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Saturday, November 1, 2008

कोटला में अधिनियम की उड़ी धज्जियां

फिरोज शाह कोटला स्टेडियम में २९ अक्टूबर को भारत आस्ट्रेलिया के बीच खेले गये क्रिकेट मैच में कानून की जमकर धज्जियां उड़ीं. भारत में सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद (व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण के नियमन और विज्ञापनों पर रोक) अधिनियम 2003 के तहत तंबाकू उत्पाद के विज्ञापनों के सार्वजनिक जगह पर प्रदर्शन पर रोक लगी है बावजूद इसके एक तंबाकू उत्पाद का विज्ञापन प्रदर्शित किया गया. (चित्र देखें) यह चित्र हमें भेजा है IMCFJ के धनन्जय सिंह जी ने.

Sunday, September 28, 2008

हाइवे से लड़की अगवा, भाजपाई बचाव में उतरे

27 सितंबर की रात 10 बजे शहर में खुलेआम एक इण्डिका में सवार में लोगों ने एक लड़की को जबरन उठा लिया. मामला पुलिस तक जैसे पहुंचा और कार्रवाई जैसे ही शुरू हुई उसके थोडी ही देर बाद भाजपा के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी अपराधियों को बचाने में जुट गए. हालात यह रहे कि भाजपा के इन
पदाधिकारियों ने देर रात तक पुलिस पर सत्ता का दबाव बना कर मामले को बदलवा तो लिया ही कहानी में लड़की का अपहरण ही हट गया और अपहृत व्यक्ति बदल कर लड़का हो गया.
प्रत्यक्षदर्शियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इण्स्ट्रियल एरिया स्थिति जिला उद्योग संघ के कार्यालय के समीप सतना रीवा राजमार्ग पर रात सवा दस बजे एक युवती अपनी स्कूटी क्रमांक १९ एमबी ८९१९ से गुजर रही थी. तभी एक इण्डिका कार एमपी. १९ जी ८३५३ में सवार कुछ युवा तेजी से स्कूटी के सामने आकर उसे रोक देते है. आनन फानन में उस लड़की को उठाकर उस कार में जबरन लाद लिया जाता है और वाहन तेजी से वहां से गुजर जाता है. मामला यहां तक जब प्रत्यक्षदर्शियों ने देखा तो तुरंत पुलिस को सूचना दी तथा वाहन का नंबर लिखाया. सूचना पर पुलिस भी तुरंत हरकत में आई लेकिन सतना पुलिस की यह तत्परता तब समझ में आई जब कुछ देर बाद मामला ही सुलटाने की कवायद में खुद पुलिस कर्मी भी शामिल नजर आने लगे. दरअसल जबतक पुलिस स्कूटी को अपने में कब्जे में लेकर निकली थी तभी घटनास्थल पर शहर कुछ भाजपाई और गल्ला के कई बड़े व्यापारी पहुंचे. यहां से
जब उन्हें जानकारी मिली की स्कूटी पुलिस के कब्जे में है तो वे बिना समय गंवाए अपने मोबाइलों से संपर्क में जुट गए और आनन फानन में घटना स्थल से बाईपास की ओर चले गए. बताया गया है कि इन्होंने ज्यादा वक्त न गंवाते हुए चेतक मोबाइल से संपर्क किया बाईपास में खड़ी पुलिस की चेतक के पास पहुंच गए. यहां से पुलिस की मोबाइल वाहन यूनिट संग्राम कालोनी पहुंची जहां रात को आमजन से स्कूटी दिखा कर यह पता करने लगी की इस वाहन को चलाने वाली युवती को जानते है. इसके पीछे पुलिस की मंशा युवती का पता पुष्ट करना रही. यहां से एक साजिश(बाईपास में हुई सेटिंग) के तहत पुलिस को यह बताया गया यह स्कूटी किसी लड़के की है. वह लड़का किसी बड़े गल्ला व्यापारी का लड़का है. यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि बाईपास से जनप्रतिनिधियों एवं गल्ला व्यापारी की वह गाड़ी यहां भी चेतक वाहन से साथ-साथ पहुंची हुई थी. इधर कुछ देऱ बाद पता चला कि आरोपी इण्डिका गाड़ी टिकुरिया टोला के पास बरामद कर ली गई है. इसके बाद थाने का घटना क्रम जाना जाय तो यहां भाजपा के वरिष्ट नेता तथा प्रदेश पदाधिकारी अनिल जायसवाल अपने पार्टी के साथियों के साथ मामला मैनेज करने पहुंच चुके थे. सत्ता का दबाव काम आया और पुलिस ने भी जो कहानी बताई वह काफी चौंकाने वाली रही. इस नई कहानी के अनुसार अपहरण लड़की का नहीं किसी लड़के का हुआ दर्शा दिया गया. इस जानकारी के बाद आगे का घटनाक्रम पता करने की फिर हमने जहमत ही नहीं उठाई.
क्यों नहीं थाने पहुंचा चेतक
यहां सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि प्रत्यक्षदर्शियों की सूचना पर जब पुलिस का मोबाइल वाहन चेतक लड़की की स्कूटी बरामद कर चुका था तो उसे लेकर वह थाने क्यों नहीं पहुंचा. इसके अलावा वह स्कूटी सहित बाईपास में क्या करने गया था. बाईपास में चेतक स्कूटी सहित खड़ा है इसकी जानकारी उन भाजपा नेताओं और गल्ला व्यापारियों को कैसे पता चली. इस काण्ड में जिसका अपहरण हुआ वह लड़की थी बाद में वह लड़के में कैसे बदल गई. इस जैसे कई सवाल हैं जो अभी भी अनुत्तरित हैं.
सलवार कुर्ता पहने थी लड़की
प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो लड़की काली स्कूटी में सवार थी तथा सलवार कुर्ता पहने हुए थी. अंदाज से ज्यादा उम्र की नजर न आने वाली उस युवती ने अपना मुंह सफेद दुपट्टे से ढंक रखा था.

Wednesday, August 20, 2008

2012 में प्रलय होना असंभव

हर चैनल अखबार में इन दिनों यही बात कि 2012 में प्रलय का दिन है. आज तो इण्डिया टीवी वालों ने इसका ऐसा प्रदर्शन किया मानों कि भविष्य में जाकर
सब कुछ देख कर ही आएं है. यहां मैं कहना चाहता हूं कि यह सब बेसिर पैर की बातें हैं. ये सभी अपने तरीके से सिर्फ अपने को हिट कर रहे हैं. न तो इनके द्वारा किसी विषय विशेषज्ञों से बात होती न ही इनके संवाददाता कुछ जानते सिर्फ भ्रम फैला कर अपनी टीआरपी. बढ़ा रहे है. कभी कहेंगे वैज्ञानिकों का ऐसा दावा है या फिर कुछ और लेकिन यह नहीं बताएंगे किस वैज्ञानिक का ऐसा कहना है...
विज्ञान के नजर में पृथ्वी की प्रलय (जीवन का विनाश) सिर्फ सूर्य या उल्कापिंड या फिर सुपर बाल्कैनो (महाज्वालामुखी) ही कर सकते हैं. इसमें भी सुपर बाल्कैनों पृथ्वी से संपूर्ण जीवन का विनाश करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि कितना भी बड़ा ज्वालामुखी होगा वह अधिकतम 70 फीसदी पृथ्वी को ही नुकसान पहुंचा सकता है. रही बात उल्कापिंड की तो अभी तक पृथ्वी के घूर्णन कक्षा या इसके आसपास ऐसी कोई उल्कापिंड अभी तक नहीं दिखी है जो पृथ्वी को प्रलय के मुहाने पर ला दे, न ही अभी दूर-दूर तक ऐसी कोई संभावना है. तीसरा है सूर्य- तो सूर्य जब अपनी चरम अवस्था में पहुंचेगा तभी वह पृथ्वी मे प्रलय ला सकता है. दरअसल सूर्य एक तारा है. हर तारे की मौत तय होती है.
जब यह मरता है तो अपने सारे ग्रहों के साथ मरता है. तारा खत्म होने से पहले लाल दानव तारा या श्वेत बामन तारे में बदलता है. इस प्रक्रिया में उसका द्रव्यमान काफी कम होता जाता है जिससे उसकी प्रचंडता और गुरुत्वाकर्षण में बढ़ोत्तरी होती जाती है. इसके प्रभाव से वह अपने ग्रहों को अपनी ओर खींच कर उन्हें जला देता है फिर स्वयं ब्लैक होल में बदल जाता है. ब्लैक होल इस लिये कहा जाता है क्योंकि इसका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि अपने पास से गुजरने वाले प्रकाश जिसकी गति तीन लाख किलो मीटर प्रति सेकेण्ड होती है उसे भी अपनी ओर खीच लेता है. इस कारण वहां काला धब्बा ही नजर आता है. लेकिन अभी सूर्य को इस अवस्था में आने में अरबों वर्ष लगेंगे. दूसरी ओर कुछ का कहना है 2012 में सूर्य अपने चरम पर होगा और पृथ्वी झुलस जाएगी. हां यह सही है इस दौरान सूर्य अपने चरम पर होगा. लेकिन यह हर 11 वर्ष में होने वाली सतत प्रक्रिया है. जिसे इलेवन इयर साइकिल के नाम से जाना जाता है. इस दौरान सूर्य में सन स्पाट ज्यादा बनते हैं, सौर आंधिया चलती हैं तथा सौर लपटें ज्यादा बडी बनती है. जिससे सौर विकरण काफी तीव्र गति से बनते है. यहां यह स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि सौर लपटें पृथ्वी तक नहीं आ सकती न ही आंधी. हां यहां सौर विकरण का प्रभाव होता है तथा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रभाव जरूर असर करता है. वह भी ध्रुवों पर ज्यादा. लेकिन इसके प्रभाव कृत्रिम उपग्रहों, विमानों, अंतरिक्ष यानों तथा यान से बाहर रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों पर पड़ता है.
कास्मिक रे पर काम कर रहे विश्व के तीसरे सबसे बड़े वैज्ञानिक डॉ एस.पी. अग्रवाल ने इन बातों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मानव जीवन पर इसका प्रभाव इतना मात्र होगा कि पक्षी यदा कदा अपना रास्ता बदल देते हैं तथा नगण्य संख्या में हृदय रोगी परेशानी में आ सकते हैं. इसके अलावा मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. उन्होंने कहा कि यह कहना कि 2012 में पृथ्वी में प्रलय होगी पूर्णतः गलत है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जैसे लोग कहते हैं कि प्रलय में पृथ्वी डूब जाएगी तो वह भी गलत है क्योंकि यदि समुद्र का पूरा पानी तथा आसमान में व्याप्त पूरी वाष्प का पानी तथा पृथ्वी में मौजूद पूरी बर्फ भी यदि पिघल कर पानी बन जाए और पूरी पृथ्वी पर फैले तो वह पूरी धरती से महत ढाई फीट उंचाई तक ही पानी भर सकती है और यह पूरा पानी सत्रह दिन में सतह द्वारा सोख लिया जाएगा.

इस लिये पृथ्वी के प्रलय के डर से दूर होकर मस्त रहें तथा चैनलों व अखबारों की प्रलय भरी बेवकूफियों का आनंद लें. मेरा मानना तो यह है कि इन चैनलों को हकीकत सामने लानी चाहिए अंधविश्वास दूर करना चाहिए न कि जबरन की नाटकीयता द्वारा लोगों में भय भरना चाहिये.

Sunday, August 17, 2008

भाषा, संस्कृति और गांव का दामाद

विकसित राष्ट्र और हिन्दी का विकास में अनुनाद सिंह की टिप्पणी का मैं पूरा सम्मान करता हूं. हो सकता है मैं गलत भी होऊं लेकिन मैं अनुनाद सिंह से पूरी तरह सहमत नहीं हूं.
यह सही है कि लार्ड मैकाले का मानना था कि जब तक संस्कृति और भाषा के स्तर पर गुलाम नहीं बनाया जाएगा, भारतवर्ष को हमेशा के लिए या पूरी तरह, गुलाम बनाना संभव नहीं होगा। लेकिन महोदय यहां आपको गुलाम कौन बना रहा है. दरअसल हम सभी अपनी रोटियां सेंकने के लिये हमेशा एक भय का वातावरण बनाने के आदी हो गए हैं कि फलां हमें गुलाम बना रहा है मैं पूछता हूं कि कौन सा देश भारत को भाषा व संस्कृति के आधार पर गुलाम बनाने की कोशिश कर रहा है. मेरे ख्याल से कोई नहीं .... लेकिन फिर भी हम कहने से नहीं चूक रहे...

दरअसल हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम हिन्दी भाषा के साक्षर होने की बात करते हैं या हिन्दी की स्वीकार्यता की. हिन्दी साक्षर करने की बात है तो उसे शिक्षा से जोड़ दीजिए लेकिन यदि ससम्मान हिन्दी की स्वीकार्यता की बात करें तो फिर शायद हमें अपने पैरों पर पहले खड़े होना होगा फिर हिन्दी की आवाज उठानी होगी.

रही बात मैकाले की संस्कृति की तो मुझे याद है कि पहले मेरे पिता जी जब अपनी ससुराल जाते थे तो वे पूरे गांव के दामाद होते थे और मैं पूरे गांव का भान्जा लेकिन आज उस घर में ही नई पीढ़ी दामाद को पहचान ले तो बड़ी बात है. क्यों हम अब घर के आंगन को कुंवारा रखते हुए बारात घरों से शादी करते हैं. बाराते दूसरे गांव या शहर न जाकर वधू पक्ष को अपने शहर में बुला लेते हैं क्या इससे हम एक दूसरे के रीति रिवाजों से परिचित हो सकेंगे. दूसरी एक और बात याद आती है कि हमारे पड़ोस की आंटी के यहां मायके से जब अचार आता था तो वे हमें भी देती थी. बदले में जब वह कटोरी वापस की जाती थी तो हमारे घर से भी कुछ न कुछ दिया जाता था. इस लेन देन को आप क्या कहेंगे. समाजिक बंधन या समाज वाद या कुछ और लेकिन आज के बड़े लोग इतनी दूरियां बना चुके हैं कि यदि घर में प्याज खत्म है तो वे पड़ोस से मांगना शर्म की बात कहेंगे. हो सकता है मैं गलत होऊं लेकिन वो अचार और प्याज हमें सामाजिक रूप से जोड़ती है तो गांव का दामाद हमें सांस्कृतिक रूप से मजबूत करता है. लेकिन अब यह दोनो हाशिये पर जा रहे हैं. यह तो महज कुछ उदाहरण है लेकिन हमारे अगल बगल में आज न जाने कितना कुछ बदल चुका है. हमारे बच्चे अब पड़ोसियों के भरोसे नहीं छोड़े जा सकते आखिर यह सब क्या है. हम सिर्फ पाश्चात्य संस्कृति का रोना रोते है लेकिन अपनी विरासत को खुद खोते जा रहे हैं .... इसलिये मेरा मानना है कि भाषा और संस्कृति का दिखावा करने से कुछ नहीं होगा हमें खुद बदलना होगा तथा उन्नत होना होगा तब जाकर कहीं हमें सफलता मिलेगी.

विकसित राष्ट्र और हिन्दी का विकास

अमेरिका के पास सबसे ज्यादा पैसा है, आस्ट्रेलिया के पास सबसे ज्यादा यूरेनियम है, हर विकसित देश के पास पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन भारत के पास पर्याप्त लोग है... अर्थात पर्याप्त मानव संसाधन हैं. लेकिन इनके लिये भारत में न तो पर्याप्त संसाधन हैं न अवसर.
अब बात करते हैं अपनी भाषा और उसके सशक्तिकरण की. हम हमेशा यही राग अलापते हैं कि हिन्दी को मजबूत करने के कोई प्रयास नहीं किये जा रहे तो मेरे एक मित्र सदैव यह उदाहरण देते हैं कि विदेशों में उन देशों की भाषा ही सर्वमान्य भाषा है वहां चपरासी से लेकर अधिकारी तक सभी एक ही भाषा में काम करते हैं. वहां पढ़ाई भी एक ही भाषा में होती है लेकिन भारत में ऐसा नहीं फिर इस पर लंबी बहस होती है और बात बेनतीजा हो कर अधूरी रह जाती है. काफी सोचने के बाद मेरा मानना है कि जब तक हम विकसित देश नहीं हो जाते तब तक हिन्दी पूरे देश की भाषा नहीं बन सकती चाहे इसके लिये हम कितने भी प्रयास कर लें या फिर कितने भी आयोजन कर लें.

अब हम बात करते हैं कि भारत की पूरी शिक्षा हिन्दी में क्यों नहीं होती तो मेरा मानना है कि चलिये हम पूरी शिक्षा हिन्दी में कर भी लेते हैं सारी किताबे हिन्दी में तैयार भी हो जाती हैं तकनीकी, चिकित्सा सहित सारी पढ़ाई हिन्दी में शुरू हो जाती है तो हासिल क्या होगा... इन परिस्थितियों में जो भी पेशेवर तैयार होंगे वे बेहतर हिन्दी तो जानेगें लेकिन उन्हे हम कितना रोजगार दे पाएंगे... क्या हमारे यहां इतनी व्यवस्थाएं हैं कि उन्हें हम अपने यहां खपा सकें... शायद नहीं. फिर ये बेहतर हिन्दी भाषी क्या बाहर रोजगार पा सकेंगे...

दूसरा क्या हमारे यहां इतने संसाधन हैं कि नित नई खोज अपने यहां अपनी भाषा में कर सकें... निश्चित तौर पर नहीं फिर हम हिन्दी भाषी अपने अल्पसंसाधनों व हिन्दी भाषा ज्ञान के माध्यम से बाहरी प्रणालियों से समन्वय बना सकेंगे... शायद नहीं

लोग कहते हैं विदेशों में जाने वाले लोगों को वहां की भाषा सीखनी पड़ती है तो भारत आने वाले क्यों नहीं सीखते हिन्दी... तो महाशय हम अभी विकास की उस प्रक्रिया से गुजर रहे हैं जहां लोग अभी आना शुरू किये हैं. यदि हम उन्हें अभी नहीं समझ पाएंगे या उन्हें नहीं समझा पाएंगे तो वे दूसरी ओर जाना शुरू कर देंगे... फिर हम उनपर हिन्दी लाद कर क्या हिन्दी का विकास कर सकेंगे...

आज हम गरीबी के साथ जीने वाले तथा कम रोजगार के अवसरों से घिरे देश में रह रहे हैं यदि हमने हिन्दी की चादर ओढ़ ली तो क्या हम रोजगार के बेहतर अवसर बाहर पा सकेंगे... शायद नहीं...

ऐसे कई मामले हैं जहां पूर्ण हिन्दी अपना लेने से हम नुकसान में रहेंगे. हां लेकिन जब हम विकसित राष्ट्र हो जाएंगे तथा हमारे मानव संसाधन पूर्ण संसाधन में बदल जाएंगे तो फिर हमें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. उस समय हम हिन्दी को लोगों की मजबूरी बना सकेंगे. तब हमारे पास मानव संसाधन को खपाने के पर्याप्त संसाधन होंने और उसका माध्यम होगी हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी...

इसलिये यदि हिन्दी को राष्ट्र भाषा तथा सर्वमान्य भाषा बनाना है तो हिन्दी के विकास के दिखावटी प्रयास बंद कर देश को विकसित राष्ट्र बनाने में जुटें. विकसित होते ही हिन्दी अपने आप राष्ट्र भाषा बन जाएगी.

Saturday, August 16, 2008

याहू मेल से beta हट गया

मैं जिस error से परेशान था दरअसल वह याहू द्वारा किया गया अपग्रेडेशन था. अभी तक मैं याहू मेल का लेटेस्ट बीटा वर्सन प्रयोग कर रहा था लेकिन अब याहू ने इसकी टेस्टिंग पूरी कर ली है और इसे पूर्ण परीक्षण उपरांत नए सिरे से लांच कर दिया है. अब याहू मेल का एडवांस वर्सन बीटा नहीं रह गया. जो लोग याहू मेल क्लासिक प्रयोग कर रहे थे शायद उन्हे इस समस्या से न जूझना पड़ा हो.

Friday, August 15, 2008

समस्याग्रस्त हुआ याहू मेल

याहू की मेल सेवा 14 अगस्त से किसी बड़े error से जूझ रही है. वजह तो नहीं मालूम लेकिन याहू मेल इन दिनों सामान्य स्थितियों में नहीं खुल रहा. पहले तो मैने सोचा कि शायद मेरे मेल बाक्स में ही कुछ उल्टा सीधा हो गया होगा लेकिन जब अपने कुछ मित्रों से पूछा तो वे भी इसी समस्या से जूझ रहे थे. यह बात तो सतना जिले की है. बाकी का मुझे पता नहीं. यदि आपके साथ भी कुछ ऐसा है तो बताएं. कुछ का तो यह भी कहना है कि जी-मेल से मिल रही चुनौतियों से बचने के लिये शायद याहू वालों ने कुछ अपग्रेडेशन शुरू किया है. यह समस्या शायद इसी वजह से आ रही हो.

Monday, July 21, 2008

इस(डील की) लड़ाई में सहभागी बने

मामला दरअसल सरकार ही नहीं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का है. परमाणु डील से शुरू हुई लड़ाई अब राजनीतिक स्वार्थ का रूप ले चुकी है. जो जहां अवसर पा रहा है वहीं बिक रहा है. जिसे अवसर मिल रहा है वह खरीद रहा है. खरीदने और बिकने वाले कोई और नहीं लोकतंत्र के वे नुमाइंदे हैं जो हमारी ही गलती से वहां तक पहुंचे हैं जहां पहुंचने का मेरी नजर में कोई हकदार नहीं है. न तो इन्हे लोकतंत्र की मर्यादा का ज्ञान है न ही उन्हें उस मुद्दे की ही जानकारी है जिस पर लड़ाई हो रही है.
परमाणु करार से यह नुकसान है ... इस करार से यह फायदा है... दिनभर इसका राग तो वे अलाप रहे हैं लेकिन उन्हें यही जानकारी नहीं है कि परमाणु करार है क्या?
इनसे हालांकि उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इनकी हरकते देख कर तो मैं शर्मशार हो ही रहा हूं कि इनके दम पर हम भविष्य में भारत को महाशक्ति का दर्जा दिलाने का स्वप्न देख रहे हैं. इनसे बेहतर तो सड़ी लाशों में बिलबिलाने वाले वे कीड़े हैं जिन्हे यह जानकारी होती है कि कौन सी लाश सड़ी है और कौन नहीं. लेकिन हमारे ने नेता तो यह भी नहीं जानते कि कौन से और किस मामले में उन्हें बिलबिलाना है. हत्यारे और अपराधी देश की दिशा तय कर रहे हैं. अनपढ़ों की फौज हाइड एक्ट पर रटारटाया बयान दे रही हैं...
इन्हें टीवी स्क्रीन पर देख कर व अखबारों में पढ़कर तो इनके बारे में घिन आ रही है. एक चैनल का वह प्रश्न जिसमें सांसदों से यह पूछा गया कि एटमी डील क्या है? उनके जवाब सुनकर शायद बुद्धिजीवी तो कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं है.


इसलिये सभी से निवेदन है इस मुद्दे पर कुछ न कुछ तो टिप्पणी लिखें. जरूर यह आवाज ज्यादा दूर तक नहीं जाएगी लेकिन जहां भी जाएगी अपनी धमक तो सुना कर ही रहेगी.

Saturday, July 19, 2008

कातिल तय करेंगे देश की किस्मत

आजादी के दीवानों ने अपने सर कलम कराते वक्त यह न सोचा रहा होगा कि आजाद भारत की किस्मत का फैसला कातिलों के हाथ होगा न ही संविधान निर्माताओं ने यह सोचा होगा कि खून से सने हाथ संविधान के पन्नों के सहारे ही लोकतंत्र की दिशा तय करेंगे.
लेकिन यह होने जा रहा है. सारा देश देख रहा है लेकिन लोकतंत्र के इन फरमाबरदारों को इससे क्या लेना. उन्हें तो अपनी लाज बचानी है चाहे देश का सत्यानाश हो जाए. जिन्हे यह नहीं मालूम के राष्ट्र गीत क्या है वे राष्ट्र की परिभाषा नहीं जानते वहीं आज राष्ट्र की सबसे प्रभुत्वशाली भवन में जाकर अपनी मनमानी कर रहे है.
हत्या, बलात्कार, लूट जैसे जघन्य अपराधों के जुर्म में सींखचों के पीछे कैद अपराध जगत के बाहुबली अपराधी अब सरकार की जिंदगी का फैसला करेंगे. देशभक्ति का दम भरने वाले दल सारी मर्यादाएं भूल कर सरकार बचाने व गिराने के लिये इनके पैरों में गिर रहें.
अब क्या आशा कर सकते हैं कि देश की दशा व दिशा क्या होगी.

Sunday, April 13, 2008

तो क्या वह लाश लापता पत्रकार की है ?

विगत दिवस मैहर में मिली युवक की लाश का मामला गहरा गया है. युवक की हत्या के बाद फरार युवती की भी हत्या कर दी गई है. उसका शव बनारस के एक होटल में बरामद किया गया है. संभावना जताई जा रही है मैहर में मिला शव इलाहाबाद से लापता एक पत्रकार का हो सकता है. इधर लाश के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस और मध्य प्रदेश पुलिस में हड़कंप मच गया है. इससे मामले के हाईप्रोफाइल होने के भी कयास लगाए जा रहे हैं. सतना के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजाराम सिंह ने बताया है कि मैहर के कादम्बनी होटल में के गेस्ट हाउस में युवक की हत्या के बाद वहां से जो दस्तावेज मिले थे वहीं दस्तावेज बनारस के सिगरा इलाके में स्थित होटल आदित्यइन में हैं. मैहर से युवक की हत्या के बाद फरार हुई युवती का शव उसी होटल के एक कमरे में पाया गया है. मैहर में मृत युवक ने अपना नाम मनोज सिंह तथा युवती का नाम अंजली सिंह बताया था तथा पता दुर्गा अपार्टमेंट सरदार पटेल रोड इलाहाबाद उत्तरप्रदेश दर्ज कराया था. लेकिन पुलिस की पड़ताल में युवती का शव मिलने के बाद उसका असली नाम ज्योत्सना डेविड पता चला है. उसने नीरज सिंह नामक युवक से शादी करके अपना नाम ज्योत्सना सिंह लिखना शुरू कर दिया था. वह इलाहाबाद में एक नर्सिंग होम में नर्स थी. युवती अपने साथी युवक के साथ 6 अप्रैल को दोपहर मैहर होटल में पहुंची थी. बुधवार को तड़के वह युवती होटल से फरार हो गई थी तथा बाद में होटल के वेटर को फोन करके बताया कि मेरे कमरे में युवक की लाश पड़ी है. वह मेरा पति नहीं था. वह सिर्फ इन्ज्वाय करने आई थी. उसने यह भी बताया था वह काफी दूर निकल आई है और अपना सिम कार्ड तोड़ रही है. इसके बाद पुलिस की छानबीन में पता चला कि इलाहाबाद में एक दैनिक हिन्दी अखबार का उप संपादक स्तर का कर्मचारी लापता है. इस घटना की सूचना मिलने पर इलाहाबाद से पुलिस व उसके परिजन यहां शव की शिनाख्त के लिये पहुंचे हैं. शिनाख्त में विरोधाभासमैहर शिनाख्त में पहुंची पुलिस व युवक के परिजनों ने जहां शव की अखबार के कर्मचारी होने से इन्कार किया है वहीं होटल के एक कर्मचारी ने उनके साथ लाई फोटो को देख कर पूरी तरह से यह संभावना जताई है कि फोटो मैहर में मृत युवक की ही है. इस बात को लेकर स्थानीय पुलिस उहापोह में है.

क्या माफिया या हाईप्रोफाइल लोगों से जुड़े हैं तार
इस घटना ने यूपी व एमपी पुलिस को झकझोर कर रख दिया है. इसके पीछे असलियत क्या है यह जानने की कोशिश लगातार की जा रही है. कयासों की बात करें तो इस घटना के पीछे ऐसा जान पड़ता है कि युवक के पास कोई बड़ा मामला रहा होगा. वह सनसनी खेज घटना को अंजाम देने वाला रहा होगा. इस लिये माफिया या हाईप्रोफाइल लोगों ने युवक की हत्या के लिये युवती का इस्तेमाल किया होगा.बाद में सबूत मिटाने के लिये युवती की भी हत्या कर दी.

मामा ने भी किया बलात्कार
बनारस में युवती के कमरे से एक पत्र मिला है जिसमें लिखा है कि मैं परेशान हूं . मेरा पति ठीक नहीं है. उसने पूरे इलाहाबाद में मेरा दैहिक शोषण कराया. मामा ने भी मेरा बलात्कार किया. मेरा पति नीरज सोनभद्र टाडा का है. वह इण्डालको में नौकरी करता था. तभी से मेरे और उसके बीच संबंध बन गए थे. पन्द्रह दिन से पति भी लापता है.

इस हत्याकांड ने कई सवाल खड़े कर दिये है-
यदि शव पत्रकार का है तो पुलिस व परिजन पहचानने से इंकार क्यों कर रहे है.
पुलिस ने आज जो फोटो जारी किये है उसमें उसके माथे में गोली के भी निशान दिख रहे हैं.
आखिर युवती बनारस क्यों पहुंची.
युवती ने आत्महत्या की या उसकी हत्या की गई.
इस तरह के तमाम सवाल अभी गुत्थी बने हुए है वहीं एक और सामाजिक नजरिया भी सामने आया है कि क्या पति अपनी पत्नी को बाजार में उतार सकता है यदि हां तो उस युवती ने तब पुलिस को क्यों नहीं बताया.

Thursday, April 10, 2008

वो कौन थी?

सतना जिले के मैहर स्थित होटल कादम्बिनी में बुधवार की दोपहर एक युवक का संदिग्ध शव पाया गया. नवरात्रि चलने से यहां देश भर से लोग आ रहे है जिससे इस घटना ने क्षेत्र में सनसनी फैला दी है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार उस युवक की उम्र 30 के आसपास थी. पूरा शरीर नीला पड़ चुका था. नाक मुंह से खून निकल रहा था. पुलिस को सूचना होटल वालों ने दी. बताया गया है कि मृतक 6 अप्रैल को दोपहर 2.30 बजे एक महिला के साथ होटल आया था. यहां महिला को अपनी पत्नी बताते हुए कमरा बुक कराया था. होटल का कमरा खाली न होने पर रेस्ट हाउस के तौर पर बना के कमरा नं बी1 दिया गया था. उसने 3 हजार रुपये एडवांस भी दिये. उन्होंने बताया कि वे यहां दस दिन भी रुक सकते हैं. 7 अप्रेल को वे घूमने गए. युवक ने शारदा मंदिर में सिर भी मुंडवाया. वापस आकर खाने पीने की वस्तुएं मंगा कर बुधवार तड़के देवी दर्शन की बात कही.
उधर बुधवार को तड़के 4 बजे महिला होटल से निकल कर कहीं चली गई. दोपहर लगभग ढाई बजे उसने ही अपने मोबाइल से होटल के रिशेप्शन में फोन कर कमरे में शव पड़े होने की सूचना दी. उसने बताया कि वह युवक उसका पति नहीं है. वह यहां एन्ज्वाय करने आई थी. अब वह काफी दूर आ चुकी है. तथा उसका पता लगा पाना मुश्किल है. इस लिये उसे तलाश करने की कोशिश न करें और बात करने के बाद वह सिम भी तोड़ देगी. पुलिस को सूचना करके कमरे से लाश निकलवा लो.
इस जानकारी से घबराए होटल वालों ने इसकी सूचना पुलिस को दी. आनन फानन में पुलिस सक्रिय हुई और दलबल समेत वहां पहुंच गई. एफएसएल अधिकारी जांच में लगे हैं. कमरे में सूटकेस, डायरी, स्टेथेस्कोप, सूटकेस पर हवाई यात्रा का स्टिकर चिपका हुआ है. डायरी में मृतक ने अपनी आत्मकथा लिखते हुए अपने ईसाई होने की बात कही है तथा ताबूत की व्यवस्था कर लावारिस की तरह लाश दफन करने की भी बात कही है. उसमें जीवन की पुरानी बातो का जिक्र भी किया है. उसने बताया है कि उसकी पत्नी बदचलन है. जिससे वह लगातार परेशान रहा. इसी से वह यहां माता के दर्शन करने आया था. उसे रास्ते में कालगर्ल मिल गई उसके साथ वह यहां आ गया.
लेकिन कुछ सवाल जो पुलिस के लिये परेशानी बन गए हैं
वह महिला कौन थी जो युवक के साथ आई थी.
क्या महिला ने ही मर्डर किया.
यदि महिला ने मर्डर किया तो डायरी में किसने लिखा.
मोबाइल का सिम कहां का था.
इस मामले का एक सनसनी खेज पहलू यह भी है कि लाश मिलने के बाद चेक आउट फार्म पर एण्ट्री दर्ज की गई है.
६ तारीख को रजिस्टर में मात्र २ कमरों की बुकिंग दर्ज है इस आधार पर सात कमरे खाली थे तो फिर युवक को गेस्ट हाउस में क्यो ठहराया.

Wednesday, February 27, 2008

हर बुराई का जिम्मेदार मीडिया?

युवाओं में बढ़ती हिंसा का जिम्मेदार कौन? इस विषय को लेकर विगत दिवस शहर में एक काफी बड़ी गोष्ठी आयोजित की गई. जिसमें शहर के जानेमाने या कहे नामवर लोगों ने सहभागिता तो निभाई ही काफी संख्या में शिक्षाविद व वरिष्ठ नागरिक भी उपस्थित रहे. चर्चा जब शुरू हुई तो पहले लोगों को काफी समय लग गया विषम में आने का फिर जब तक में वे विषय में आ पाए तो ज्यादातर लोगों ने इसके लिये मीडिया को ही जिम्मेदार ठहराया. हालांकि मैं भी वहीं था और मुझे लगा कि मुझे बोलना चाहिये लेकिन कुछ ऐसा था जिस वजह से मैं वहां नहीं बोल सका. लेकिन मेरा सवाल यह है कि लोग आखिर हर बात के लिए मीडिया को दोषी क्यों ठहराते हैं जबकि मीडिया तो महज एक आईना है जो होता है उसी का अक्श ही दिखाता है. अब लीजिये गोष्ठी में एक काफी बुजुर्ग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वरिष्ट समाजसेवी भी थे उन्होंने बात रखी की एक बार कहीं एक युवक किसी अपराध के मामले में पकड़ा गया तो उसने बताया कि उसने ऐसा किसी चैनल में देखा था बस क्या था उसके लिये मीडिया पर पिल पड़े लेकिन वही जनाब यह भूल जाते है कि चैनल में कई अच्छी बातें भी दिखाई गई कई अच्छे लोग भी बने लेकिन तब किसी ने नहीं कहा कि यह मीडिया की बजह से उपर आया. आखिर यह नकारात्मक सोच मीडिया के लिये क्यों बन रही है?