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Saturday, October 3, 2009

करोड़ों की लालच में आस्था से खिलवाड़

मैहर के त्रिकूट पर्वत पर विराजी माता शारदा का मंदिर देश भर की आस्था का केन्द्र है तथा प्रमुख शक्ति पीठों में गिना जाता है. यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है. अकेले नवरात्रि के दिनों में देश भर से आने वाले दर्शनार्थियों के संख्या एक दिन में डेढ़ लाख तक पहुंच जाती है.
चूंकि यह मंदिर काफी उंचाई पर बना है और ग्यारह सौ सीढ़ियों का लंबा सफर तय करके माता के दर्शन प्राप्त होते है. इस सफर को आसान बनाने यहां सड़क मार्ग भी है जिसमें वाहनों द्वारा श्रद्धालुओं को लाया ले जाया जाता है. लेकिन देखा गया कि इससे लगातार पहाड़ी का क्षरण हो रहा था. इस लिये आज से सात-आठ साल पहले जिला प्रशासन ने यहां रोप-वे की योजना तैयार करके राष्ट्रीय स्तर पर निविदा आमंत्रित की. इस निविदा के परीक्षण के लिये तकनीकी टीम सहित रोप वे के जानकारों को शामिल करके परीक्षण समिति बनाई गई. निविदा में कलकत्ता की दामोदर कंस्ट्रक्शन नें भी हिस्सा लिया. परीक्षण समिति द्वारा इस असफल करार दिये जाने के बाद भी अंततः निविदा इस कंपनी को स्वीकृत कर दी गई. तब कंपनी ने लगभग चार करोड़ की लागत से बाई केबल(दो तारों वाला) रोपवे बनाने का प्रस्ताव दिया था. निविदा स्वीकृत उपरांत इस कंपनी ने कई सालों तक काम नहीं किया और अंततः कार्य लागत बढ़ कर 9 करोड़ तक पहुंचा पाने में कंपनी सफल हुई. जिला स्तर के आला अधिकारियों सहित पावरफुल जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से अंततः इस कंपनी ने रोपवे तैयार किया वह बाई केबल न होकर मोनो केबल(एक तार वाला) था. इस तरह एक तार का पूरा खर्चा बचा कर कंपनी ने जहां निविदा शर्तों का उल्लंघन तो किया ही वहीं करोड़ो रुपये का सीधा लाभ भी बचा लिया.
यहां तक तो बात चल भी जाती लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मामला यह है कि निविदा में रोप-वे के सुरक्षा इंतजामों के मद्देनजर जिन छः सुरक्षा सर्टिफिकेट कंपनी को प्राप्त करने थे कंपनी ने वह भी प्राप्त नहीं किये और रोप-वे प्रारंभ कर दिया. जहां लाखो श्रद्धालु पहुंचते है वहां सुरक्षा मानको से इस तरह का खिलवाड़ प्रशासन व सरकार की जानकारी में आने के बाद भी कोई कदम न उठाया जाना कई सवाल खड़े कर रहा है. इस मामले में जिले का आला अधिकारी जहां चुप्पी साधे हुए हैं वहीं जनप्रतिनिधि भी खामोश है. इससे इस करोड़ों के खेल लंबे वारे न्यारे की बू आ रही है.
वहीं दूसरी ओर परीक्षण समिति से शुरुआती दौर से जुड़े लोगों की माने तो वे खुल कर इस मामले में करोड़ो के घोटाले की बात कह रहे है साथ ही यह भी स्पष्टतौर पर स्वीकार कर रहे है कि यह रोप-वे सुरक्षा मानदण्डों पर खरा नहीं है.

Sunday, September 27, 2009

युक्तियुक्तकरण का मसला

प्रदेश में शैक्षणिक व्यवस्था में तमाम कमियों की मूल वजह शिक्षकों की कमी है लेकिन यह कमी जिला स्तर से देखी जाये तो उतनी समझ में नहीं आती लेकिन शालावार इसमें व्यापक खामियां है. दरअसल जिले में छात्रअनुपात में शिक्षकों की पदस्थापना न होना सबसे बड़ी समस्या है. जहां 50 छात्र हैं वहां भी 5 शिक्षक हैं और जहां 400 छात्र हैं वहां भी 5 शिक्षक. इस समस्या को दूर करने शासन की युक्तयुक्तकरण की व्यवस्था तो है लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा या फिर प्रभावी ढंग से नहीं हो रहा है. मैं रीवा संभाग में शिक्षा विभाग की रिपोर्टिंग करता हूं और मैने पाया है कि यदि युक्तियुक्त करण प्रभावी ढंग से हो जाये तो 75 फीसदी शैक्षणिक व्यवस्था ढर्रे पर आ जायेगी. लेकिन शिक्षा महकमें के अधिकारियों से बातचीत में यह भी खुलासा हुआ है कि युक्तियुक्तकरण की व्यवस्था जो अभी है वह काफी खामियो को जन्म देती है और प्रभावशाली लोग इससे बच जाते है. इसलिये युक्तियुक्तकरण राजधानी स्तर पर संचालनालय द्वारा किया जाय. इसके लिये जिलों से शालावार छात्र संख्या व शिक्षक संख्या मंगा कर राजधानी से ही युक्तियुक्तकरण किया जाये.