चर्चा के दौरान परिचित ने पूछा आज से एक दशक पहले जब तुम कोई वस्तु खरीदने जब बाजार जाते थे तो क्या ख्याल होता था. मैने कहा मतलब मैं नहीं समझा. उन्होंने विस्तार से बताते हुए निष्कर्ष बताया कि तब के बाजार में दो वस्तुएं ही होती थी एक तो ओरिजनल या फिर दिल्ली ब्राण्ड. दिल्ली ब्राण्ड का आशय तब ज्यादातर सस्ती चीजों के लिये होता था.
फिर उन्होंने इसे और गहराई में ले जाकर समझाया कि दिल्ली ब्राण्ड का मतलब सिर्फ डुप्लीकेट से न होकर सस्ती चीजों से भी होता था जो हमारे देश के लघु व कुटीर उद्योगों में तैयार होती थी देशज कंपनियों द्वारा सस्ती दरों पर तैयार करके बाजार में उतारी जाती थी. यदि इलेक्ट्रानिक्स पर ही देखे तो दिल्ली ब्राण्ड का तब अच्छा खासा दबदबा हुआ करता था. लेकिन यह सब भारतीय ही होता था.
लेकिन सरकार की गलत नीतियों से जहां लघु व कुटीर उद्योगों सहित छोटे उद्यमी तो तबाह होते ही जा रहे हैं वहीं चीन का बाजार यहां कब्जा जमा रहा है. जिसका नतीजा है की अब लोग दिल्ली ब्राण्ड भूल चुके है. अब इसकी जगह ले रहा चाइना ब्राण्ड.
यदि दिल्ली ब्राण्ड अब खत्म हो गया तो आप खुद समझें के भारतीय बाजार की क्या दशा होगी.