![]() |
जुगुलकिशोर बागरी |
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी सूत्रों का कहना है कि शिव का राज पांच
![]() |
सुरेन्द्र सिंह चित्रकूट |
![]() |
रामखेलामन पटेल |
इन इलाकों में भाजपा की हालत खराब
दिमनी, अम्बाह, अटेर, मेहगांव, ग्वालियर पूर्व, सेवढ़ा, शिवपुरी, कोलारस, बामोरी, चंदेरी, जतारा, चंदला (अजा), बिजावर, पथरिया, दमोह, पवई, गुन्नौर (अजा), चित्रकूट, रैगांव (अजा), अमरपाटन, देवतालाब, मनगवां (अजा), सिहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़ (अजजा), निवास (अजजा), बैहर (अजजा), लखनादौर (अजजा), अमरवाड़ा (अजजा), सौंसर, परासिया (अजा), बैतूल, घोड़ाडोंगरी (अजजा), नरेला, भोपाल मध्य, नरसिंहगढ़, हाट पिपलिया, खातेगांव, पंधना (अजजा), नेपानगर (अजजा), अलीराजपुर (अजजा), मनावर, धार, इंदौर-5, राऊ, मंदसौर, मल्हारगढ़, जावद, बीना (अजा), सेमरिया, बडऩगर।
शिवराज हैटट्रिक करेंगे या नहीं
इस सवाल का जवाब ढूंढने में लगी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश की 155 से ज्यादा सीटों पर भाजपा की हालत बहुत खराब है। जिन मुद्दों पर भाजपा 2003 में जीती थी, उन्हीं मुद्दों पर अंडरकरंट दिख रहा है। लोकसभा चुनावों के अप्रत्याशित परिणामों का असर भी इन सीटों पर दिखाई दे रहा है। अन्य राज्यों से लगी विधानसभा सीटों पर भी भाजपाविरोधी लहर साफ दिख रही है।
मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव है। लेकिन 2003 में दिग्विजय सिंह को गद्दी से उतारकर भाजपा ने जिन मुद्दों पर सरकार बनाई थी, वह मुद्दे आज उसके खिलाफ जा रहे हैं। इसके बाद भी भाजपा फीलगुड में है। दूसरी ओर कांग्रेस में गुटबाजी हावी है। बावजूद इसके अंडरकरंट कांग्रेस के पक्ष में है। भोपाल से प्रकाशित पाक्षिक ‘बिच्छू डॉट कॉम‘ ने खुफिया एजेंसी के सर्वे का हवाला देकर कहा है कि कि 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा की 155 सीटों पर भाजपा की हालत बेहद खराब है।
सरकार विरोधी अंडरकरंट बहुत तेज है। इसकी झलक प्रदेश 2009 के लोकसभा चुनावों में देख चुका है। सालों से संसद जा रहे भाजपा के धुरंधरों को उनकी परंपरागत सीटों पर ही ध्वस्त होते देखा था। 2013 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार ने एक खुफिया एजेंसी से सर्वे कराया है। इसमें सिर्फ वास्तविक राजनीतिक स्थिति का आकलन करने का काम सौंपा गया था। कई जिलों में 2003 में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ किया था। इनमें अधिकांश विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) वर्ग से थी। अब हालात बदल गए हैं। इन जिलों में कांतिलाल भूरिया के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने (केबी फेक्टर) और विधानसभा में विपक्ष की नेता रहीं जमुनादेवी के सुहानुभूति वोटों का असर दिखाई देगा। उत्तरप्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र की सीमा से लगी सीटों पर दूसरे राज्यों की राजनीति का सीधा असर है।
फीलगुड कहीं शाइन कम न कर दें
2004 के लोकसभा चुनावों में फीलगुड और इंडिया शाइनिंग ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। इसके बाद भी मध्यप्रदेश सरकार इसी फार्मूले पर आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। भाजपा के खिलाफ ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में जबरदस्त अंडरकरंट हैं। मालवा के कई आदिवासी क्षेत्रों में जहां भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए तेजी से सक्रिय है वहां बेरोजगारी के चलते तेजी से पलायन हो रहा है। विंध्य में कुपोषण और भुखमरी के कारण लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश है तो बुंदेलखंड में बेरोजगारी उसकी मुश्किल बढ़ा सकती है। चुनाव से पहले सड़कों को ठीक करने की सरकार की मंशा भी उसके लिए उल्टा-दांव पड़ सकती है। सड़कों की दुर्दशा से भाजपा के शहरी मतदाता भी उससे नाराज हैं। इन मतदाताओं की माने तो वे भी जानते हैं कि चुनाव से पहले सरकार इन सड़कों को ठीक कर एक बार फिर वोटर को ठगने का जतन करेगी। चुनाव के समय किसानों को भरपूर बिजली देने के लिए बिजली की खरीदी भी होगी, इसके बाद फिर पांच साल तक किसान खाद, बीज, पानी और सड़क के लिए तरसेगा। भाजपा के मंत्रियों का बड़बोलापन और प्रदेश में भ्रष्टाचार भी उसके लिए मुसीबत बन सकता है।
कांग्रेस को दूर करनी होगी गुटबाजी
कांग्रेस की हर बैठक में गुटबाजी के कारण झगड़े होते हैं। बड़े नेता कार्यक्रमों और बैठकों से किनारा कर रहे हैं। इससे कांग्रेस में कलह साफ दिख रही है। भोपाल में पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद की मौजूदगी में हुई महत्वपूर्ण बैठक में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नदारद थे। सभी सांसदों और विधायकों ने भी इसमें उपास्थिति दर्ज नहीं कराई। जेल भरो आंदोलन से भी बड़े और दिग्गज नेताओं ने दूरियां बना रखी है। बेटे को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर करने के कारण पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष यादव नाराज चल रहे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय जमुना देवी की गैरमौजूदगी में कांग्रेस के लिए आदिवासी वोट बैंक बरकरार रखने के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ेगी। भूरिया क्षेत्र से निकलकर पहली बार प्रदेश के आदिवासी नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी हाईकमान भी उन्हें आदिवासी नेता के रूप में प्रदेश में स्थापित कराना चाहता है, इसमें कितनी सफलता मिलती है यह अगले चुनाव में ही स्पष्ट होगा।
केबी फेक्टर दिखाएगा असर
झाबुआ, धार, बडवानी, खरगोन, खंडवा जैसे महाराष्ट्र-गुजरात से लगे जिलों में उमा भारती की लहर 2003 में दिखाई दी थी, वैसा असर 2008 के चुनावों में नहीं दिखी। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि कांतिलाल भूरिया के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने का फायदा भी उनकी पार्टी को मिल सकता है। केबी फेक्टर का असर उन जिलों में देखने को मिल सकता है, जहां उनका अश्छा-खासा प्रभाव है। जमुनादेवी को लेकर सुहानुभूति भी इन सीटों पर दिखाई पड़ सकती है। आदिवासी सीटों पर वैसे ही भाजपा को जैसा समर्थन 2003 में मिला था, वैसा अब नहीं दिखाई दे रहा।
ग्वालियर-चंबल संभाग में सब दमदार
ग्वालियर-चंबल संभाग में भी उत्तरप्रदेश का फेक्टर काम करेगा। बसपा वहां जीती तो इन इलाकों के जिलों में भी अपना असर दिखा सकती है। इस क्षेत्र में फूलसिंह बरैया की पार्टी भी अच्छा-खासा जनाधार रखती है। बसपा से निकाले जाने पर भाजपा ने उन्हें अपनाया लेकिन उन्हें वहां पर्याप्त तवज्जो नहीं मिली। इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ दी। रीवा से मुरैना तक 31 सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है।
दिग्गी गुट का कब्जा
प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह गुट का कब्जा है। कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंह समर्थकों के कब्जे के कारण दूसरे गुट के नेता और पदाधिकारी वहां सिर्फ बैठकों में ही बुलाने पर हाजिर होते हैं वे भी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए।
कांग्रेस में कलह
कांग्रेस ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव और जेल भरो आंदोलन के जरिए अपने इरादे जाहिर स्पष्ट कर दिए हैं। लेकिन कांग्रेस की कथित एकता खंडित हो रही है। बड़े नेताओं की अरुचि की वजह से कार्यकर्ताओं में जोश नहीं है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ओर प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की जोड़ी प्रदेश सरकार की नींद उड़ाए हुए है। इस जोड़ी ने पिछले दो महीने में जो सक्रियता दिखाई और सरकार पर जोरदार हमले किए उससे कांग्रेस में नई जान आ गई है।
विंध्य क्षेत्र में बसपा का दबदबा
उत्तरप्रदेश चुनावों का सीधा असर विंध्य क्षेत्र के जिलों रीवा, सतना, सिंगरौली, त्योंथर में दिखाई देगा। यदि बसपा ने उत्तरप्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया तो वह यहां भी पैर पसार सकती है। इस इलाके में अर्जुन सिंह को हराने वाले समानता दल के प्रदेश प्रमुख का भी दबदबा है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे छिंदवाड़ा व आसपास के जिलों में एनसीपी का प्रभाव है। यहां यह पार्टियां भले ही सीटें जीत न पाए, लेकिन बड़ी संख्या में वोट काटने में कामयाब जरूर रहेंगी।
इनकी नहीं हो रही पूछ परख
सुभाष यादव, श्रीनिवास तिवारी, इंद्रजीत पटेल, मुकेश नायक, गुफरान ए आजम, अजीज कुरैशी, सुरेश पचौरी, शोभा ओझा, बालकवि बैरागी, किसन पंत
इन मुद्दों पर है अंडरकरंट
खाद संकट, बिजली, पाला , कुपोषण, सड़क, पानी, घोषणाएं ज्यादा, काम कम