शायद इस देश के लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा रामसेतु का नाम सुनकर आश्चर्य में पड़ जाए कि आखिर राममंदिर के बाद रामसेतु नाम की कौन सी बात है जो पूरे देश में गंभीर बहस का मुद्दा बनती जा रही है. लेकिन शायद उन्हें यह पता न हो कि यह वही सेतु है जिसका लंका पर चढ़ाई के दौरान श्रीराम के निर्देश पर निर्माण किया गया था. अब सवाल यह उठता है इतने लंबे कालखंड के बाद उसका अस्तित्व में होना संभव है भी या नहीं. लेकिन इसकी पुष्टि नासा के अंतरिक्ष अभियान के दौरान यान और उपग्रहों से रामसेतु के खींचे चित्रों से हो जाती है वहीं पुरातत्व वेत्ताओं ने इसकी उम्र 17.50 लाख वर्ष बताई तो फिर लोगों का ध्यान अपने आप भारतीय पौराणिक मान्यताओं की ओर चला जाता है, क्योंकि यही समय श्री राम का भी है. (जिन्हे राम का अस्तित्व ही नहीं मानना है उनकी बात ही अलग है)
पुरातत्व और नामकरण के अनुसार यह वही सेतु है जिसे श्रीराम ने रामेश्वरम और लंका के बीच बनवाया था. कालान्तर मे इसे आदम पुल के नाम से भी जाना जाने लगा.
वस्तुतः आदम पुल नाम का जोर भारत सरकार का है क्योंकि अमेरिकी रणनीतिक दबाव में वह पुल को तोड़ना चाहती है(राजनीतिज्ञों के अनुसार) आदम पुल के पक्षधरों का कहना है कि श्रीलंका में आदम पुल की तरह आदम चोट भी है. वस्तुतः सन् 1806 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर्वे पर जनरल रैनल ने रामसेतु के लिये एडम्स ब्रिज या आदम सेतु नाम का इस्तेमाल किया. रही बात भारत सरकार द्वारा इसे सेतु नहीं मानने की तो खुद भारत सरकार का सर्वेक्षण विभाग भारत को आसेतु- हिमालय बखानता है. अर्थात वह भी इसे सेतु मानता है और भारत को रामसेतु से हिमालय तक मानता है.
ब्रिटिश विद्वान सी.डी मैकमिलन ने मैन्युअल आफ द एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ मद्रास में सन् 1903 में यह बताया था कि सन् 1430 तक भारत और श्रीलंका के लोग उक्त पुल से पैदल आते जाते थे. बाद में तूफानों एवं हिमाच्छादन से समुद्र का जलस्तर बढ़ जाने से उक्त पुल पानी में डूब गया जो अब भी तीन फीट से तीस फीट नीचे पानी में देखा जा सकता है.
जहां तक मान्यता का प्रश्न है कि प्रभु श्रीराम का सेतु पानी में बहने वाला था तो उसकी पुष्टि इसी से होती है कि यहा कोरल और सैंड स्टोन बहुतायत में पाये जाते हैं जो पानी मे तैरते हैं. वहीं डिस्कवरी व नेशनल जियोग्राफिक चैनल के अनुसार यहां 18 से 20 हजार वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में मानव उपस्थिति के भी साक्ष्य हैं.
रही बात सेतु समुद्रम के वैकल्पिक मार्ग की तो इसके पहले भी वैज्ञानिकों ने पांच परियोजनाएं सुझाईं थी जिनमें रामसेतु पर कोई आंच न आती लेकिन सरकार यह छठा सुझाव लेकर रामसेतु तोड़ने की हठधर्मिता कर रही है . एक सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री ने मार्च 2005 मे तूती कोसिन बंदरगाह से १६ प्रश्नों का जवाब मांगा था लेकिन फिर ऐसा क्या हो गया कि जवाब देखने के पहले ही 2 जुलाई 2005 को परियोजना के उद्घाटन करने पहुंच गए. वहीं बताया तो यह भी जा रहा है कि इसके लिये पम्बन और धनुकोष्टि के बीच 15 किमी की मुख्य भूमि में खुदाई कर स्वेज और पनामा की तरह जलमार्ग बनाया जा सकता है वह भी बगैर किसी प्रागैतिहासिक धरोहर को नष्ट किये. यहां सवाल किस सरकार ने योजना बनाई और कौन आगे बढ़ा रही है का नहीं है बल्कि ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का है. चाहे यह धरोहर प्रकृति निर्मित हो या फिर मानव निर्मित.