Roman Hindi Gujarati bengali tamil telugu malayalam

Monday, August 22, 2011

जनलोकपाल की लोकक्रांति और देश की कूटनीतिक हार

यह लेख मेरे अब तक के जीवन में लिखा गया सबसे कठिनतम लेख है और हो सकता है कि मैं इसमें पूरी तरह से गलत होऊं लेकिन इसकी गंभीरता के मद्देनजर खुले दिमाग से पढ़ा जाये तो हो सकता है कि यह साबित हो सकेगा कि मैं सही हूं।
यहां बात अन्ना हजारे की लोक क्रांति की है जो जनलोकपाल बिल को लेकर है, लेकिन मैं इस क्रांति की सफलता और असफलता से इतर (इसके निहितार्थों) की बात कर रहा हूं जो देश की कूटनीति के लिये बड़े मायने रखती है। ... और यदि मैं सही हूं तो अगस्त की यह लोक क्रांति देश की बड़ी डिप्लोमेटिक पराजय है...

पहले कुछ बिन्दुओं पर ध्यान दें
1. आज की महाशक्ति कौन हैं- अमेरिका
2. ऐसा कौन सा देश है जो विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी में भी टिका रहा- भारत
3. भविष्य में महाशक्ति को चुनौती किससे मिल सकती है- मुस्लिम राष्ट्रों और भारत
4. मुस्लिम राष्ट्रों को शक्तिहीन किसने किया - अमेरिका
5. भारत की सबसे बड़ी ताकत- लोकतंत्र
6. लोकतंत्र की बड़ी ताकत- युवा शक्ति
7. लोकतंत्र का केन्द्र कौन- संसद
8. लोकक्रांति से किसका विश्वास घटा- संसद
9. हमारे स्थापित आइकॉन अर्थात नेताओं से इस आंदोलन ने विश्वास डिगा दिया अर्थात भविष्य में इनकी बातें लोकतंत्र की आदर्श नहीं होंगी।

अब इन सभी बिन्दुओं को एक रूप में पिरोकर अर्थ निकालने की कोशिश कीजिये। यहां अभी भी मैं अन्ना और जनलोकपाल की बात नहीं कर रहा हूं....

अब इससे इतर कुछ घटनाक्रमों को ध्यान दें
1. पिछले कुछ महीने पहले हिलेरी क्लिंटन भारत की कूटनीतिक यात्रा पर आती है और नई दिल्ली की विश्व स्तर पर बढ़ती भूमिका की प्रशंसा करते हुए क्लिंटन ने जोर देकर कहा कि 21वीं सदी का इतिहास भारत और एशिया में लिखा जाएगा। उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले साल भारत का दौरा किया और पिछले दो सालों में मैंने यहां की दो बार यात्रा की है। कोई पूछ सकता है ये यात्राएं क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि 21वीं सदी का ज्यादातर इतिहास एशिया में लिखा जाएगा।"

2. देश की ज्यादातर बड़ी एनजीओ को काम करने के एवज में ज्यादा तर मदद कहां से मिलती है और किन राष्ट्रो से मिलती है- जवाब हम सब जानते हैं कि पश्चिमी राष्ट्रों से और इनमें से ज्यादा तर या तो अमेरिका या अमेरिका समर्थित देशों से। अर्थात एनजीओ को अपनी मदद के लिये इन देशों के रहमो करम पर निर्भर रहना पड़ता है। (इसे दूसरे अर्थों में न लिया जाये, सिवाय कूटनीतिक मसले के) अर्थात पश्चिमी राष्ट्र मदद के नाम पर कुछ लाभ के लिये एनजीओ का उपयोग कर सकते हैं।

3. अब सरकारी लोकपाल बनाम जन लोकपाल पर आते हैं जिसमें एनजीओ भी एक मुद्दा है-
जनलोकपाल के प्रस्ताव- केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव- छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
4. यह आंदोलन खड़ा करने में मुख्य भूमिका- एनजीओ और उनके सदस्य और बाद में कई एनजीओ का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग
5. इस आंदोलन को सबसे ज्यादा प्रभावी बनाने में मुख्य भूमिका मीडिया(इलेक्ट्रानिक) और इसमें भी प्रमुख भूमिका - विदेशी सहायता पर चलने वाले न्यूज चैनल मसलन आईबीएन 7 जो सीएनएन का साझीदार है।

उपरोक्त सभी बिन्दुओं को जोड़कर देखिये फिर सोचिये

- क्या यह आशय नहीं निकलता है कि भारत की सबसे बड़ी ताकत अर्थात लोकतांत्रिक देश के लोकतंत्र की नींव अर्थात संसद की चूले हिली है और कैसे कोई एक आदमी किसी देश की सबसे बड़ी ताकत को आपरेट कर रहा है। (यहां फिर स्पष्ट कर रहा हूं मै अन्ना के विरोध में नहीं हूं न ही जन लोक पाल के विरोध में हूं यहां बात कूटनीतिक नजरिये की हो रही है)

- विश्व में जनसंचार के सबसे बड़े प्रयोग कहां होते हैं- स्पष्ट जवाब है और सभी सहमत होंगे कि अमेरिका में- अब आप सोचिये यह आंदोलन जनसंचार का सबसे सफल प्रयोग नहीं हैं-

अब उपर के सभी तथ्यों को जोड़ कर देखे और कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री द्वारा किये गये इशारे पर गौर करें कि कोई बाहरी ताकत है जो देश को अस्थिर करना चाह रही है।

(देखें वेब दुनिया स्पेशल)कौन है अन्ना के पीछे

- सारा देश जानता है कि कांग्रेस हमेशा रूस के प्रति हिमायती रही है और भाजपा का झुकाव अमेरिका की ओर ज्यादा रहा है।

इधर कांग्रेस शासन में ही रूस से मिल कर ब्रह्मोस, स्टेल्थ विमान जैसे बड़े सामरिक समझौते सफल हुए हैं। जो भविष्य में देश को महाशक्ति की ओर अग्रसर करेंगे। वहीं इस चुनौती से सबसे ज्यादा नुकसान किसका होगा- स्वाभाविक है अमेरिका का।

तो क्या पूरे का निहितार्थ यह नहीं निकलता है कि यह आंदोलन देश के कूटनीतिज्ञों की बड़ी असफलता है और कूटनीति में भारत अमेरिका से हार गया है...................


 'बेयोंड हेडलाइंस' का खुलासा
 'बेयोंड हेडलाइंस' नाम के एक मीडिया संस्‍थान ने अन्‍ना के आंदोलन को अमेरिका से भी जोड़ा है। अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल बिल के समर्थन में चल रहे आंदोलन में कौन पैसे लगा रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए इस मीडिया संस्थान ने सूचना के अधिकार के तहत टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' को मिलने वाले फंड और खर्चे के बारे में जानकारी हासिल की है। इस संस्था को अलग-अलग स्रोतों से फंड मिले हैं। इसमें अमेरिका का फोर्ड फाउंडेशन भी शामिल है। कबीर को फोर्ड फाउंडेशन ने 86,61,742 रुपये का फंड मुहैया कराया है।  इसके अलावा, पीआरआईए (237035 रुपये), मंजुनाथ शनमुगम ट्रस्ट (370000रुपये), डच एंबेसी (19,61,968रुपये), एसोसिएशन फॉर इंडियाज डेवलपमेंट (15,00,000), इंडियाज फ्रेंड्स एसोसिएशन (7,86,500), यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (12,52,742) से सिसोदिया के संगठन को फंड मिले। 2007 से 2010 के बीच व्यक्तिगत तौर पर कबीर को 11,35,857 रुपये की राशि मिली है। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में शामिल एक प्रमुख गैर सरकारी संगठन को ज़्यादातर फंड अमेरिका से मिला है।  कांग्रेस ने अन्ना के आंदोलन को मिलने वाले फंड का मुद्दा उठाते हुए पिछले दिनों कहा था कि अमेरिका इस आंदोलन के पीछे है। इस आरोप पर अमेरिका ने कहा था कि वह इस आंदोलन के पीछे नहीं है। लेकिन वह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शऩ का समर्थऩ करता है। 


Sunday, August 21, 2011

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल

  









HIGHLIGHTS

  • सरकारी लोकपाल कानून में कलेक्टर, पुलिस, राशन, अस्पताल, शिक्षा, सड़क, उद्योग, पंचायत, नगर पालिका, वन विभाग, सिंचाई विभाग, लाईसेंस, पेंशन, रोड़वेज़ जैसे तमाम विभागों के भ्रष्टाचार को जांच से बाहर रखा गया है।
    २ जी, कॉमनवेल्थ, आदर्श जैसे घोटालें इसके बावजूद चलते रहेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री इसकी जाँच से बाहर रहेंगे और मंत्री या अफसरों के खिलाफ जाँच बड़ी मुश्किल से होगी।

  • सरकारी लोकपाल कानून के दायरे में किसी ज़िले में केवल केन्द्र सरकार के विभागों के डायरेक्टर रैंक के अधिकारी आएंगे। यानि जिस ज़िले में डाक, रेलवे, इन्कम टैक्स, टेलीकॉम आदि विभाग का कोई दफ्तर यदि हुआ तो लोकपाल केवल उसके सबसे बड़े अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा। उसके अलावा केन्द्र या राज्य सरकार का कोई भी कर्मचारी इस कानून के दायरे में नहीं आएगा।

  • पूरे देश में यह कानून केन्द्र सरकार के कुल 65000 सीनियर अधिकारियों पर लागू होगा। इसके अलावा पूरे देश के करीब 4.5 लाख एनजीओ और असंख्य गैर पंजीकृत समूह (बड़े बड़े आन्दोलनों से लेकर शहरों गांवो के छोटे छोटे युवा समूह तक) इस कानून की जांच के दायरे में होंगे।

  • सरकारी लोकपाल कानून में भ्रष्टाचार के दोषी के लिए न्यूनतम सज़ा 6 महीने की जेल है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले को (शिकायत गलत पाए जाने पर) मिलने वाली सज़ा दो साल है।
    यदि कोई सरकारी कर्मचारी, अपने खिलाफ शिकायत करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाना चाहेगा तो वकील की फीस व अन्य खर्चे सरकार भरेगी।

  • बईमान, नकारा आदि सरकार के करीबी लोग लोकपाल बनकर बैठ जायेगे।
      मुद्दे : 1. प्रधानमंत्री
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर।
    • टिप्पणी: आज की व्यवस्था में प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत की जा सकती है। सरकार चाहती है कि इसकी जांच निष्पक्ष और स्वायत्त लोकपाल की जगह प्रधानमंत्री के अधीन आने वाली सीबीआई ही करे।

      मुद्दे : 2. न्यायपालिका
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के पास न्यायपालिका के खिलाफ भष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर
    • टिप्पणी: सरकार इसे ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में लाना चाहती है। इस बिल के मुताबिक किसी जज के भ्रष्टाचार की जांच की इजाज़त तीन सदस्यीय पैनल देगा (जिसमें से दो उसी अदालत से वर्तमान जज होंगे और एक उसी अदालत के रिटायर मुख्य न्यायधीश होंगे।)ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में बहुत सी और खामियां हैं। हमें न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को इसके दायरे में लाने पर कोई आपत्ति नही है बशर्ते कि यह सख्त हो और लोकपाल के साथ साथ बनाया जाए। न्यायपालिका के भ्रष्टाचार से मुक्ति को आगे के लिए लटकाना ठीक नहीं है।

      मुद्दे : 3. सांसद
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अगर किसी सांसद पर रिश्वत लेकर संसद में वोट देने या सवाल पूछने के आरोप लगते हैं तो लोकपाल के पास उसकी जांच करने का अधिकार होना चाहिए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार ने इसे लोकपाल के दायरे से बाहर रखा है।
    • टिप्पणी: रिश्वत लेकर संसद में वोट डालने या सवाल उठाने का काम किसी भी लोकतन्त्र की नींव हिला सकता है। इतने संगीन भ्रष्ट आचरण को निष्पक्ष जांच के दायरे से बाहर रखकर सरकार सांसदों को संसद में रिश्वत लेकर बोलने का लाईसेंस देकर उन्हें संरक्षण प्रदान करना चाहती है।

      मुद्दे : 4. जनता की आम शिकायतों का निवारण
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: यदि कोई अधिकारी सिटीज़न चार्टर में निर्धारित समय सीमा में जनता का काम पूरा नहीं करता है तो लोकपाल उसके ऊपर ज़ुर्माना लगाएगा और भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाएगा।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सिटीज़न चार्टर का उल्लंघन करने वाले अधिकारी पर ज़ुर्माने का कोई प्रावधान नहीं। अत: सिटीज़न चार्टर की समय सीमा सिर्फ कागज़ पर लिखने के लिए होगी।
    • टिप्पणी: 23 मई की बैठक में सरकार ने हमारी ये मांग स्वीकार कर ली थी लेकिन यह दुर्भाग्यजनक है कि सरकार अपनी बात से पलट गई।

      मुद्दे : 5. सीबीआई
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में मिला देना चाहिए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार सीबीआई को अपने हाथ में रखना चाहती है।
    • टिप्पणी: केन्द्र सरकारें सीबीआई का दुरुपयोग विपक्षी दलों और उनकी राज्य सरकारों के खिलाफ करती रही हैं। सरकार ने सीबीआई को सूचना अधिकार के दायरे से भी निकाल लिया है जिससे इस संस्था में भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। जब तक सीबीआई सरकार के अधीन रहेगी इसी तरह भ्रष्ट बनी रहेगी।

      मुद्दे : 6. लोकपाल के सदस्यों का चयन
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: . एक व्यापक आधार वाली चयन समिति जिसमें दो राजनेता, 4 जज और 2 संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख शामिल हैं।
      2. चयन समिति के लिए सम्भावित उम्मीदवारों की सूची बनाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं के अवकाशप्राप्त प्रमुखों वाली एक सर्च कमेटी जो चयन समिति से स्वतन्त्र होगी। 3. चयन की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और जनभागीदारी वाली होगी।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: 1. सरकारी बिल में दस सदस्यों वाली चयन समिति में से पांच लोग सत्ता पक्ष से होंगे, कुल मिलाकर 6 राजनेता होंगे। इससे यह तय है कि लोकपाल सदस्य पद पर बेईमान, पक्षपाती और कमज़ोर लोग ही पहुंच पाएंगे।
      2. सर्च कमेटी बनाने का काम चयन समिति करेगी अत: यह पूरी तरह चयन समिति के अनुसार काम करेगी।
      3. चयन की कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं यह पूरी तरह चयन समिति पर निर्भर करेगी।
    • टिप्पणी: सरकार के प्रस्ताव में साफ है कि सरकार जिसे चाहे लोकपाल सदस्य और अध्यक्ष बना सकेगी। आश्चर्यजनक है कि सरकार 7 मई की बैठक में चयन समिति के स्वरूप और चयन की प्रक्रिया पर सहमत हो गई थी। केवल सर्च कमेटी में किसे होना इस मुद्दे पर असहमति थी। लेकिन सरकार आश्चर्यजनक रूप से अपनी बात से पलट गई है।

      मुद्दे : 7. लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह होगा?
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: देश के आम लोगों के प्रति। कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर लोकपाल को हटाने की मांग कर सकता है।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार के प्रति। केवल सरकार ही लोकपाल को हटाने की मांग कर सकती है।
    • टिप्पणी: लोकपाल के चयन और उसे हटाने की ताकत सरकार के हाथ में होने से यह सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर ही रह जाएगा। इसका भविष्य उन्हीं सीनियर अफसरों के हाथों में होगा जिसके खिलाफ इसे जांच करनी है। यह अपने आप में विरोधभासी है।

      मुद्दे : 8. लोकपाल के कर्मचारियों की निष्ठा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें सुनने का काम एक स्वायत्त व्यवस्था
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल खुद अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ जांच करेगा। इससे उसके काम में ज़बर्दस्त विरोधाभास पैदा होगा।
    • टिप्पणी: सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल या तो स्वयं के प्रति जवाबदेह होगा या फिर सरकार के प्रति। हम इसे देश के आम लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना चाहते हैं।

      मुद्दे : 9. जांच का तरीका
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल द्वारा जांच करने का तरीका सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार वही होगा जो किसी अपराध के मामले में होता है। शुरुआती जांच के बाद एक एफ.आई.आर. दर्ज होगी। जांच के बाद मामला अदालत के सामने रखा जाएगा जहां इस पर सुनवाई होगी।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार सीआरपीसी को बदल रही है। आरोपी को विशेष संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। शुरुआती जांच के बाद तमाम सबूत आरोपी को दिखाए जाएंगे और उससे पूछा जाएगा कि उसके खिलाफ एफ.आई.आर क्यों न दर्ज की जाए। जांच पूरी होने के बाद, एक बार फिर सारे सबूत उसके सामने रखे जाएंगे और सुनवाई करके उससे पुछा जाएगा कि उसके खिलाफ मुकदमा क्यों न चलाया जाए। जांच के दौरान अगर किसी और व्यक्ति के खिलाफ भी जांच शुरू की जानी है तो उसे भी अब तक के तमाम सबूत दिखाकर उसकी सुनवाई की जाएगी।
    • टिप्पणी: सरकार ने जांच प्रक्रिया को पूरा का पूरा मज़ाक बना कर रख दिया है। यदि आरोपियों को हर स्तर पर इस तरह सबूत दिखाए गए तो इससे न सिर्फ उन्हें बाकी के सबूत मिटाने में मदद मिलेगी बल्कि उनके खिलाफ गवाही देने वालों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की जान भी खतरे में पड़ जाएगी। जांच का ऐसा अनोखा तरीका दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता। इससे हरेक मामले को शुरू में ही दफना दिया जाएगा।

      मुद्दे : 10. निचले स्तर के अधिकारी
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: भ्रष्टाचार निरोधी कानून में लोकसेवक की परिभाषा में शामिल सभी लोग इसके दायरे में आएंगे। जिसमें निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसमें केवल केन्द्र सरकार के क्लास-1 अधिकारियों को ही शामिल किया जा रहा है।
    • टिप्पणी: निचले स्तर की नौकरशाही को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की सरकार की मंशा समझ से परे है। इसका कारण हो सकता है कि सरकार सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखना चाहती है। क्योंकि अगर सभी कर्मचारी लोकपाल के अधीन आ जाएंगे तो सरकार के पास सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखने का कोई आधार नहीं बचेगा।

      मुद्दे : 11. लोकायुक्ता
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों का गठन एक ही कानून बनाकर किया जाए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इस कानून से केवल केन्द्र में लोकपाल का गठन होगा।
    • टिप्पणी: प्रणब मुखर्जी के अनुसार कुछ मुख्यमन्त्रियों ने इस कानून के तहत लोकायुक्तों के गठन पर आपत्ति जताई है। लेकिन उन्हें याद दिलाया गया कि सूचना के अधिकार के एक कानून के तहत ही केन्द्र और राज्यों में एक साथ सूचना आयोगों का गठन हुआ था तो इसका कोई जवाब वे नहीं देते।

      मुद्दे : 12. भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल भ्रष्टाचार उजागर करने वालों, गवाहों और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों को सुरक्षा मुहैया करायेगा
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है
    • टिप्पणी: सरकार का कहना है कि भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा के लिए अलग से क़ानून बनाया जा रहा है। लेकिन वो क़ानून इतना कमजोर है कि पिछले महीने संसद की स्टैण्डिंग कमेटी ने भी इसे बेकार बताया है। इस कमेटी की अध्यक्ष जयन्ती नटराजन हैं। लोकपाल बिल की संयुक्त ड्राफ्टिंग कमेटी की 23 मई की बैठक में यह तय किया गया था कि लोकपाल को एक अलग क़ानून के तहत भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जायेगी और उस क़ानून पर चर्चा और उसमें सुधार इसी कमेटी में किया जायेगा। लेकिन यह नहीं किया गया।

      मुद्दे : 13. उच्च न्यायालयों में स्पेशल बेंच
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: सभी उच्च न्यायालयों में भ्रष्टाचार के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच बनाये जाएंगे
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसका प्रावधान नहीं है
    • टिप्पणी: एक अध्ययन के अनुसार भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की सुनवाई पूरी होने में 25 साल लगते हैं। अब समय आ गया है कि इसका समाधान निकाला जाये।

      मुद्दे : 14. सीआरपीसी
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई पूरी होने में कोर्ट में इतना समय क्यों लगता है और क्यों हमारी जांच एजेंसियां इस तरह के मामले हार जाती हैं? इस तरह के पुराने अनुभवों के आधार पर और हर मामलें लगातार स्टे लेने से बचने के लिए सीआरपीसी के कुछ प्रावधानों में बदलाव की बात कही गई है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: नहीं शामिल किया गया है
    • टिप्पणी: No Comments

      मुद्दे : 15. भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों का निलम्बन
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: जांच पूरी होने के बाद भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कोर्ट में मुक़दमा दायर करने के साथ साथ लोकपाल की एक बेंच खुली सुनवाई करते हुए उस अधिकारी को नौकारी से निकालने का निर्णय दे सकती है।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: मंत्री यह तय करेंगे कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकाला जाये या नहीं। देखा यह गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में मंत्री भ्रष्टाचार का लाभ उठा रहे होते हैं, खास तौर पे जब बडे़ अधिकारी इसमें शामिल हों, ऐसी स्थिति में पुराने अनुभव बताते है कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकालने की जगह मंत्री उसे सम्मानित करते हैं।
    • टिप्पणी: भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को नौकरी से हटाने का अधिकार लोकपाल को दिया जाना चाहिए ना कि उसी विभाग के मंत्री को।

      मुद्दे : 16. भ्रष्टाचार करने वालों के लिए दण्ड
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अधिकतम आजीवन कारावास बडे़ अधिकारियों को अधिक सजा अगर दोषी उद्योगपति हो तो अधिकतम जुर्माना लगाया जायेगा अगर किसी उद्योगपति को एक बार सजा हो जाती है तो उसे भविष्य में हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जायेगा
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इनमें से कोई नहीं स्वीकार किया गया। केवल अधिकतम सजा 7 से बढ़ा कर 10 साल कर दी
    • टिप्पणी: No Comments

      मुद्दे : 17. वित्तीय स्वतन्त्रता
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के 11 सदस्य यह तय करेंगे कि उन्हें कितना बजट चाहिए
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: वित्त मन्त्रालय यह तय करेगा कि लोकपाल को कितना बजट दिया जाये
    • टिप्पणी: यह लोकपाल की वित्तीय स्वतन्त्रता से बड़ा समझौता है

      मुद्दे : 18. भविष्य में होने वाले नुकासन को रोकना
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अगर लोकपाल के समक्ष वर्तमान में चल रहे किसी प्रोजेक्ट से सम्बंधित भ्रष्टाचार का कोई मामला आता है तो लोकपाल की यह जिम्मेदारी होगी कि वो भ्रष्टाचार रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने पर लोकपाल उच्च न्यायालये से आदेश भी प्राप्त कर सकता है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है।
    • टिप्पणी: 2 जी घोटाले के सम्बन्ध् में यह कहा जाता है कि जब इसकी प्रक्रिया चल रही थी उस समय ही इससे सम्बंधित जानकरियां बाहर आ गई थीं। क्या कुछ एजेंसियों की यह जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि इस तरह के मामलों में जब भ्रष्टाचार चल रहा था तभी रोकने के लिए कार्रवाई करें ना कि बाद में लोगों को सजा दी जाए।

      मुद्दे : 19. फोन टैपिंग
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल की बेंच फोन टैपिंग का आदेश दे सकती है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: गृह सचिव अनुमति देंगे
    • टिप्पणी: गृह सचिव उन्हीं लोगों के नियन्त्रण में काम करते है जिनके खिलाफ कार्रवाई करनी होती है। इससे जांच करने का कोई फायदा नहीं होगा।

      मुद्दे : 20. अधिकारों का बटवारा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के सदस्य केवल बड़े अधिकारियों और नेताओं या बड़े स्तर पर हुए भ्रष्टाचार के मामलों की हीं सुनवाई करेंगे। बाकी मामलों की जांच लोकपाल के अन्दर के अधिकारी करेंगे।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सभी तरह के काम केवल लोकपाल के 11 सदस्य ही करेंगे। वास्वत में अधिकारों का कोई बटवारा ही नहीं है।
    • टिप्पणी: इससे यह तय है कि लोकपाल आने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। केवल 11 सदस्य सभी मामलों पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। कुछ ही समय में शिकायतों के बोझ से लोकपाल दब जायेगा।

      मुद्दे : 21. एनजीओ
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
    • टिप्पणी: भ्रष्टाचार के आन्दोलनों और गैर सरकारी संगठनों को दबाने का नया तरीका है

      मुद्दे : 22. फालतू और निराधार शिकायतें
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: किसी तरह की कैद नहीं केवल जुर्मानें का प्रावधान। लोकपाल यह तय करेंगे कि कोई शिकायत फालतू और निराधार है या नहीं।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: 2 से 5 साल तक की कैद और जुर्माना। आरोपी शिकायतकर्ता के खिलाफ कोर्ट में शिकायत दायर कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि आरोपी को कोर्ट में केस करने के लिए वकील और उस पर होने वाले सभी खर्चे सरकार वहन करेगी। साथ ही शिकायतकर्ता को आरोपी को क्षतिपूर्ति भी देनी पड़ सकती है।
    • टिप्पणी: इससे अरोपी अधिकारियों को एक हथियार मिल जायेगा जिससे वो शिकायतकर्ता को धमका सकते हैं। हर मामले में वो शिकायतकर्ताओं के खिलाफ कोर्ट केस दायर कर देंगे जिससे कोई भी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पायेगा। एक और दिलचस्प बात यह है कि भ्रष्टाचार साबित होने पर न्यूनतम कैद 6 महीने की है, लेकिन गलत शिकायत करने पर 2 साल की कैद होगी।

  • जाने क्या है लोकपाल बिल


    क्या है लोकपाल बिल
    1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।

    2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पाएगा।

    3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

    4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।

    5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा
    यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।

    6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

    7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी?
    ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।

    8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो?
    लोकपाल/लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।

    9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा?
    सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

    Thursday, August 4, 2011

    नेताओं की साजिश में फंसा लिलजी बांध, प्रदेश में अपनी तरह के नये नियम का प्रस्ताव

    लिलजी बांध जो कभी रीवा राज्य में जल संग्रहण व संरक्षण के लिये तैयार किया गया था लेकिन बाद में यह पता चलने पर कि यहां चूना पत्थर काफी मात्रा में है इसके लिये साजिश का दौर शुरु हो गया। तत्कालीन समय में कांग्रेस विधायक राजेन्द्र सिंह ने इसके लिये कोशिश की और इसे जल संसाधन से राजस्व भूमि में बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ कराई। सरकार बदलने पर मंत्री राजेन्द्र शुक्ला व सांसद गणेश सिंह इसमें शामिल हो गये और इस बांध के लिये एक नायब तहसीलदार के अनुमोदन पर लीज स्वीकृत करा दी। जबकि नियमानुसार एसडीएम या तहसीलदार की अनुमति जरूरी होती है। लेकिन लिलजी पर एक सीमेंट फैक्ट्री की नजर होने के बाद इसमें अमरपाटन के विधायक रामखेलावन ने भी अपनी आपत्ति जता कर इस खेल में कूद गये और लाभार्थी ग्रुप में शामिल कर लिये गये। और अब यही लाभार्थी ग्रुप अपने समर्थक कब्जेदारों को यही जमीन दिलाने प्रदेश में अपने तरह का नया नियम बनाने के लिये प्रस्ताव प्रदेश सरकार को भिजवा दिया। इसके पीछे मंशा है कि बाद में इनसे फैक्ट्री के लिये जमीन ले ली जायेगी। यहां किसी एसबी सीमेंट फैक्ट्री की नजर लगी होने की बात कही जा रही है। 
    लेकिन इस प्रस्ताव को स्वीकार करना सरकार के गले की हड्डी बन जायेगा क्योंकि तब पूरे प्रदेश से ऐसे मामले जमीन लेने के सामने आने लगेंगे तो मेधा पाटकर भी अपनी मांग पर दोबारा जुट सकती हैं। 
    जल संसाधन को वापस देना उचित
    इस मामले का सबसे बढ़िय़ा विकल्प इसे वापस जलसंसाधन विभाग को देकर इस बांध के गेट बंद कराकर जल संग्रहण की बड़ी संरचना का रूप दे दिया जाये। यह सरकार की जल संग्रहण की नीति का भी पक्षधर होगा।