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Monday, August 23, 2010

जनप्रतिनिधियों का नाकारपन और सिटी डेवलपमेंट प्लान

इन दिनों प्रदेश सरकार की योजना के तहत शहर का सिटी डवलपमेंट प्लान तैयार हो रहा है जिसमें शहर के विकास व विस्तार के मद्देनजर आगामी 25 साल की योजना तैयार की जायेगी. इस योजना को बनाने वाले एक मेंबर से मेरी लंबी चर्चा हुई और फिर जो सच सामने आया उससे जनप्रतिनिधियों की काली हो चुकी छवि मेरे सामने और कालिख पुती नजर आने लगी. सीडीपी प्लानर ने बताया हम आपके शहर का प्लान तैयार कर रहे हैं जिसमें हर जनप्रतिनिधि से अपेक्षा है कि वे शहर के लिये अपनी जरूरते बतायें व सुझाव दें लेकिन यहां के चंद जनप्रतिनिधियों को छोड़ दे तो हालात यह है कि उनके पास जाने पर भी वो कुछ कहने या सुनने को तैयार नहीं है. उन्होंने तो बताया कि सतना शहर की जिम्मेदार संस्था नगर निगम के पास मास्टर प्लान तक नहीं है उसके किसी अधिकारी को यह जानकारी नहीं है कि यहां कितनी पाइप लाइनों से पानी सप्लाई हो रहा है वहीं संबंधित विभाग को यह जानकारी नहीं है कि पानी निकासी की व्यवस्था के लिये शहर की ढ़ाल की दिशा क्या होगी. यहां अब जो विकास की रूपरेखा तैयार होगी वह हमारे नजरिये से होगी बाद में ये सभी इसी पर हो हल्ला मचाएंगे.

Wednesday, May 19, 2010

खो रही देश की पहचान 'दिल्ली ब्राण्ड'

बाजार के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी या कहूं कि ज्ञान नहीं है लेकिन विगत दिवस मेरे एक परिचित से बातचीत के बाद जो सच सामने आया है वह इतना चौंकाने वाला है कि इसका असर आने वाले समय में इतना बुरा पड़ सकता है कि देश की छवि ही बदल सकती है.
चर्चा के दौरान परिचित ने पूछा आज से एक दशक पहले जब तुम कोई वस्तु खरीदने जब बाजार जाते थे तो क्या ख्याल होता था. मैने कहा मतलब मैं नहीं समझा. उन्होंने विस्तार से बताते हुए निष्कर्ष बताया कि तब के बाजार में दो वस्तुएं ही होती थी एक तो ओरिजनल या फिर दिल्ली ब्राण्ड. दिल्ली ब्राण्ड का आशय तब ज्यादातर सस्ती चीजों के लिये होता था.
फिर उन्होंने इसे और गहराई में ले जाकर समझाया कि दिल्ली ब्राण्ड का मतलब सिर्फ डुप्लीकेट से न होकर सस्ती चीजों से भी होता था जो हमारे देश के लघु व कुटीर उद्योगों में तैयार होती थी देशज कंपनियों द्वारा सस्ती दरों पर तैयार करके बाजार में उतारी जाती थी. यदि इलेक्ट्रानिक्स पर ही देखे तो दिल्ली ब्राण्ड का तब अच्छा खासा दबदबा हुआ करता था. लेकिन यह सब भारतीय ही होता था.
लेकिन सरकार की गलत नीतियों से जहां लघु व कुटीर उद्योगों सहित छोटे उद्यमी तो तबाह होते ही जा रहे हैं वहीं चीन का बाजार यहां कब्जा जमा रहा है. जिसका नतीजा है की अब लोग दिल्ली ब्राण्ड भूल चुके है. अब इसकी जगह ले रहा चाइना ब्राण्ड.
यदि दिल्ली ब्राण्ड अब खत्म हो गया तो आप खुद समझें के भारतीय बाजार की क्या दशा होगी.