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Monday, August 22, 2011

जनलोकपाल की लोकक्रांति और देश की कूटनीतिक हार

यह लेख मेरे अब तक के जीवन में लिखा गया सबसे कठिनतम लेख है और हो सकता है कि मैं इसमें पूरी तरह से गलत होऊं लेकिन इसकी गंभीरता के मद्देनजर खुले दिमाग से पढ़ा जाये तो हो सकता है कि यह साबित हो सकेगा कि मैं सही हूं।
यहां बात अन्ना हजारे की लोक क्रांति की है जो जनलोकपाल बिल को लेकर है, लेकिन मैं इस क्रांति की सफलता और असफलता से इतर (इसके निहितार्थों) की बात कर रहा हूं जो देश की कूटनीति के लिये बड़े मायने रखती है। ... और यदि मैं सही हूं तो अगस्त की यह लोक क्रांति देश की बड़ी डिप्लोमेटिक पराजय है...

पहले कुछ बिन्दुओं पर ध्यान दें
1. आज की महाशक्ति कौन हैं- अमेरिका
2. ऐसा कौन सा देश है जो विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी में भी टिका रहा- भारत
3. भविष्य में महाशक्ति को चुनौती किससे मिल सकती है- मुस्लिम राष्ट्रों और भारत
4. मुस्लिम राष्ट्रों को शक्तिहीन किसने किया - अमेरिका
5. भारत की सबसे बड़ी ताकत- लोकतंत्र
6. लोकतंत्र की बड़ी ताकत- युवा शक्ति
7. लोकतंत्र का केन्द्र कौन- संसद
8. लोकक्रांति से किसका विश्वास घटा- संसद
9. हमारे स्थापित आइकॉन अर्थात नेताओं से इस आंदोलन ने विश्वास डिगा दिया अर्थात भविष्य में इनकी बातें लोकतंत्र की आदर्श नहीं होंगी।

अब इन सभी बिन्दुओं को एक रूप में पिरोकर अर्थ निकालने की कोशिश कीजिये। यहां अभी भी मैं अन्ना और जनलोकपाल की बात नहीं कर रहा हूं....

अब इससे इतर कुछ घटनाक्रमों को ध्यान दें
1. पिछले कुछ महीने पहले हिलेरी क्लिंटन भारत की कूटनीतिक यात्रा पर आती है और नई दिल्ली की विश्व स्तर पर बढ़ती भूमिका की प्रशंसा करते हुए क्लिंटन ने जोर देकर कहा कि 21वीं सदी का इतिहास भारत और एशिया में लिखा जाएगा। उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले साल भारत का दौरा किया और पिछले दो सालों में मैंने यहां की दो बार यात्रा की है। कोई पूछ सकता है ये यात्राएं क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि 21वीं सदी का ज्यादातर इतिहास एशिया में लिखा जाएगा।"

2. देश की ज्यादातर बड़ी एनजीओ को काम करने के एवज में ज्यादा तर मदद कहां से मिलती है और किन राष्ट्रो से मिलती है- जवाब हम सब जानते हैं कि पश्चिमी राष्ट्रों से और इनमें से ज्यादा तर या तो अमेरिका या अमेरिका समर्थित देशों से। अर्थात एनजीओ को अपनी मदद के लिये इन देशों के रहमो करम पर निर्भर रहना पड़ता है। (इसे दूसरे अर्थों में न लिया जाये, सिवाय कूटनीतिक मसले के) अर्थात पश्चिमी राष्ट्र मदद के नाम पर कुछ लाभ के लिये एनजीओ का उपयोग कर सकते हैं।

3. अब सरकारी लोकपाल बनाम जन लोकपाल पर आते हैं जिसमें एनजीओ भी एक मुद्दा है-
जनलोकपाल के प्रस्ताव- केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव- छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
4. यह आंदोलन खड़ा करने में मुख्य भूमिका- एनजीओ और उनके सदस्य और बाद में कई एनजीओ का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग
5. इस आंदोलन को सबसे ज्यादा प्रभावी बनाने में मुख्य भूमिका मीडिया(इलेक्ट्रानिक) और इसमें भी प्रमुख भूमिका - विदेशी सहायता पर चलने वाले न्यूज चैनल मसलन आईबीएन 7 जो सीएनएन का साझीदार है।

उपरोक्त सभी बिन्दुओं को जोड़कर देखिये फिर सोचिये

- क्या यह आशय नहीं निकलता है कि भारत की सबसे बड़ी ताकत अर्थात लोकतांत्रिक देश के लोकतंत्र की नींव अर्थात संसद की चूले हिली है और कैसे कोई एक आदमी किसी देश की सबसे बड़ी ताकत को आपरेट कर रहा है। (यहां फिर स्पष्ट कर रहा हूं मै अन्ना के विरोध में नहीं हूं न ही जन लोक पाल के विरोध में हूं यहां बात कूटनीतिक नजरिये की हो रही है)

- विश्व में जनसंचार के सबसे बड़े प्रयोग कहां होते हैं- स्पष्ट जवाब है और सभी सहमत होंगे कि अमेरिका में- अब आप सोचिये यह आंदोलन जनसंचार का सबसे सफल प्रयोग नहीं हैं-

अब उपर के सभी तथ्यों को जोड़ कर देखे और कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री द्वारा किये गये इशारे पर गौर करें कि कोई बाहरी ताकत है जो देश को अस्थिर करना चाह रही है।

(देखें वेब दुनिया स्पेशल)कौन है अन्ना के पीछे

- सारा देश जानता है कि कांग्रेस हमेशा रूस के प्रति हिमायती रही है और भाजपा का झुकाव अमेरिका की ओर ज्यादा रहा है।

इधर कांग्रेस शासन में ही रूस से मिल कर ब्रह्मोस, स्टेल्थ विमान जैसे बड़े सामरिक समझौते सफल हुए हैं। जो भविष्य में देश को महाशक्ति की ओर अग्रसर करेंगे। वहीं इस चुनौती से सबसे ज्यादा नुकसान किसका होगा- स्वाभाविक है अमेरिका का।

तो क्या पूरे का निहितार्थ यह नहीं निकलता है कि यह आंदोलन देश के कूटनीतिज्ञों की बड़ी असफलता है और कूटनीति में भारत अमेरिका से हार गया है...................


 'बेयोंड हेडलाइंस' का खुलासा
 'बेयोंड हेडलाइंस' नाम के एक मीडिया संस्‍थान ने अन्‍ना के आंदोलन को अमेरिका से भी जोड़ा है। अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल बिल के समर्थन में चल रहे आंदोलन में कौन पैसे लगा रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए इस मीडिया संस्थान ने सूचना के अधिकार के तहत टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' को मिलने वाले फंड और खर्चे के बारे में जानकारी हासिल की है। इस संस्था को अलग-अलग स्रोतों से फंड मिले हैं। इसमें अमेरिका का फोर्ड फाउंडेशन भी शामिल है। कबीर को फोर्ड फाउंडेशन ने 86,61,742 रुपये का फंड मुहैया कराया है।  इसके अलावा, पीआरआईए (237035 रुपये), मंजुनाथ शनमुगम ट्रस्ट (370000रुपये), डच एंबेसी (19,61,968रुपये), एसोसिएशन फॉर इंडियाज डेवलपमेंट (15,00,000), इंडियाज फ्रेंड्स एसोसिएशन (7,86,500), यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (12,52,742) से सिसोदिया के संगठन को फंड मिले। 2007 से 2010 के बीच व्यक्तिगत तौर पर कबीर को 11,35,857 रुपये की राशि मिली है। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में शामिल एक प्रमुख गैर सरकारी संगठन को ज़्यादातर फंड अमेरिका से मिला है।  कांग्रेस ने अन्ना के आंदोलन को मिलने वाले फंड का मुद्दा उठाते हुए पिछले दिनों कहा था कि अमेरिका इस आंदोलन के पीछे है। इस आरोप पर अमेरिका ने कहा था कि वह इस आंदोलन के पीछे नहीं है। लेकिन वह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शऩ का समर्थऩ करता है। 


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