस खानदान की असलियत का चिट्ठा http://www.sikhsundesh.net/nehru_dynasty.htm में दिया हुआ है.

Sunday, April 15, 2007

देश से बड़ा है अफजल

राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की ब्रुसेल्स यात्रा के दौरान ब्रिटेन के एक मानवाधिकार संगठन ने अफजल गुरु मामले को यूरोप की संसद में उठाने की योजना बनाई है।
यह खबर महज खबर नहीं है बल्कि मेरे नजरिये से यह भारत की अस्मिता पर एक वैचारिक हमला है. आखिर भारत संपूर्ण प्रमुत्व सम्पन्न स्वतंत्र राष्ट्र है. इसके अनुसार हम अपना फैसला स्वयं लेते है. फिर आखिर भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल को फांसी की सजा पर ब्रिटेन की संसद का क्या काम. वहीं ब्रिटेन के 4 सांसद अफजल के प्रति दयालु रवैया अपनाने की बात करते हैं. आखिर ये दोगली नीति भारत के ही साथ क्यों. जब सद्दाम का मामला आया तब दयालु रवैया क्यों नही दिखा, अमेरिका में 11 सितंबर के बाद दयालु रवैया क्यों नहीं दिखा ... तब ये सांसद अंधे और बहरे थे क्या ...
लेकिन यह उनका नहीं हमारा ही दोष है जो हमने सबको कुछ भी कहने की छूट दे रखी है... अब वक्त है कि हम भी दूसरों के मामलों में बोले तब लोगों को शायद समझ में आए ...
इसके अलावा भारत में ही खुद अफजल के खैरख्वाह काफी है. मेरे नजरिये में तो इन्हें भी सजा सुना देनी चाहिये . क्योंकि अपराधी को शरण देने वाला व उसको बचाने की कोशिश करने वाला मेरी नजर में स्वयं एक अपराधी है.
यहां अफजल को फांसी न देने की वकालत करने वाले कश्मीर के गुलाम नबी आजाद, महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला कर रहे हैं . क्यों ? क्योंकि इन्हे न तो अफजल से मतलब है, न भारत की अष्मिता से, न संसद की गरिमा से, न आतंकवाद और न ही देश की सुरक्षा से. ये अपना भला और वोट के मोहताज है.
यही वे लोग हैं जो अब कश्मीर से सेना की वापसी चाहते है. अब तो इन्हें नेता कहने में शर्म आती है. ये नेता नहीं मौत व वोटों के सौदागर हैं. ये यह भी भूल जाते है कि आतंकवादी जब निर्दोष लोगों का खून बहा रहे हैं तब सेना ही इन्हें रोक रही है. अब भला सेना हटाकर ये किसका भला चाह रहे हैं आम जनता का या आतंकवादियों का. ऐसे में धन्य है प्रधानमंत्री जी जो सत्ता की लालच में इन्हे तव्वजों दे रहे हैं.
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इन्हे और इन जैसे लोगों के हाथों में देश की कमान है.
जब तक इनका स्वहित रहेगा तब तक स्वाधीन देश में भी हम स्वाधीन नहीं हैं. क्योंकि देश का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद के हमलावर को बचाने की कोशिश यह बताती है कि देश से बड़ा है अफजल.

Saturday, April 14, 2007

मेरा कमजोर हिन्दुस्तान

आज खबर पढ़ी कि ग्रेग चेपल ने एक आस्ट्रेलियाई अखबार में अपने साक्षात्कार में कहा है कि भारत का मीडिया सिर्फ सनसनी के लिए काम करता है फिर उल्लेख किया भारत छोड़ने से पहले अपने इलाज के दौरान की खबरों का साथ ही भारतीय टीम की हार के बाद अपनी असुरक्षा की. एक और खबर - इरान के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी अमेरिका को पच नहीं रही और एक बार फिर परमाणु करार टूटने का खतरा. फिर एक और खबर शांति वार्ता के दौरान पाकिस्तानी अधिकारी टेबल छोड़ कर चल दिये वहीं एक और खबर अग्नि 3 की सफलता चीन को रास नहीं आई उसने कठोर रवैया अपनाया ...
आखिर हम क्या इतने गिरे हुए है कि हमारी हर गतिविधि पर जिसे जो चाहे बोलने लगे. नहीं लेकिन कभी -कभी लगता है हां क्योंकि न तो कभी हम इसका सही खंडन करते हैं और न ही प्रतिकार. हां अपनी झूठी शान के लिये यह गाहे बगाहे जरूर कह देते हैं कि विश्व को हम आई टी में लीड करते है.
अरे हम चाहे तो आई टी ही नहीं सभी में लीड कर सकते हैं, लेकिन पुरानी सोच और पैमाने से निकलना होगा.
आखिर क्यों हमारे देश की प्रतिभाएं यहां से पलायन करती हैं. सभी जानते हैं सरकारें बयानबाजी करती हैं घोषणाएं होती है. लेकिन जमीनी हकीकत जस की तस . जब तक यह नहीं सुधरेगा हम कमजोर ही रहेंगे और हर कोई हमें घुड़की देता रहेगा.
अभी एक घटना और याद आ गई विगत वर्षों हमारे द्वारा पैदा किया बंगलादेश ही हमारी सीमा पर हमारे बीएसएफ कर्मियों को मारकर उनके शव बुरे हालात में लौटाए. और हमने क्या किया - कुछ नहीं. संसद पर हमला होने के बाद सीमा पर सेना पहुंची क्या हुआ - कुछ नहीं . चीन का हमारी सीमाओं के पास तक कहीं कहीं सीमा के अन्दर तक सैन्य पोस्ट तैयार किया जाना - यहां भी बोलने के अलावा हम कुछ नहीं कर सके ... कितने कमजोर है हम , कितना कमजोर है हमारा हिन्दुस्तान फिर कहते हैं मेरा देश महान्

Friday, April 13, 2007

उमर मुस्लिम समाज से बहिष्कृत !

विगत दिवस भोपाल में एक मुस्लिम युवक उमर द्वारा धर्म परिवर्तन कर अपना नाम उमेश रखकर सिंधी समुदाय की युवती प्रियंका से शादी रचाने के मामले ने तूफान का रूप ले लिया है. एक और जहां यह मामला राजनीतिक रंग भी ले रहा है तो दूसरी ओर धार्मिक संगठनों के मुल्ला मौलवियों व धर्म गुरुओं के बीच बहस शुरू हो गई है.इस शादी से भड़के सिंधी समाज के दबाव के चलते विगत दिवस पुलिस ने जहां लड़के के भाई जबरन थाने में बैठाए रही व उसके परिवार पर दबाव बनाया जाता रहा कि लड़के को पेश करों. वहीं दूसरी ओर नवदंपति को हाई कोर्ट ने राहत प्रदान करते हुए पुलिस को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिये व पुलिस को फटकार भी लगाई.लेकिन इसका दूसरा पक्ष जो है वह काफी स्याह है और इसपर सकारात्मक बहस की जरूरत है. इस विवाह से नाराज मुस्लिमों की संस्था मजलिस-ए-शूरा ने धर्म बदलकर शादी करने वाले उमर को कौम से बेदखल कर दिया है, साथ ही मुस्लिम महिलाओं व युवतियों को बुरका पहनने व पर्दा परंपरा का पालन करने कड़ी नसीहत दी है. तो सिंधी समुदाय ने भी लड़कियों को चेहरा ढंककर घर से बाहर निकलने और मोबाइल, स्कूटर के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फरमान जारी किया है. वहीं दूसरी ओर कुछ हिन्दू संगठनों ने भोपाल बंद का आह्वान किया है तो आल इण्डिया मुस्लिम त्योहार कमेटी ने भी इन विवाह पर नाराजगी जताते हुए उमर को कौम से बहिष्कृत करने के फैसले को सही ठहराया है.इस अंतरधार्मिक विवाह पर धार्मिक और सामाजिक आधार पर तरह-तरह की व्याख्याओं का दौर शुरू हो गया है तथा इसके समर्थन व विरोध में पुराने उदाहरणों के साथ बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया है. विश्व हिन्दू परिषद ने अगर-मगर के साथ समर्थन व विरोध की मुद्रा अख्तियार कर ली है. उसका कहना है कि उमर ने अगर धर्म परिवर्तन करके शादी की है तो कोई ऐतराज नहीं है लेकिन बगैर धर्म परिवर्तन के शादी हुई है तो इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा. वहीं जमीयत के प्रवक्ता ने कहा है कि शरीयत के मुताबिक ऐसे विवाह वर्जित है.अब सवाल यह उठ रहा है कि यह शादी इतने विवाद का विषय क्यों बन रही है. क्यों दोनों समुदाय अपने-अपने फरमान जारी कर रहे है. क्यों नवदंपति को अपनी जिंदगी नहीं जीने दी जा रही है. तब ये नैतिकता के ठेकेदार कहां थे जब भोपाल के नवाब पटौदी, वॉलीबुड सितारे शाहरुख खान व अरबाज खान, सितारवादक अमजद अली खान, भाजपा के शाहनवाज हुसैन व मुख्तार अब्बास नकवी, सपा के शाहिद सिद्दीकी ने हिन्दू कन्याओं से विवाह रचाया तो फिल्म अभिनेता ऋतिक रोशन और कांग्रेस सांसद सचिन पायलट ने मुस्लिम कन्याओं से विवाह रचाया. आखिर कब तक समाज व राजनीति के नाम पर प्यार को सूली पर चढ़ाया जाएगा.

Thursday, April 12, 2007

ये क्या हो रहा है

भारत में महिला प्रशासनिक अधिकारियों में इस बात को लेकर रोष है कि उनसे मासिक-धर्म संबंधी जानकारी देने के लिए कहा जा रहा है.
बीबीसी में यह लेख पढ़ते ही काफी कुछ सोचने को मजबूर हो गया. आखिर यह हो क्या रहा है? कामकाज का वार्षिक आकलन और उनकी स्वास्थ्य जाँच के नाम पर किसी की निजता भंग करने का यह कौन सा खेल है. क्या इससे पहले उनका कामकाज बेहतर नहीं होता है जो मासिक धर्म जैसी जानकारी देने के बाद कामकाज में तेजी आ जाएगी. यह तो किसी महिला के मानवाधिकारों का सीधा हनन है. वैसे गाहे बगाहे जागने वाले महिला आयोग को अब तक यह क्यों नहीं दिखा यह भी समझ से परे है.

Wednesday, April 11, 2007

बहस अब इस पर हो

मोहल्ले में आरफा का लेख आने के बाद तमाम जगह बहस शुरू हो गई है. सभी का नजरिया अपनी जगह सही है. लेकिन मैं अब चाहता हूं कि बहस अब इन मुद्दों पर शुरु हो-
1. अल्पसंख्यक कौन हो, उसके निर्धारण की प्रक्रिया क्या हो, कितना प्रतिशत रखा जाये कि वह अल्पसंख्यक कहलाए?
2. आरक्षण का आधार क्या हो, आरक्षण की वर्तमान प्रक्रिया अब खत्म की जानी चाहिये या नहीं?