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Friday, October 21, 2011

समय से पहले लड़कियां हो रही हैं जवान, बच्चे उत्तेजित !

यह आक्सीटोसिन का असर है। 11 वीं की पढ़ाई कर रहे शुभम (बदला हुआ नाम) में लड़कियों के गुण आ गए हैं। वो बात-बात पर शर्माता रहता है। लड़कियों टाईप हरकतें करता रहता है। घर वाले तो परेशान हैं ही साथ ही दोस्त और आसपास के लोग भी उसे इन आदतों को लेकर उसे खूब छेड़ते हैं। यह अभिभावकों के लिए सतर्क होने का समय है। किशोर में स्त्री गुणोन्मुखी आदतें परेशानी का सबब बन रही हैं।

क्या है मामला ?
दरअसल, दूध व सब्जियों में ऑक्सीटोसीन की मात्रा बढ़ रही है। यही बढ़ी मात्रा उनमें यौन विसंगतियां पैदा कर रही हैं। लड़कियों का हाल तो और बुरा है। उनकी यौवनावस्था घट रही है। नौ से 11 साल की उम्र में वो 18 की हो जा रही हैं। इसी का कारण है कि स्कूलों में सेक्स क्राइम की घटना बढ़ रही है। कम उम्र के बच्चे भी उत्तेजित हो रहे हैं। कम उम्र के बच्चों में डायबिटिज़ होने का डर भी रहता है।

क्या कहते हैं पर्यावरणविद् ?
चर्चित पर्यावरणविद् डॉ. नितीश प्रियदर्शी ने भास्कर डॉट कॉम को बताया कि इन कारणों के पीछे ऑक्सीटोसीन युक्त दूध बड़ा कारण है। इसका इंजेक्शन स्वास्थ्य और पर्यावरण को चुनौती दे रहा है। ग्वाले इस इंजेक्शन का उपयोग मवेशियों को देते हैं। फलतः में दुग्ध ग्रंथियां उत्तेजित होती हैं और नियमित इंजेक्शन से दूध में ऑक्सीटोसीन की मात्रा बढ़ जाती है। वहीँ, किसान भी अधिक लाभ कमाने के लिए पौधों में इसका उपयोग करते हैं। इससे सब्जियां भी शरीर में नए चीजों को लाने में मददगार साबित हो रही हैं।

क्या कहते हैं डॉक्टर ?
डॉ. कारण अपूर्व कि मानें तो ऑक्सीटोसीन एक सेक्स हारमोन है। यह दुग्ध ग्रंथियों, यौन ग्रंथियों तथा गर्भाशय पर असर करता है। ऑक्सीटोसीन युक्त दूध पीकर कम उम्र के लड़के-लड़कियां प्रभावित हो रहे हैं। इससे यौन विकास समय से पहले होने लगता है। इतना ही नहीं लड़कों में स्त्रीय गुण भी आने लगते हैं। इसके अधिक सेवन से हारमोन अनियंत्रित हो जाता है।

क्या है ऑक्सीटोसीन ?
ऑक्सीटोसीन एक प्रोटीनयुक्त हारमोन होता है। गाय व भैंसों में दुग्ध ग्रंथियों को उत्तेजित करने के लिए आपात स्थिति में पशु चिकित्सक इसका इस्तेमाल करते हैं। पर आजकल पशुपालक इस इंजेक्शन का नियमित रूप से व्यवहार करने लगे हैं। इसी का गंभीर परिणाम पशुओं व ऑक्सीटोसीन युक्त दूध पीने वालों को भुगतना पड़ रहा है। इसी से हारमोन संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं।
(sabhar bhaskar)

Saturday, October 15, 2011

यूपीए सरकार देश के संघीय ढांचे को ध्वस्त करने में तुलीः आणवाणी

सर्किट हाउस में पत्रकार बार्ता के दौरान लालकृष्ण आडवाणी,
मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान,  प्रदेशाध्यक्ष  प्रभात झा
जनचेतना यात्रा के साथ यहां पहुंचे भाजपा के शिखर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने परिवारवाद को  लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए कहा कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद का फैसला संसदीय दल द्वारा लोकतांत्रिक तरीके  से होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे पीएम की रेस में नहीं हैं। शुक्रवार को सतना के सर्किट हाउस में श्री आडवाणी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि कांग्रेस में पद परिवार व वंशवाद के आधार पर दिये जाते हैं। देश में भाजपा और कम्युनिस्ट ऐसी दो पार्टियां हैं जहां परिवारवाद के लिये कोई गुंजाइश नहीं है।
श्री आडवाणी ने यूपीए सरकार पर प्रदेश सरकारों के प्रति भेदभाव बरतने के तीखे आरोप लगाते हुए कहा कि वे संघीय ढांचे को ध्वस्त करने में लगे हैं। एनडीए के छः साल के कार्यकाल में कभी ऐसा नहीं हुआ। श्री आडवाणी ने कहा कि एनडीए के शासनकाल में एक प्रदेश के विपक्षी पार्टी के मुख्यमंत्री का यह कहना कि ‘उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि केन्द्र सरकार ने उनके साथ न्याय नहीं किया। एनडीए के समय कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ’ वाजपेयी सरकार के लिये बड़ा सर्टिफिकेट है।
भारत के संवैधानिक ढांचे की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में उन्हें इस बात का गर्व है कि यहां की सरकार प्रमाणिकता और सार्थकता के साथ गरीब कल्याण के कार्यक्रम लागू कर रही है। लेकिन जब एसी सरकार के साथ केन्द्र की सरकार भेदभाव करती है तो दुःख होता है।
यूपीए करती है भेदभाव
श्री आडवाणी ने कहा कि इस समय जब सा देश में भ्रष्टाचार का माहौल है वहां मध्यप्रदेश की सरकार ने भ्रष्टाचारियों की संपत्ति राजसात करने का कानून बनाया। वह कानून बनने के बाद भी केन्द्र में पड़ा रहेगा। उन्होंने  कहा कि यहां के तीन कानून है जिन्हें केन्द्र द्वारा पास नहीं किया जा रहा है। भेदभाव को और स्पष्ट करते हुए कहा कि मकोका को एमपी और गुजरात सरकार के लिये पास नहीं करती जबकि यह महाराष्ट्र का अक्षरशः है। यह मध्यप्रदेश सरकार के साथ स्पष्ट भेदभाव है। श्री आडवाणी ने केन्द्र पर हमला जारी रखते हुए कहा कि केन्द्र सरकार खाद कोयले की आपूर्ति पूरा नहीं होने देती है। यह हल्की चीजें नहीं है। यह संविधान के नजरिये से भी सीरियस मैटर है।
न्यायपालिका और लोकपाल की व्यवस्था अलग हो
श्री आडवाणी ने लोकपाल के दायरे में न्यायपालिका और प्रधानमंत्री को शामिल करने के मुद्दे पर कहा कि न्यायपालिका की व्यवस्था अलग होनी चाहिये और लोकपाल की व्यवस्था अलग होनी चाहिये। केन्द्र सरकार ने जो किया है उसमें प्रधानमंत्री को लोकपाल की व्यवस्था में नहीं रखा है, जबकि हमने राष्ट्रीय सुरक्षा को अपवाद में रखते हुए लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को रखा था। टीम अन्ना से इस मसले पर अपनी चर्चा का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 2 घंटे की चर्चा में अन्ना और उनकी टीम सभी विषयों पर एक मत थी। आज क्यों उनका मत दूसरा हो गया है नहीं जानता।
अटल जी सर्वश्रेष्ठ
पार्टी में अटल जी की सक्रियता नहीं होने के संबंध में उन्होंने कहा कि अटल जी सर्वश्रेष्ठ व सर्वमान्य नेता रहे हैं। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। उन्हें राज्यसभा में लाने की बहुत कोशिश की लेकिन उनका कहना था कि इस अवस्था में वे अपने कर्तव्य से न्याय नहीं कर पाएंगे।
लोकायुक्त मामले पर गंभीर
ल¨कायुक्त क¨ पूरी गंभीरता से लिया जा रहा है और कर्नाटक में कार्यवाही भी की है। सीएम को ऐसे मामलों में सख्ती बरतनी चाहिये। यह बातें उन्होंने मध्यप्रदेश में कई मंत्रियों के मामले लोकायुक्त में होने के बाद भ्रष्टाचार के दोहरे मापदण्डों पर कहीं। हालांकि इस दौरान प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने बताया कि मध्यप्रदेश में मंत्रियों के संबंध में एसी कोई लोकायुक्त रिपोर्ट नहीं हैं।

Friday, September 30, 2011

अकबर, रीवा और जोधाबाई

यह सभी जानते हैं कि महान मुगल शासक अकबर अनपढ़ था लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि अकबर का बचपन मध्यप्रदेश के रीवा जिले के मुकुन्दपुर नामक स्थान में गुजरा था। हालांकि लोग कहते हैं कि अकबर द्वितीय का बचपन यहां गुजरा था लेकिन चल रहे नये शोध से यह सामने आ रहा है कि अकबर द्वितीय नहीं मुकुन्दपुर में जलालुद्दीन अकबर का ही बचपन बीता था। यहां उसे सुरक्षा की दृष्टि से छिपा कर रखा गया था इसलिये उसकी पढ़ाई लिखाई नहीं हो पाई थी। इस दौरान तब के राजकुमार रामसिंह भी उनके साथ कभी-कभी अपना समय व्यतीत करते थे। रीवा राज्य के शासक महाराजा रामचन्द्र जी हुआ करते थे।
नीचे देखे विकीपीडिया के कुछ अंश
हुमायुं को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। [22] किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां(वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा
Humayun had been driven into exile in Persia by the Pashtun leader Sher Shah Suri. Akbar did not go to Persia with his parents but grew up in the village of Mukundpur in Rewa(see link:- http://emperors-shirshak.blogspot.com/2011/02/akbar-great.html)

यह लिंक भी देखे- http://indicaspecies.blogspot.com/2008/02/akbar-and-cultural-synthesis.html


अकबर का हिन्दुओं व हिन्दु धर्म के प्रति झुकाव की भी यही वजह रही कि उसका बचपन का लालन पालन मूल रूप से हिन्दुओं के बीच ही हुआ और उसे इनके बीच ही बचपना गुजारना पड़ा।
अब बात आती है अकबर को जोधाबाई कैसे पसंद आई। हालांकि इस पर शोध चल रहा है लेकिन जो बात प्रारंभिक तौर पर सामने आ रही है उसके अनुसार अकबर यहां भी जंगली क्षेत्र (तत्कालीन) मुकुन्दपुर में ही नहीं रहा बल्कि रीवा राजघराने के सदस्यों के साथ उसका आना जाना होता था। तभी कभी वह किसी आयोजन में राजस्थान राजघराने में गया होगा और तब उसे जोधाबाई मिली थी वहीं यादे बाद में अकबर के जिंदगी का फैसला बनी(हालांकि अभी यह प्रमाणिक नहीं है) लेकिन इतिहास शोधार्थी इस पर शोध कर रहे हैं।

रीवा राजघराने को कटार की पात्रता
शोध कह रहे हैं अकबर के दरबार में किसी को भी कटार ले जाने की अनुमति नहीं थी लेकिन रीवा राज घराने में गुजरे बचपन की वजह से रीवा राजघराने को अकबर के दरबार में कटार की अनुमति थी।(शोध जारी है)


इसे विस्तार करने मैटर आमंत्रित हैं- कमेंट में दें

Thursday, September 29, 2011

सिद्धपीठ मैहर देवी शारदा शक्तिपीठ | Siddha Peeth Maihar Devi (Maa Sharda Shakti Peeth)


Siddha Peeth Maihar
उतर-प्रदेश में जितना महत्व मां विध्यावसिनी का है. उतना ही मध्य प्रदेश में मां मैहर देवी का है. आधाशक्ति मां दुर्गा के विभिन्न रुपों में मां शारदा भी है. बोलचाल की भाषा में इन्हें मइहर देवी के नाम से जाना जाता है. जबकि मइहर या मैहर उस स्थान का नाम है. जहां मां शारदा का धाम है. विद्वज्जन कहते है कि यहां सती के दाहिने स्तन का पतन हुआ था. यहां की शक्ति शिवानी और भैरव  को यहां चण्ड कहा जाता है. कुछ विद्वान कहते है, इ सती के दाहिने स्तन का निपात रामगिरि में हुआ था. रामगिरि स्थान चित्रकूट में है. 
मध्यप्रदेश के सतना से 38 किलोमीटर दूर मैहर है. जो एक छोटा सा कस्बा है, किन्तु मां की ख्याती ने इसे पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया है. मां शारदा का धाम मैहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित है. 

पर्वतमालाओं की गोलाकार पहाडी के मध्य 587 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां शारदा का एतिहासिक मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक है. यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृ्सिंह के नाम पर नरसिंह पीठ के नाम से भी जाना जाता है. यहां की शक्तिपीठ में लगभग 1500 वर्ष पुरानी नरसिंह की प्रतिमा आज भी विराजती है. 

मां का यह मंदिर कितना पुराना है, इसका कोई सही प्रमाण उपलब्ध नहीं है. परन्तु इस मंदिर में प्रतिमा की स्थापना 502 में नुपुलदेव के करायी थी. ऎसा उल्लेख मंदिर में 10वीं शताब्दी के दो शिलालेखों में है, तो मंदिर के निर्माण की गाथा के आधार स्तंभ है. प्रवेश द्वार से मंदिर तक पहुंचने के लिये छोटी-छोटी लगभग 1000 सीढियां चढनी पडती है. जिनपर टीन के शैड लगे हे. ताकि यात्रियों को धूप-बारिश न लगें. पहाड को गोलाई में काट कर सडक भी बनाई गयी है. जो मंदिर के ठीक नीचे तक जाती है, फिर इसके बाद लगभग 200 सीढियां चढनी होती है. अशक्तों व वृ्द्धों को पहुंचाने के लिये डोली की भी व्यवस्था हे. 
किवदंती के अनुसार राजा परमाल तथा पृ्थ्वीराज चौहान के युद्ध में राजा परमाल की पराजय से क्रुद्ध होकर आल्हा ने पृ्थ्वीराज की सेना समूल नष्ट करने हेतू तलवार खींच ली थी. पर उसकी आराध्या शारदा ने उसका हाथ पकड लिया. जंगल में आल्हा तथा ऊदल अखाडा है. यहां एक ताल भी है. ताल का पानी कभी नहीं घटता है. किवंदती है कि आज भी प्रतिदिन आल्हा मां शारदा को पुष्पांजलि देने आते है.  
यह भी कहा जाता है कि आल्हा-ऊदल तथा धानू आदि भक्तों ने युद्ध में विजय की कामना से इस पहाडी पर शारदा देवी की प्रतिमा स्थापित की तथा देवी को प्रसन्न करने एक लिये आल्हा ने अपने पुत्र इन्दल की बलि  भी दी थी. तथा आज भी आल्हा -ऊदल मंदिर बन्द होने के बाद मंदिर में माता का दर्शन करने के लिये आते है. 
प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रों में देश के कोने-कोने से भक्त यहां आते है.

Tuesday, September 27, 2011

सतना जिले में लाखों का चावल घोटाला

 जिले में मध्यान्ह भोजन के नाम पर लीड समितियों द्वारा लाखों का चावल घोटाला किया जा रहा है। इसके तहत मध्यान्ह भोजन के लिये आने वाले ए ग्रेड के चावल को बीपीएल के मोटे चावल से बदल कर कोटे दारों को दिया जा रहा है और यहां से यही घटिया मोटा चावल स्व सहायता समूहों के माध्यम से स्कूलों के बच्चों को खाने के लिये मिलता है। मजे की बात है कि इसके लिये जिला प्रशासन के पास निगरानी का पर्याप्त अमला है लेकिन वह भी अनदेखी कर रहा है। हालात तो यह है कि जिले के कई वरिष्ठ अधिकारी भी इस बात से अनभिज्ञ है कि एमडीएम और बीपीएल का चावल अलग-अलग क्वालिटी का होता है। इस मामले का खुलासा मनकहरी लीड समिति द्वारा दर्जन भर राशन दुकानों में एमडीएम और बीपीएल के लिये एक ही सप्लाई से हुआ है।
क्या है मामला
मध्यान्ह भोजन का चावल नि:शुल्क केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाता है यह ए ग्रेड का चावल होता है जबकि बीपीएल का चावल नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा स्थानीय स्तर पर खरीदी गई धान की मिलिंग के बाद दिया जाता है यह मोटा होता है। मनकहरी लीड समिति द्वारा कृष्णग़, जमुनिया, खटखरी, कोनिया कोठार सहित दर्जन भर राशन दुकानों में एमडीएम और बीपीएल का चावल एक ही प्रकार का बांटा गया है। यह चावल बीपीएल कोटे का मोटा चावल है। जबकि नान से एमडीएम के लिये अलग चावल भेजा गया था और बीपीएल के लिये अलग चावल भेजा गया था। कोटेदारों की माने तो समिति प्रभारी द्वारा यह कोई नई घटना नहीं है बल्कि ऐसा सालों से चल रहा है। इसकी शिकायत भी की गई है लेकिन न तो कोई जांच हुई न ही कार्यवाही।
कहां गया चावल
इस मामले में कोनिया कोठार के कोटेदार महेश सिंह जो कि जमुनिया और खटखरी की राशन दुकाने भी देखते हैं से बात की गई तो इन्होंने स्वीकार किया कि इस बार लीड समिति ने 27 अगस्त के आसपास सप्लाई की है और इनके द्वारा एमडीएम और बीपीएल के लिये एक ही चावल भेजा गया है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह कोई पहली घटना नहीं है बल्कि ऐसा कई सालों से हो रहा है। उन्होंने बताया कि जो चावल उनके यहां आया है वह बीपीएल कोटे का मोटा चावल है जबकि एमडीएम का ए ग्रेड का चावल काफी बेहतर व पतला होता है वह नहीं दिया गया। उधर नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों की माने तो लीड समिति के लिये जुलाई में डिलेवरी आर्डर दिया गया था और 2 और तीन अगस्त को माध्यमिक और प्राथमिक विधालयों के मध्यान्ह भोजन के लिये आपूर्ति की गई थी। यहां सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब तीन अगस्त को एमडीएम का नान गोदाम से उठाव हुआ तो फिर 27 अगस्त तक यह चावल कहां रहा और फिर कोटे में यह चावल न पहुंच कर घटिया मोटा बीपीएल चावल कैसे पहुंचा।
ये कहते हैं दस्तावेज
नान के दस्तावेजों की माने तो लीड समिति के लिये माध्यमिक विद्यालय के एमडीएम का डिलेवरी आर्डर क्रमांक 14145 जारी किया गया जो 29 जुलाई को जारी हुआ तथा 2 व 3 अगस्त को ट्रक क्रमांक 3631 से 331 बोरी, ट्रक क्रमांक 6326 से 281 बोरी तथा ट्रक क्रमांक 3169 से 106 बोरी का उठाव किया गया। इसी तरह प्राथमिक विद्यालय के लिये डिलेवरी आर्डर क्रमांक 14146 के तहत 3 अगस्त को 273 किवंटल चावल का उठाव किया गया। जबकि कोटों में यह चावल पहुंचा ही नहीं और 27 अगस्त को जो चावल कोटों में पहुंचा वह एमडीएम का ए ग्रेड का न होकर बीपीएल का चावल रहा।
क्या है खेल
लीड समिति और संबंधित कई विभागों द्वारा इसमें लाखों का खेल किया जाता है। इस मामले में आरटीआई एकिटविस्ट उदयभान चतुर्वेदी बताते हैं कि लीड समिति द्वारा नान के गोदाम से एमडीएम का बढ़िया चावल तो उठा लिया जाता है लेकिन इसे कोटे में न देकर बाजार में बेच लिया जाता है वहीं राइस मिलों से मिलीभगत करके वहां से बीपीएल कोटे का मोटा चावल लेकर एमडीएम के लिये सप्लाई कर लिया जाता है। एमडीएम और बीपीएल चावल की कीमतों का जो लाखों का अन्तर होता है उसे लीड समितियां और संबंधित विभागों के लोग आपस में खुर्दबुर्द कर लेते हैं। मजे की बात तो यह है कि लीड समिति मनकहरी द्वारा विगत माहों में गेहूं में 50 फीसदी रेत मिलाने का मामला भी सामने आया था जिसकी जांच अभी भी लंबित हैं और आरोपी पकड़ से बाहर हैं।
क्या कहते हैं राशन विक्रेता
हमें लीड समिति ने एमडीएम और बीपीएल का एक ही चावल भेजा है। ऐसा पहली बार नहीं है बल्कि कई सालों से हो रहा है। इसमें हमारा कोई दोष नहीं है बलिक समिति जो चावल पहुंचाती है वहीं हम देते हैं। प्रशासन चाहे तो इसकी जांच कर ले हमारे यहां ऐसा ही चावल आया है।
महेश सिंह, कोटेदार कोनिया कोठार

नागरिक आपूर्ति निगम का कथन
एमडीएम का चावल केन्द्र सरकार द्वारा नि:शुल्क सप्लाई किया जाता है। यह ए ग्रेड का चावल होता है जो एफसीआई के थ्रू ट्रांजिक्शन किया जाता है। यह पंजाब, उत्तरप्रदेश और छत्तीसग़ से आता है तथा पतला और बेहतर श्रेणी का होता है। जबकि बीपीएल के लिये जिस चावल की सप्लाई होती है वह प्रदेश की धान होती है जो खरीदी जाती है फिर इसे मिलिंग के लिये भेजा जाता है वहां से जो चावल आता है उसे बीपीएल व एएवाई को दिया जाता है। यह अपेक्षाकृत मोटा और एमडीएम से कम क्वालिटी का होता है।
दिनेश मिश्रा, अधिकारी नान
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यह गंभीर मामला है। इसकी जांच कराई जायेगी और जो भी इसके दोषी पाये जायेंगे उन्हें दण्ड दिया जायेगा।
सुखबीर सिंह, कलेक्टर
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Wednesday, September 14, 2011

बाणसागर का बनेगा नया 'बाढ़ प्लान'

निर्माण के बाद पहली बार उफान पर आये बाणसागर डैम के जलाशय का पानी धीरे-धीरे नीचे उतरना शुरू हो गया है। इस समय बांध में 341.55 मीटर तक का जल भराव बना हुआ है। बाणसागर का जल स्तर मेन्टेन करने के लिये अभी भी 6 गेट खोले गये हैं। लेकिन इस बार उफनाए बाणसागर डैम का अनुभव मिलने के बाद बाणसागर प्रबंधन नये सिरे से डैम का ‘बाढ़ प्लान’ बनायेगा। हालांकि इस प्लान के नये अध्ययन की मुख्य वजह मंगठार का रिजरवायर और जोहिला का ओपीएम रिजरवायर से अचानक आने वाला पानी बताया जा रहा है जो बाणसागर डैम प्रबंधन के लिये आपात स्थितियों का सबब बन गया था। अब तक उफनाये डैम से 13000 लाख क्युबिक मीटर पानी छोड़ा जा चुका है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वर्ष हुई झमाझम बारिश से बाणसागर का डैम अपने अधिकतम जल भराव क्षमता से भी उपर पहुंच गया और पहली बार बाणसागर डैम के गेट खोलने पड़े। हालांकि इस घटना के लिये तो बाणसागर प्रबंधन तैयार था लेकिन रविवार रात से सोमवार सुबह तक की घटना ने बाणसागर प्रबंधन की पेशानी पर बल डाल दिये हैं। मिली जानकारी के अनुसार रविवार की रात में बाणसागर डैम के गेट क्लोजिंग पोजीशन में रखे गये थे तथा इस दौरान 9 घंटे में पानी का जलाशय में उठाव 4 सेमी चल रहा था लेकिन जब सोमवार की सुबह 8 बजे डैम का लेबल देखा गया तो यह काफी तेज गति से उपर आ रहा था। इसके मद्देनजर आनन फानन में बाणसागर प्रबंधन ने डैम के उपर की नदियों और बारिश का पता लगाया तो पता चला कि सभी नदिया सामान्य स्तर पर हैं और कहीं से भी बारिश की सूचना नहीं है।
इससे परेशान प्रबंधन ने जब वृहद समीक्षा की तो पता चला कि बिरसिंहपुर पाली में मंगठार का रिजरवायर और शहडोल के समीप ओपीएम के रिजरवायर जो गेटेड डैम है से पानी छोड़ा गया था और यही पानी आगे आकर बाणसागर डैम में मिल गया और अचानक जल स्तर में बढ़ोत्तरी हो गई। बताया जा रहा है कि बाणसागर के बाढ़ प्लान में अभी ये दोनो रिजरवायर शामिल नहीं रहे हैं। इस घटना से बाणसागर प्रबंधन ने नये सिरे से बाढ़ प्लान की समीक्षा करने की तैयारी कर रहा है। इसके तहत डैम के ऊपर पडऩे वाले सभी गेटेड डैमों का आंकलन कर नया बाढ़ प्लान तैयार किया जायेगा। इसकी पुष्टि बाणसागर डैम के अधीक्षण यंत्री डॉ. एनपी मिश्रा ने भी की है।
शुरू होगा ऑपरेशन डॉग्ड
अधीक्षण यंत्री डॉ. मिश्रा ने बताया कि अब उनकी मुख्य चिंता बाणसागर का लेबल स्थाई बनाये रखना है। अब प्रबंधन इस बात पर ध्यान दे रहा है कि बारिश अब ज्यादा नहीं होगी और यदि ज्यादा पानी छोड़ दिया गया तो कहीं डैम खाली न रह जाये। इसके लिये बाणसागर डैम का पानी 341.50 मीटर से नीचे न जाये इसके लिये सोमवार की रात 10 बजे समीक्षा करने के बाद आपरेशन डॉग्ड प्रारंभ किया जायेगा। इसके तहत डैम के गेट को पूरी तरह तो बंद नहीं करेंगे लेकिन गेट को इस कंडीशन में लाया जायेगा कि इससे न्युनतम आवश्यक पानी ही जलाशय से बाहर निकले और डैम का स्तर बना रहे।
बाणसागर का बिहार में ताण्डव
बताया जा रहा है कि विगत दिवस जिस गति से बाणसागर डैम से पानी सोन नदी में छोड़ा गया है उसका असर बिहार के  कई क्षेत्रों में बाढ़ के रूप में नजर आया है। बताया गया है कि सोन नदी में आगे भी डैम बने हैं लेकिन बाणसागर से भारी मात्रा में छोड़े गये पानी से उफनाई सोन नदीं ने इन निचले डैमों का जल स्तर काफी बढ़ा दिया है। इस वजह से यहां से भी पानी छोडऩे की स्थिति बन गई और बिहार के पटना सहित कई क्षेत्रों में बाढ़ के हालात बन गये। उफनाई सोन की वजह से एक दशक बाद सीधी का पुल ओव्हरफ्लो हुआ है।

Friday, September 9, 2011

जादुई आंकड़े पर बाणसागर का जलस्तर, 14 गेट खुले

5800 क्युबिक मीटर पानी प्रति सेकण्ड छोड़ा जा रहा
अरे ये क्या...., अद्भुत..., आश्चर्यजनक.... कुछ एेसे ही शब्द गुरुवार को बाणसागर डैम के दूसरे ओर खड़े लोगों के मुंह से निकल रहे थे। हर कोई दिख रहे नजारों को हमेशा के लिये अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहता था। काफी उंचाई से तेज गर्जना के साथ गिर रहा पानी का विपुल प्रवाह न केवल जलतरंग के माध्यम से नजरों को ठहरने नहीं दे रहा था तो उंचाई से गिर रहे पानी से उठने वाला धुंआ एक अलग ही अनुभूति पैदा कर रहा था।


 यह सबकुछ बाणसागर बांध के इतिहास में पहली बार हुआ। यह पहला अवसर है जब बांध में पानी का जल स्तर अपने अधिकतम भराव 341.64 से भी ऊपर पहुंच गया और बाणसागर प्रबंधन को डैम के जलाशय से भारी मात्रा में पानी छोडऩा पड़ा।














7 अगस्त 2011 की देर रात 2 बजे का समय विन्ध्यवासियों के लिये एक यादगार तारीख बन गया। जब तमाम आशंकाओं और मिथकों को दरकिनार करते हुए बाणसागर डैम में पहली बार गेट खोले गये। जादुई आंकड़े के रूप में पहचाने जाने वाले इस डैम का अधिकतम जल भराव स्तर 341.64 से जैसे ही पानी ऊपर पहुंचा वैसे ही बाणसागर प्रबंधन डैम की सुरक्षा के मद्देनजर पानी छोडऩे की प्रक्रिया प्रारंभ कर दिया। जब सबसे पहले इस डैम का गेट क्रमांक 9 पहली बार खोला गया मानों डैम के दूसरी ओर नदी में भूचाल सा आ गया। रात के घने अंधेरे में पानी की अथाह राशि एक भयानक शोर के साथ नदी में बहनी शुरू हो चुकी थी। लेकिन इस दौरान तक बाणसागर डैम का जल स्तर 341.80 मीटर तक पहुंच चुका था। अब यह स्थिति बेहद खतरनाक थी। फिर तो बाणसागर प्रबंधन लगातार गेट खोलता गया और भारी जल राशि सोन नदी में समाने लगी और थोड़ी देर में ही सूखी हुई सी नदी पूरे यौवन के साथ बहने लगी और यह जल प्रवाह 8 अगस्त की सुबह जिसने भी देखा वह वहीं रुकता चला गया। फिर तो यह खबर जंगल की आग की तरह फैलती गई और हर कोई इस नजारे को देखने के लिये यहां पहुंचने लगा।

आवक से ज्यादा छोड़ रहे पानी
बाणसागर परियोजना पक्का बांध मंडल के अधीक्षण यंत्री डॉ. एन.पी. मिश्रा ने डैम के कंट्रोल टावर में ही डेरा डाल लिया है। उन्होंने बताया कि जलस्तर तीजे से बढऩे के कारण बांध प्रशासन ने गुरुवार की रात दो बजे पहला गेट खोला। शुरुवात गेट क्रमांक 9 से हुई इसके बाद क्रमश: गेट क्रमांक 7 और ग्यारह खोले गये। डॉ. मिश्रा ने बताया कि शुरुआत में गेट धीरे-धीरे 50 सेन्टी मीटर उंचाई तक खोले गये बाद में गेटों को अधिकतम् ढाई मीटर तक खोल दिया गया है। उधर देर शाम तक बांध के 14 गेट खोले जा चुके हैं। बांध का जलस्तर 341.80 मीटर पहुंचने के कारण बतौर सावधानी 5800 क्यूमेक्स पानी प्रतिसेकंड छोड़ा जा रहा है।

ये रही वजह 
डैम के ईई शरद श्रीवास्तव ने बताया कि गुरुवार की रात 11 बजे तक यहां 3500 क्युमैक्स पानी ही पहुंच रहा था लेकिन दो बजे तक यहां 7 से 8 हजार क्यूबिक मीटर पानी प्रति सेकेण्ड पहुंचने लगा और डैम का जल स्तर अधिकतम बिन्दु के उपर पहुंच गया। एेसे में आनन-फानन में डैम के गेट खोलने पड़े। श्री श्रीवास्तव ने बताया कि शुक्रवार की रात 7 बजे तक पानी का जल स्तर 341.70 सेमी तक उतर चुका था। उन्होंने बताया कि बांध में अभी 5200 क्युमैक्स पानी पहुंच रहा है लेकिन जलस्तर मेन्टेन करने के लिये अभी ज्यादा पानी 5800 क्युमैक्स प्रति सेकेण्ड छोड़ा जा रहा है। श्री श्रीवास्तव ने बताया कि जब जल स्तर 341.64 तक पहुंच जायेगा तब डैम में जितनी आवक होगी उतना ही पानी छोड़ा जायेगा।
24 घंटे हाइअलर्ट 
बाणसागर कंट्रोल रूम में एक व्यक्ति लगातार वायलैस पर ही ध्यान लगाये हुए है और पल-पल डैम और इसके उपर बने निगरानी केन्द्रों की जानकारी ले रहा है। इसके अलावा डैम के सभी वरिष्ठ अधिकारी इस समय यहीं मौजूद हैं। खुद अधीक्षण यंत्री एनपी मिश्रा, डैम ईई शरद श्रीवास्तव सहित अन्य अधिकारी कर्मचारी डैम टॉवर में ही मौजूद हैं। यहां विभाग के कुल 40 अधिकारी कर्मचारी तैनात है साथ ही निगरानी में आठ-आठ घंटे की ड्यूटी तय की गई है। इसके अलावा यहां कानून व्यवस्था तथा सुरक्षा के मद्देनजर एसएफ 47 जवान तैनात हैं।
हर उपबंध पर निगाहें
बताया गया है कि बांध का जलस्तर निर्धारित से ज्यादा पहुंचने पर इस बांध के सभी उपबंधों पर सतत निगरानी प्रारंभ है तथा कर्मचारियों को वहां तैनात कर दिया गया है। इस डैम के मतहा, भितरी, कंदवारी-1, कंदवारी-2 व झिन्ना उपबंध में लगातार जल स्तर पर निगरानी की जा रही है।
हिनौता घाट का गेज डूबा
मतहा उपबंध पर मिले कर्मचारी रोहणी प्रसाद ने बताया कि रात को 5 सेमी प्रतिघंटे की गति से पानी बढऩे लगा था। तब गेट खोलने की स्थिति बनी है। उन्होंने बताया कि पहली बार इतना जल स्तर बढ़ा है। जल स्तर के बारे में बताया कि हिनौता घाट का गेज डूब गया है। यहां पानी इतनी उंचाई तक पहुंच गया है कि महानदी ठेक मारकर उल्टा जाने लगी है। यह स्थिति सुबह 11 बजे तक रही है। इसके बाद पानी नीचे जाने के बाद स्थिति कुछ सामान्य हुई है।
संभागायुक्त ने लिया जायजा
बाणसागर के गेट खुलने की जानकारी मिलने पर संभागायुक्त टीएन धर्माराव भी यहां पहुंच कर मौका मुआयना किया और स्थितियों का जायजा लिया। इसके अलावा यहां सीधी कलेक्टर भी पहुंचे रहे। वहीं स्थानीय अधिकारी सहित थाना प्रभारी भी यहां लगातार गश्त करते दिखे।

Monday, August 22, 2011

जनलोकपाल की लोकक्रांति और देश की कूटनीतिक हार

यह लेख मेरे अब तक के जीवन में लिखा गया सबसे कठिनतम लेख है और हो सकता है कि मैं इसमें पूरी तरह से गलत होऊं लेकिन इसकी गंभीरता के मद्देनजर खुले दिमाग से पढ़ा जाये तो हो सकता है कि यह साबित हो सकेगा कि मैं सही हूं।
यहां बात अन्ना हजारे की लोक क्रांति की है जो जनलोकपाल बिल को लेकर है, लेकिन मैं इस क्रांति की सफलता और असफलता से इतर (इसके निहितार्थों) की बात कर रहा हूं जो देश की कूटनीति के लिये बड़े मायने रखती है। ... और यदि मैं सही हूं तो अगस्त की यह लोक क्रांति देश की बड़ी डिप्लोमेटिक पराजय है...

पहले कुछ बिन्दुओं पर ध्यान दें
1. आज की महाशक्ति कौन हैं- अमेरिका
2. ऐसा कौन सा देश है जो विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी में भी टिका रहा- भारत
3. भविष्य में महाशक्ति को चुनौती किससे मिल सकती है- मुस्लिम राष्ट्रों और भारत
4. मुस्लिम राष्ट्रों को शक्तिहीन किसने किया - अमेरिका
5. भारत की सबसे बड़ी ताकत- लोकतंत्र
6. लोकतंत्र की बड़ी ताकत- युवा शक्ति
7. लोकतंत्र का केन्द्र कौन- संसद
8. लोकक्रांति से किसका विश्वास घटा- संसद
9. हमारे स्थापित आइकॉन अर्थात नेताओं से इस आंदोलन ने विश्वास डिगा दिया अर्थात भविष्य में इनकी बातें लोकतंत्र की आदर्श नहीं होंगी।

अब इन सभी बिन्दुओं को एक रूप में पिरोकर अर्थ निकालने की कोशिश कीजिये। यहां अभी भी मैं अन्ना और जनलोकपाल की बात नहीं कर रहा हूं....

अब इससे इतर कुछ घटनाक्रमों को ध्यान दें
1. पिछले कुछ महीने पहले हिलेरी क्लिंटन भारत की कूटनीतिक यात्रा पर आती है और नई दिल्ली की विश्व स्तर पर बढ़ती भूमिका की प्रशंसा करते हुए क्लिंटन ने जोर देकर कहा कि 21वीं सदी का इतिहास भारत और एशिया में लिखा जाएगा। उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले साल भारत का दौरा किया और पिछले दो सालों में मैंने यहां की दो बार यात्रा की है। कोई पूछ सकता है ये यात्राएं क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि 21वीं सदी का ज्यादातर इतिहास एशिया में लिखा जाएगा।"

2. देश की ज्यादातर बड़ी एनजीओ को काम करने के एवज में ज्यादा तर मदद कहां से मिलती है और किन राष्ट्रो से मिलती है- जवाब हम सब जानते हैं कि पश्चिमी राष्ट्रों से और इनमें से ज्यादा तर या तो अमेरिका या अमेरिका समर्थित देशों से। अर्थात एनजीओ को अपनी मदद के लिये इन देशों के रहमो करम पर निर्भर रहना पड़ता है। (इसे दूसरे अर्थों में न लिया जाये, सिवाय कूटनीतिक मसले के) अर्थात पश्चिमी राष्ट्र मदद के नाम पर कुछ लाभ के लिये एनजीओ का उपयोग कर सकते हैं।

3. अब सरकारी लोकपाल बनाम जन लोकपाल पर आते हैं जिसमें एनजीओ भी एक मुद्दा है-
जनलोकपाल के प्रस्ताव- केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव- छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
4. यह आंदोलन खड़ा करने में मुख्य भूमिका- एनजीओ और उनके सदस्य और बाद में कई एनजीओ का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग
5. इस आंदोलन को सबसे ज्यादा प्रभावी बनाने में मुख्य भूमिका मीडिया(इलेक्ट्रानिक) और इसमें भी प्रमुख भूमिका - विदेशी सहायता पर चलने वाले न्यूज चैनल मसलन आईबीएन 7 जो सीएनएन का साझीदार है।

उपरोक्त सभी बिन्दुओं को जोड़कर देखिये फिर सोचिये

- क्या यह आशय नहीं निकलता है कि भारत की सबसे बड़ी ताकत अर्थात लोकतांत्रिक देश के लोकतंत्र की नींव अर्थात संसद की चूले हिली है और कैसे कोई एक आदमी किसी देश की सबसे बड़ी ताकत को आपरेट कर रहा है। (यहां फिर स्पष्ट कर रहा हूं मै अन्ना के विरोध में नहीं हूं न ही जन लोक पाल के विरोध में हूं यहां बात कूटनीतिक नजरिये की हो रही है)

- विश्व में जनसंचार के सबसे बड़े प्रयोग कहां होते हैं- स्पष्ट जवाब है और सभी सहमत होंगे कि अमेरिका में- अब आप सोचिये यह आंदोलन जनसंचार का सबसे सफल प्रयोग नहीं हैं-

अब उपर के सभी तथ्यों को जोड़ कर देखे और कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री द्वारा किये गये इशारे पर गौर करें कि कोई बाहरी ताकत है जो देश को अस्थिर करना चाह रही है।

(देखें वेब दुनिया स्पेशल)कौन है अन्ना के पीछे

- सारा देश जानता है कि कांग्रेस हमेशा रूस के प्रति हिमायती रही है और भाजपा का झुकाव अमेरिका की ओर ज्यादा रहा है।

इधर कांग्रेस शासन में ही रूस से मिल कर ब्रह्मोस, स्टेल्थ विमान जैसे बड़े सामरिक समझौते सफल हुए हैं। जो भविष्य में देश को महाशक्ति की ओर अग्रसर करेंगे। वहीं इस चुनौती से सबसे ज्यादा नुकसान किसका होगा- स्वाभाविक है अमेरिका का।

तो क्या पूरे का निहितार्थ यह नहीं निकलता है कि यह आंदोलन देश के कूटनीतिज्ञों की बड़ी असफलता है और कूटनीति में भारत अमेरिका से हार गया है...................


 'बेयोंड हेडलाइंस' का खुलासा
 'बेयोंड हेडलाइंस' नाम के एक मीडिया संस्‍थान ने अन्‍ना के आंदोलन को अमेरिका से भी जोड़ा है। अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल बिल के समर्थन में चल रहे आंदोलन में कौन पैसे लगा रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए इस मीडिया संस्थान ने सूचना के अधिकार के तहत टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' को मिलने वाले फंड और खर्चे के बारे में जानकारी हासिल की है। इस संस्था को अलग-अलग स्रोतों से फंड मिले हैं। इसमें अमेरिका का फोर्ड फाउंडेशन भी शामिल है। कबीर को फोर्ड फाउंडेशन ने 86,61,742 रुपये का फंड मुहैया कराया है।  इसके अलावा, पीआरआईए (237035 रुपये), मंजुनाथ शनमुगम ट्रस्ट (370000रुपये), डच एंबेसी (19,61,968रुपये), एसोसिएशन फॉर इंडियाज डेवलपमेंट (15,00,000), इंडियाज फ्रेंड्स एसोसिएशन (7,86,500), यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (12,52,742) से सिसोदिया के संगठन को फंड मिले। 2007 से 2010 के बीच व्यक्तिगत तौर पर कबीर को 11,35,857 रुपये की राशि मिली है। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में शामिल एक प्रमुख गैर सरकारी संगठन को ज़्यादातर फंड अमेरिका से मिला है।  कांग्रेस ने अन्ना के आंदोलन को मिलने वाले फंड का मुद्दा उठाते हुए पिछले दिनों कहा था कि अमेरिका इस आंदोलन के पीछे है। इस आरोप पर अमेरिका ने कहा था कि वह इस आंदोलन के पीछे नहीं है। लेकिन वह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शऩ का समर्थऩ करता है। 


Sunday, August 21, 2011

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल

  









HIGHLIGHTS

  • सरकारी लोकपाल कानून में कलेक्टर, पुलिस, राशन, अस्पताल, शिक्षा, सड़क, उद्योग, पंचायत, नगर पालिका, वन विभाग, सिंचाई विभाग, लाईसेंस, पेंशन, रोड़वेज़ जैसे तमाम विभागों के भ्रष्टाचार को जांच से बाहर रखा गया है।
    २ जी, कॉमनवेल्थ, आदर्श जैसे घोटालें इसके बावजूद चलते रहेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री इसकी जाँच से बाहर रहेंगे और मंत्री या अफसरों के खिलाफ जाँच बड़ी मुश्किल से होगी।

  • सरकारी लोकपाल कानून के दायरे में किसी ज़िले में केवल केन्द्र सरकार के विभागों के डायरेक्टर रैंक के अधिकारी आएंगे। यानि जिस ज़िले में डाक, रेलवे, इन्कम टैक्स, टेलीकॉम आदि विभाग का कोई दफ्तर यदि हुआ तो लोकपाल केवल उसके सबसे बड़े अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा। उसके अलावा केन्द्र या राज्य सरकार का कोई भी कर्मचारी इस कानून के दायरे में नहीं आएगा।

  • पूरे देश में यह कानून केन्द्र सरकार के कुल 65000 सीनियर अधिकारियों पर लागू होगा। इसके अलावा पूरे देश के करीब 4.5 लाख एनजीओ और असंख्य गैर पंजीकृत समूह (बड़े बड़े आन्दोलनों से लेकर शहरों गांवो के छोटे छोटे युवा समूह तक) इस कानून की जांच के दायरे में होंगे।

  • सरकारी लोकपाल कानून में भ्रष्टाचार के दोषी के लिए न्यूनतम सज़ा 6 महीने की जेल है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले को (शिकायत गलत पाए जाने पर) मिलने वाली सज़ा दो साल है।
    यदि कोई सरकारी कर्मचारी, अपने खिलाफ शिकायत करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाना चाहेगा तो वकील की फीस व अन्य खर्चे सरकार भरेगी।

  • बईमान, नकारा आदि सरकार के करीबी लोग लोकपाल बनकर बैठ जायेगे।
      मुद्दे : 1. प्रधानमंत्री
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर।
    • टिप्पणी: आज की व्यवस्था में प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत की जा सकती है। सरकार चाहती है कि इसकी जांच निष्पक्ष और स्वायत्त लोकपाल की जगह प्रधानमंत्री के अधीन आने वाली सीबीआई ही करे।

      मुद्दे : 2. न्यायपालिका
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के पास न्यायपालिका के खिलाफ भष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर
    • टिप्पणी: सरकार इसे ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में लाना चाहती है। इस बिल के मुताबिक किसी जज के भ्रष्टाचार की जांच की इजाज़त तीन सदस्यीय पैनल देगा (जिसमें से दो उसी अदालत से वर्तमान जज होंगे और एक उसी अदालत के रिटायर मुख्य न्यायधीश होंगे।)ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में बहुत सी और खामियां हैं। हमें न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को इसके दायरे में लाने पर कोई आपत्ति नही है बशर्ते कि यह सख्त हो और लोकपाल के साथ साथ बनाया जाए। न्यायपालिका के भ्रष्टाचार से मुक्ति को आगे के लिए लटकाना ठीक नहीं है।

      मुद्दे : 3. सांसद
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अगर किसी सांसद पर रिश्वत लेकर संसद में वोट देने या सवाल पूछने के आरोप लगते हैं तो लोकपाल के पास उसकी जांच करने का अधिकार होना चाहिए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार ने इसे लोकपाल के दायरे से बाहर रखा है।
    • टिप्पणी: रिश्वत लेकर संसद में वोट डालने या सवाल उठाने का काम किसी भी लोकतन्त्र की नींव हिला सकता है। इतने संगीन भ्रष्ट आचरण को निष्पक्ष जांच के दायरे से बाहर रखकर सरकार सांसदों को संसद में रिश्वत लेकर बोलने का लाईसेंस देकर उन्हें संरक्षण प्रदान करना चाहती है।

      मुद्दे : 4. जनता की आम शिकायतों का निवारण
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: यदि कोई अधिकारी सिटीज़न चार्टर में निर्धारित समय सीमा में जनता का काम पूरा नहीं करता है तो लोकपाल उसके ऊपर ज़ुर्माना लगाएगा और भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाएगा।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सिटीज़न चार्टर का उल्लंघन करने वाले अधिकारी पर ज़ुर्माने का कोई प्रावधान नहीं। अत: सिटीज़न चार्टर की समय सीमा सिर्फ कागज़ पर लिखने के लिए होगी।
    • टिप्पणी: 23 मई की बैठक में सरकार ने हमारी ये मांग स्वीकार कर ली थी लेकिन यह दुर्भाग्यजनक है कि सरकार अपनी बात से पलट गई।

      मुद्दे : 5. सीबीआई
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में मिला देना चाहिए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार सीबीआई को अपने हाथ में रखना चाहती है।
    • टिप्पणी: केन्द्र सरकारें सीबीआई का दुरुपयोग विपक्षी दलों और उनकी राज्य सरकारों के खिलाफ करती रही हैं। सरकार ने सीबीआई को सूचना अधिकार के दायरे से भी निकाल लिया है जिससे इस संस्था में भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। जब तक सीबीआई सरकार के अधीन रहेगी इसी तरह भ्रष्ट बनी रहेगी।

      मुद्दे : 6. लोकपाल के सदस्यों का चयन
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: . एक व्यापक आधार वाली चयन समिति जिसमें दो राजनेता, 4 जज और 2 संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख शामिल हैं।
      2. चयन समिति के लिए सम्भावित उम्मीदवारों की सूची बनाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं के अवकाशप्राप्त प्रमुखों वाली एक सर्च कमेटी जो चयन समिति से स्वतन्त्र होगी। 3. चयन की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और जनभागीदारी वाली होगी।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: 1. सरकारी बिल में दस सदस्यों वाली चयन समिति में से पांच लोग सत्ता पक्ष से होंगे, कुल मिलाकर 6 राजनेता होंगे। इससे यह तय है कि लोकपाल सदस्य पद पर बेईमान, पक्षपाती और कमज़ोर लोग ही पहुंच पाएंगे।
      2. सर्च कमेटी बनाने का काम चयन समिति करेगी अत: यह पूरी तरह चयन समिति के अनुसार काम करेगी।
      3. चयन की कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं यह पूरी तरह चयन समिति पर निर्भर करेगी।
    • टिप्पणी: सरकार के प्रस्ताव में साफ है कि सरकार जिसे चाहे लोकपाल सदस्य और अध्यक्ष बना सकेगी। आश्चर्यजनक है कि सरकार 7 मई की बैठक में चयन समिति के स्वरूप और चयन की प्रक्रिया पर सहमत हो गई थी। केवल सर्च कमेटी में किसे होना इस मुद्दे पर असहमति थी। लेकिन सरकार आश्चर्यजनक रूप से अपनी बात से पलट गई है।

      मुद्दे : 7. लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह होगा?
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: देश के आम लोगों के प्रति। कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर लोकपाल को हटाने की मांग कर सकता है।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार के प्रति। केवल सरकार ही लोकपाल को हटाने की मांग कर सकती है।
    • टिप्पणी: लोकपाल के चयन और उसे हटाने की ताकत सरकार के हाथ में होने से यह सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर ही रह जाएगा। इसका भविष्य उन्हीं सीनियर अफसरों के हाथों में होगा जिसके खिलाफ इसे जांच करनी है। यह अपने आप में विरोधभासी है।

      मुद्दे : 8. लोकपाल के कर्मचारियों की निष्ठा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें सुनने का काम एक स्वायत्त व्यवस्था
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल खुद अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ जांच करेगा। इससे उसके काम में ज़बर्दस्त विरोधाभास पैदा होगा।
    • टिप्पणी: सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल या तो स्वयं के प्रति जवाबदेह होगा या फिर सरकार के प्रति। हम इसे देश के आम लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना चाहते हैं।

      मुद्दे : 9. जांच का तरीका
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल द्वारा जांच करने का तरीका सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार वही होगा जो किसी अपराध के मामले में होता है। शुरुआती जांच के बाद एक एफ.आई.आर. दर्ज होगी। जांच के बाद मामला अदालत के सामने रखा जाएगा जहां इस पर सुनवाई होगी।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार सीआरपीसी को बदल रही है। आरोपी को विशेष संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। शुरुआती जांच के बाद तमाम सबूत आरोपी को दिखाए जाएंगे और उससे पूछा जाएगा कि उसके खिलाफ एफ.आई.आर क्यों न दर्ज की जाए। जांच पूरी होने के बाद, एक बार फिर सारे सबूत उसके सामने रखे जाएंगे और सुनवाई करके उससे पुछा जाएगा कि उसके खिलाफ मुकदमा क्यों न चलाया जाए। जांच के दौरान अगर किसी और व्यक्ति के खिलाफ भी जांच शुरू की जानी है तो उसे भी अब तक के तमाम सबूत दिखाकर उसकी सुनवाई की जाएगी।
    • टिप्पणी: सरकार ने जांच प्रक्रिया को पूरा का पूरा मज़ाक बना कर रख दिया है। यदि आरोपियों को हर स्तर पर इस तरह सबूत दिखाए गए तो इससे न सिर्फ उन्हें बाकी के सबूत मिटाने में मदद मिलेगी बल्कि उनके खिलाफ गवाही देने वालों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की जान भी खतरे में पड़ जाएगी। जांच का ऐसा अनोखा तरीका दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता। इससे हरेक मामले को शुरू में ही दफना दिया जाएगा।

      मुद्दे : 10. निचले स्तर के अधिकारी
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: भ्रष्टाचार निरोधी कानून में लोकसेवक की परिभाषा में शामिल सभी लोग इसके दायरे में आएंगे। जिसमें निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसमें केवल केन्द्र सरकार के क्लास-1 अधिकारियों को ही शामिल किया जा रहा है।
    • टिप्पणी: निचले स्तर की नौकरशाही को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की सरकार की मंशा समझ से परे है। इसका कारण हो सकता है कि सरकार सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखना चाहती है। क्योंकि अगर सभी कर्मचारी लोकपाल के अधीन आ जाएंगे तो सरकार के पास सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखने का कोई आधार नहीं बचेगा।

      मुद्दे : 11. लोकायुक्ता
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों का गठन एक ही कानून बनाकर किया जाए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इस कानून से केवल केन्द्र में लोकपाल का गठन होगा।
    • टिप्पणी: प्रणब मुखर्जी के अनुसार कुछ मुख्यमन्त्रियों ने इस कानून के तहत लोकायुक्तों के गठन पर आपत्ति जताई है। लेकिन उन्हें याद दिलाया गया कि सूचना के अधिकार के एक कानून के तहत ही केन्द्र और राज्यों में एक साथ सूचना आयोगों का गठन हुआ था तो इसका कोई जवाब वे नहीं देते।

      मुद्दे : 12. भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल भ्रष्टाचार उजागर करने वालों, गवाहों और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों को सुरक्षा मुहैया करायेगा
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है
    • टिप्पणी: सरकार का कहना है कि भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा के लिए अलग से क़ानून बनाया जा रहा है। लेकिन वो क़ानून इतना कमजोर है कि पिछले महीने संसद की स्टैण्डिंग कमेटी ने भी इसे बेकार बताया है। इस कमेटी की अध्यक्ष जयन्ती नटराजन हैं। लोकपाल बिल की संयुक्त ड्राफ्टिंग कमेटी की 23 मई की बैठक में यह तय किया गया था कि लोकपाल को एक अलग क़ानून के तहत भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जायेगी और उस क़ानून पर चर्चा और उसमें सुधार इसी कमेटी में किया जायेगा। लेकिन यह नहीं किया गया।

      मुद्दे : 13. उच्च न्यायालयों में स्पेशल बेंच
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: सभी उच्च न्यायालयों में भ्रष्टाचार के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच बनाये जाएंगे
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसका प्रावधान नहीं है
    • टिप्पणी: एक अध्ययन के अनुसार भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की सुनवाई पूरी होने में 25 साल लगते हैं। अब समय आ गया है कि इसका समाधान निकाला जाये।

      मुद्दे : 14. सीआरपीसी
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई पूरी होने में कोर्ट में इतना समय क्यों लगता है और क्यों हमारी जांच एजेंसियां इस तरह के मामले हार जाती हैं? इस तरह के पुराने अनुभवों के आधार पर और हर मामलें लगातार स्टे लेने से बचने के लिए सीआरपीसी के कुछ प्रावधानों में बदलाव की बात कही गई है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: नहीं शामिल किया गया है
    • टिप्पणी: No Comments

      मुद्दे : 15. भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों का निलम्बन
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: जांच पूरी होने के बाद भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कोर्ट में मुक़दमा दायर करने के साथ साथ लोकपाल की एक बेंच खुली सुनवाई करते हुए उस अधिकारी को नौकारी से निकालने का निर्णय दे सकती है।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: मंत्री यह तय करेंगे कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकाला जाये या नहीं। देखा यह गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में मंत्री भ्रष्टाचार का लाभ उठा रहे होते हैं, खास तौर पे जब बडे़ अधिकारी इसमें शामिल हों, ऐसी स्थिति में पुराने अनुभव बताते है कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकालने की जगह मंत्री उसे सम्मानित करते हैं।
    • टिप्पणी: भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को नौकरी से हटाने का अधिकार लोकपाल को दिया जाना चाहिए ना कि उसी विभाग के मंत्री को।

      मुद्दे : 16. भ्रष्टाचार करने वालों के लिए दण्ड
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अधिकतम आजीवन कारावास बडे़ अधिकारियों को अधिक सजा अगर दोषी उद्योगपति हो तो अधिकतम जुर्माना लगाया जायेगा अगर किसी उद्योगपति को एक बार सजा हो जाती है तो उसे भविष्य में हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जायेगा
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इनमें से कोई नहीं स्वीकार किया गया। केवल अधिकतम सजा 7 से बढ़ा कर 10 साल कर दी
    • टिप्पणी: No Comments

      मुद्दे : 17. वित्तीय स्वतन्त्रता
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के 11 सदस्य यह तय करेंगे कि उन्हें कितना बजट चाहिए
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: वित्त मन्त्रालय यह तय करेगा कि लोकपाल को कितना बजट दिया जाये
    • टिप्पणी: यह लोकपाल की वित्तीय स्वतन्त्रता से बड़ा समझौता है

      मुद्दे : 18. भविष्य में होने वाले नुकासन को रोकना
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अगर लोकपाल के समक्ष वर्तमान में चल रहे किसी प्रोजेक्ट से सम्बंधित भ्रष्टाचार का कोई मामला आता है तो लोकपाल की यह जिम्मेदारी होगी कि वो भ्रष्टाचार रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने पर लोकपाल उच्च न्यायालये से आदेश भी प्राप्त कर सकता है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है।
    • टिप्पणी: 2 जी घोटाले के सम्बन्ध् में यह कहा जाता है कि जब इसकी प्रक्रिया चल रही थी उस समय ही इससे सम्बंधित जानकरियां बाहर आ गई थीं। क्या कुछ एजेंसियों की यह जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि इस तरह के मामलों में जब भ्रष्टाचार चल रहा था तभी रोकने के लिए कार्रवाई करें ना कि बाद में लोगों को सजा दी जाए।

      मुद्दे : 19. फोन टैपिंग
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल की बेंच फोन टैपिंग का आदेश दे सकती है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: गृह सचिव अनुमति देंगे
    • टिप्पणी: गृह सचिव उन्हीं लोगों के नियन्त्रण में काम करते है जिनके खिलाफ कार्रवाई करनी होती है। इससे जांच करने का कोई फायदा नहीं होगा।

      मुद्दे : 20. अधिकारों का बटवारा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के सदस्य केवल बड़े अधिकारियों और नेताओं या बड़े स्तर पर हुए भ्रष्टाचार के मामलों की हीं सुनवाई करेंगे। बाकी मामलों की जांच लोकपाल के अन्दर के अधिकारी करेंगे।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सभी तरह के काम केवल लोकपाल के 11 सदस्य ही करेंगे। वास्वत में अधिकारों का कोई बटवारा ही नहीं है।
    • टिप्पणी: इससे यह तय है कि लोकपाल आने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। केवल 11 सदस्य सभी मामलों पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। कुछ ही समय में शिकायतों के बोझ से लोकपाल दब जायेगा।

      मुद्दे : 21. एनजीओ
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
    • टिप्पणी: भ्रष्टाचार के आन्दोलनों और गैर सरकारी संगठनों को दबाने का नया तरीका है

      मुद्दे : 22. फालतू और निराधार शिकायतें
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: किसी तरह की कैद नहीं केवल जुर्मानें का प्रावधान। लोकपाल यह तय करेंगे कि कोई शिकायत फालतू और निराधार है या नहीं।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: 2 से 5 साल तक की कैद और जुर्माना। आरोपी शिकायतकर्ता के खिलाफ कोर्ट में शिकायत दायर कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि आरोपी को कोर्ट में केस करने के लिए वकील और उस पर होने वाले सभी खर्चे सरकार वहन करेगी। साथ ही शिकायतकर्ता को आरोपी को क्षतिपूर्ति भी देनी पड़ सकती है।
    • टिप्पणी: इससे अरोपी अधिकारियों को एक हथियार मिल जायेगा जिससे वो शिकायतकर्ता को धमका सकते हैं। हर मामले में वो शिकायतकर्ताओं के खिलाफ कोर्ट केस दायर कर देंगे जिससे कोई भी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पायेगा। एक और दिलचस्प बात यह है कि भ्रष्टाचार साबित होने पर न्यूनतम कैद 6 महीने की है, लेकिन गलत शिकायत करने पर 2 साल की कैद होगी।

  • जाने क्या है लोकपाल बिल


    क्या है लोकपाल बिल
    1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।

    2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पाएगा।

    3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

    4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।

    5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा
    यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।

    6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

    7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी?
    ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।

    8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो?
    लोकपाल/लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।

    9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा?
    सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

    Thursday, August 4, 2011

    नेताओं की साजिश में फंसा लिलजी बांध, प्रदेश में अपनी तरह के नये नियम का प्रस्ताव

    लिलजी बांध जो कभी रीवा राज्य में जल संग्रहण व संरक्षण के लिये तैयार किया गया था लेकिन बाद में यह पता चलने पर कि यहां चूना पत्थर काफी मात्रा में है इसके लिये साजिश का दौर शुरु हो गया। तत्कालीन समय में कांग्रेस विधायक राजेन्द्र सिंह ने इसके लिये कोशिश की और इसे जल संसाधन से राजस्व भूमि में बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ कराई। सरकार बदलने पर मंत्री राजेन्द्र शुक्ला व सांसद गणेश सिंह इसमें शामिल हो गये और इस बांध के लिये एक नायब तहसीलदार के अनुमोदन पर लीज स्वीकृत करा दी। जबकि नियमानुसार एसडीएम या तहसीलदार की अनुमति जरूरी होती है। लेकिन लिलजी पर एक सीमेंट फैक्ट्री की नजर होने के बाद इसमें अमरपाटन के विधायक रामखेलावन ने भी अपनी आपत्ति जता कर इस खेल में कूद गये और लाभार्थी ग्रुप में शामिल कर लिये गये। और अब यही लाभार्थी ग्रुप अपने समर्थक कब्जेदारों को यही जमीन दिलाने प्रदेश में अपने तरह का नया नियम बनाने के लिये प्रस्ताव प्रदेश सरकार को भिजवा दिया। इसके पीछे मंशा है कि बाद में इनसे फैक्ट्री के लिये जमीन ले ली जायेगी। यहां किसी एसबी सीमेंट फैक्ट्री की नजर लगी होने की बात कही जा रही है। 
    लेकिन इस प्रस्ताव को स्वीकार करना सरकार के गले की हड्डी बन जायेगा क्योंकि तब पूरे प्रदेश से ऐसे मामले जमीन लेने के सामने आने लगेंगे तो मेधा पाटकर भी अपनी मांग पर दोबारा जुट सकती हैं। 
    जल संसाधन को वापस देना उचित
    इस मामले का सबसे बढ़िय़ा विकल्प इसे वापस जलसंसाधन विभाग को देकर इस बांध के गेट बंद कराकर जल संग्रहण की बड़ी संरचना का रूप दे दिया जाये। यह सरकार की जल संग्रहण की नीति का भी पक्षधर होगा। 

    Wednesday, March 30, 2011

    रामवन के विकास में गुम हो गये हनुमान जी

    जिले का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल रामवन अब पर्यटन स्थल बनने जा रहा है। यहां अब धार्मिकता कम दिखावा व सौर्दर्यीकरण ज्यादा हो चला है। सेवक के रूप में पहचाने जाने वाले राम भक्त हनुमान की विशाल प्रतिमा की वजह से कभी पहचाने जाने वाले हनुमान जी की आज रामवन विकास के बाद हालात यह हो गये हैं कि वे एक कोने में अकेले खड़े नजर आते हैं। यू तो यहां के स्वयं भू विकास पुरुष श्री कृष्ण माहेश्वरी जो चित्रकूट के नानाजी की तरह अपनी पहचान बनाने के लिये तमाम विकास गाथाएं कह रहे हैं लेकिन उनमें नानाजी के एक भी अंश नहीं हैं। दो पंचायतों की राशि का हक मारकर इनके पैसे से विकास कराकर अपनी वाहवाही बताने वाले कहीं भी पंचायत को इसका श्रेय नहीं देते। जबकि हकीकत यह है कि यह सब कुछ पंचायतों की दयानतदारी या कहें कि पंचायत जनप्रतिनिधियों की नासमझी है कि पंचायत के हिस्से की राशि को रामवन में खर्च किया गया। दूसरी ओर यहां मुख्यमंत्री आने वाले हैं इसके लिये बनी सड़कों पर मुरुम का छिड़काव कर इसे नई सड़क दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। एक सवाल यह भी उठ रहा है कि रामवन विकास के लिये जो राशि दी गई है वह जनभागीदारी की है इसमें जनभागीदारी का हिस्सा अभी तक जमा नहीं हुआ और मूल निधि पूरी खर्च हो गई। दूसरी ओर मतहा रिछहरी के मूल ग्रामीण रामवन विकास को महज ढकोसला करार देते हुए कहते हैं कि यहां कुछ लोगों की ऐशगाह बन रही है जिसका यहां की जनता को कोई लाभ नहीं है। कुछ लोगों ने इसे अपने कब्जे में लेने का सफल प्रयास किया जो कामयाब होता दिख रहा है। यहां के अतिथि गृह जो आरामगाह साबित होगी उसकी छत से हनुमान जी का नजारा ले तो अपने आप स्पष्ट हो जायेगा कि हनुमान इस भीड़ में कहीं खो गये हैं।

    हनुमान के दूसरी ओर सौदर्य का नजारा

















    मानस संघ ट्रस्ट के काम में जुटा प्रशासनिक अमला
















    बनी सड़क के उपर मुरुम का छिड़काव कर दिखाई जा रही नई सड़क















    इस तरह से रामवन में खर्च हो गये करोड़ो लेकिन कोई कुछ न कहेगा क्योंकि इस विकास गाथा में शामिल है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के श्री कृष्ण माहेश्वरी। लेकिन माननीय माहेश्वरी जी भूल गये कि वे नानाजी की तरह त्याग व समर्पण कहां से लायेंगे।