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Wednesday, March 15, 2017

यूपी में 'मुस्लिम बहुल' देवबंद में भाजपा की जीत का सच!



देवबंद में मुसलमानों ने नहीं जिताया भाजपा को, कहानी कुछ और है!


नया शगूफा बाजार में है. उत्तर प्रदेश चुनावों में देवबंद की सीट पर भाजपा की जीत पर बवाल कट रहा है.
कुछ लोग कह रहे हैं कि 80 परसेंट मुस्लिम आबादी वाली सीट से भाजपा जीती तो जीती कैसे! लिहाज़ा गड़बड़ी हुई है. जांच करवाई जाए. वहीं भाजपा समर्थक कह रहे हैं कि यहां से जीतना मुस्लिम तबके में भाजपा की स्वीकार्यता का सबूत है. जब भाजपा पर हिंदू वोटों के सहारे तर जाने का आरोप लगता है, वहीं भाजपा समर्थक देवबंद विजय का काउंटर अटैक शुरू कर देते हैं.

दोनों ही तरफ के लोग तथ्यों के फ्रंट पर गलत हैं. सबसे पहले तो बेसिक फैक्ट ही दुरुस्त करवाए देते हैं कि देवबंद विधानसभा में 80 परसेंट मुस्लिम वोटर्स है ही नहीं. ताजा जनगणना के मुताबिक, लगभग 34 परसेंट मुस्लिम वोटर्स हैं यहां. यानी कि जो दावा किया जा रहा है उसके आधे से भी कम. यानी ये दोनों ही बातें हवा-हवाई लगती हैं कि मुसलमानों ने भाजपा को जिताया या ईवीएम में फ्रॉड हुआ.

देवबंद में कुल मतदाता हैं 3,26,940. इनमें से लगभग 1,10,000 मुस्लिम वोटर्स है. 70,000 के करीब दलित वोटर्स हैं और बाकी ठाकुर, ब्राह्मण, त्यागी, गुर्जर वगैरह. इन 1,10,000 वोटर्स पर ही बवाल है. देवबंद में करीब 71 फीसदी मतदान हुआ था. इसी औसत से अज्यूम किया जाए तो 1,10,000 में से मोटा-मोटी 80,000 मुसलमानों ने वोट किया होगा. कहा जा रहा है कि इन्होंने वोट दिया भाजपा को तभी उसकी जीत मुमकिन हुई. जबकि आंकड़े कुछ और ही कहते हैं.
बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने यहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. क्रमशः माजिद अली और माविया अली. इन दोनों को मिले वोट्स पर अगर एक नज़र भी दौड़ा लें तो माजरा समझ में आ जाता है. माजिद अली को 72,844 वोट मिले हैं और माविया अली को 55,385. दोनों का जोड़ बैठता है 1,28,229. जीतने वाले भाजपा कैंडिडेट को मिले हैं 1,02,244 वोट्स. ये थ्योरी इस वोट काउंट से ही ढेर हो जाती है. अगर एक ही मुस्लिम कैंडिडेट होता तो यूं वोट बंटता नहीं और शायद उसी की जीत भी हो जाती. ‘शायद’ के साथ ये बात लिखी, क्योंकि ऐसा हो ही ये ज़रूरी नहीं.

अगर पिछले चौबीस साल में हुए पांच विधानसभा चुनावों पर नज़र डालें तो ये साफ़ हो जाता है कि यहां भाजपा हमेशा अच्छा प्रदर्शन करती रही है. मुस्लिम गढ़ कहे जाने वाले देवबंद ने बरसों से मुस्लिम विधायक का चेहरा नहीं देखा है. ज़रा नीचे की सूची पर नज़र भर मार लीजिए, मामला स्पष्ट हो जाएगा.

साल               विजेता                               उपविजेता

2012        राजेंद्र सिंह राणा (सपा)             मनोज चौधरी (बसपा)
2007       मनोज चौधरी (बसपा)                शशि बाला पुंडीर (भाजपा)
2002       राजेंद्र सिंह राणा (बसपा)          रामपाल सिंह पुंडीर (भाजपा)
1996        सुखबीर सिंह पुंडीर (भाजपा)       राजेंद्र सिंह राणा (बसपा)
1993        शशि बाला पुंडीर (भाजपा)           मुर्तज़ा (बसपा)


इसे देखकर दो बातें साफ़ हो जाती हैं. एक तो ये कि इस पूरी सूची में कोई मुस्लिम नाम नहीं है. सिर्फ पिछले साल जब उपचुनाव हुए थे तब कांग्रेस से माविया अली जीत गई थी जिनका कार्यकाल सिर्फ साल भर रहा. दूसरा ये कि भाजपा की ज़मीन यहां हमेशा से रही है. 2012 को छोड़ दिया जाए तो हर बार भाजपा कम्पटीशन में रही है. पांच में से दो बार जीती है और दो बार उपविजेता रही है. सिर्फ 2012 में यहां सपा का कैंडिडेट जीता है. उस साल सपा की लहर थी और मुस्लिम कैंडिडेट उनका भी नहीं था.
कहने की बात ये कि भाजपा की देवबंद जीत में अप्रत्याशित जैसा कुछ नहीं है. इस सीट पर जो हुआ वो कमोबेश वही है जो सारे उत्तर प्रदेश में हुआ.

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मुस्लिम इलाकों में जीत


अब आते है कुल  मुस्लिम बहुल ईलाके मे जीत पर
यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 चौथाई से भी ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी की जीत में सबसे बड़ी बात ये रही कि पार्टी ने उन जिलों में भी जीत दर्ज की, जहां 60 फीसदी मुस्लिम आबादी है। 11 जिलों में 40%, 5 जिलों में 30% और 10 जिलों में 20% मुस्लिम आबादी है। पश्चिमी यूपी के 11 जिलों में 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं, फिर भी वहां बीजेपी आगे रही। पाॅलिटिकल एक्सपर्ट योगेश श्रीवास्तव का कहना है- बीजेपी को इतने बड़े स्तर पर जिताने में मुस्लिमों का वोट काफी अहम रहा।


ट्रिपल तलाक मुद्दे पर पार्टी मुस्लिम महिलाओं के मन में जगह बनाने में कामयाब हुई। पार्टी ने खुलेआम मुस्लिम महिलओं के दर्द को समझाकर अपना स्टैंड क्लीयर रखा। इसका फायदा भी मिला। बीजेपी को हमेशा से शियाओं का वोट मिलता रहा है। इस बार पूरी तरह से एकजुट होकर पार्टी को वोट देने वालों में मुस्लिम महिलाओं की संख्या ज्यादा रही।

मुस्ल‍िम कैंड‍िडेट न उतारना
- मुस्ल‍िम का बीजेपी के साथ आने के पीछे सबसे बड़ा कारण किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं देना। सभी पार्टियों ने अपने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे, तो मुस्लिम बहुल इलाकों के 25 से 40 फीसदी हिंदूओं ने एकजुट होकर बीजेपी को वोट किया। जैसे किसी सीट पर अगर 40 फीसदी भी मुस्लिम हैं, तो वहां सारी पार्टियों ने मुस्लिमों को उतारा है, लेकिन बीजेपी ने हिंदू को ही प्रत्याशी बनाया और हिंदू वोटर यूनाइट हो गया। गोंडा में 32 फीसदी मुस्लिम। कुल 7 सीट, सातों पर बीजेपी जीती। आजमगढ़ में 38 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 10, बीजेपी ने एक सीट जीती। अंबेडकर नगर में 20 फीसदी मुस्लिम। कुल 5 सीट, 2 पर जीती बीजेपी। फैजाबाद में 30 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 5, पांचों पर बीजेपी जीती। मऊ में 43 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 4, बीजेपी ने 3 सीट जीती। बलरामपुर में 40 फीसदी मुस्लिम। कुल 4 सीट, चारों पर बीजेपी। गाजीपुर में 30 फीसदी मुस्लिम। कुल 7 सीट, बीजेपी ने 5 पर दर्ज की जीत। बहराइच में 20 फीसदी मुस्लिम। कुल 7 सीट, 6 सीटों पर बीजेपी जीती।
कामयाब नहीं रहा विपक्ष
इन  सीटो पर भी हिंदू को जीत मिलना बड़ी बात है। लेकिन उसका कारण भी कहीं न कहीं विपक्ष ने ही दिया है। विपक्ष इस बार मुस्लिमों में नरेंद्र मोदी का डर बनाने में कामयाब नहीं हो पाया। इससे पढ़े-लिखे कुछ फीसदी मुस्लिम वोटरों में नरेंद्र मोदी के प्रति काम और विकास को लेकर अच्छी छवि बनीं रही और यूथ का वोट उन्हें मिला। एक कारण 2014 में सरकार बनने के बाद से नरेंद्र मोदी की किसी योजना में या पाॅलिसी में कुछ भी मुस्लिम विरोधी नहीं रहा। इससे मोदी को लेकर मुस्लिमों के अंदर का डर कम हो गया, फिर नोटबंदी करना अच्छा फैसला रहा।
पूर्वी यूपी का गणित
गोरखपुर में 22 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 9, सभी पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। इलाहाबाद में 28 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 12, बीजेपी ने 8 पर जीत दर्ज की। जौनपुर में 22 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 9, बीजेपी ने 5 सीट जीतीं। औरैया में 28 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 3, तीनों पर बीजेपी। लखनऊ में 20 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 9, बीजेपी 8 पर जीती। सीतापुर में 20 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 9, बीजेपी 8 पर जीती।
क्या है पश्च‍िमी यूपी में मुस्ल‍िम वोट परसेंट
बिजनौर में 67 फीसदी मुस्लिम हैं। कुल सीट 8, बीजेपी 6 पर जीती। गौतमबुद्धनगर में 65 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 3, तीनों पर बीजेपी जीती। अलीगढ़ में 42 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 7, सातों पर बीजेपी जीती। मुजफ्फरनगर में 49 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 6, पूरी बीजेपी ने जीती। प्रबुद्वनगर (शामली) में 42 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 7, बीजेपी को 4 पर मिली जीत। बरेली में 47 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 9, पूरी बीजेपी ने जीती। सहारनपुर में 42 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 7, BJP 4 पर जीती। ज्योतिबाफुले नगर (अमरोहा) में 40 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 3, बीजेपी को 2 पर मिली जीत। मेरठ में 37 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 7, जिसमें 6 पर जीती बीजेपी। मथुरा में 14 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 5, जिसमें 4 पर जीती बीजेपी। गाजियाबाद में 21 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 5, सभी बीजेपी ने जीती। आगरा में 20 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 5, पांचों पर बीजेपी। बागपत में 20 फीसदी मुस्लिम। कुल सीट 3, बीजेपी को 1 पर मिली जीत।
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बीजेपी का प्लान
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों (UP Assembly Elections) में प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए सभी अनुमानों को गलत साबित कर दिया. यूपी जैसे बड़े प्रदेश में बीजेपी की जीत के बड़े मायने हैं और इसका असर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगा. विरोधी पार्टियों को समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर कमी कहां रह गई. खासतौर से समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस तो गठबंधन के बाद से जैसे जीत के प्रति आश्वस्त थे, लेकिन यह भी उनके काम नहीं आया और उनको अब तक की करारी हार झेलनी पड़ी. वैसे तो बीजेपी की जीत में कई अहम कारक हैं और विरोधियों के बीच अनिश्चितता के माहौल ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई, लेकिन उसका जनता के बीच पहुंचाया गया एक संदेश ऐसा कारक साबित हुआ कि यूपी की जनता ने कांग्रेस, सपा और बीएसपी से दूरी बना ली और उन्होंने बीजेपी के पास जाने में ही भलाई समझी...
साबित किया कि अखिलेश को है केवल 2 की ही चिंता...
विरोधी दलों में जारी उठापटक के बीच बीजेपी (BJP) एक ऐसे बड़े संदेश को जनता के बीच स्थापित करने में सफल रही, जिसने गेमचेंजर की भूमिका निभाई. उसके कार्यकर्ताओं ने गुप्त तरीके से इसे लक्षित वर्ग तक पहुंचाना जारी रखा. हालांकि पीएम मोदी ने इशारों-इशारों में प्रचार के अंतिम दौर में इसका जिक्र किया था. यह संदेश था कि सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को केवल दो की ही चिंता है- यादव और मुसलमान! इतना ही नहीं उसने इसके लपेटे में कांग्रेस और बसपा को भी ले लिया.
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में बेरोजगारी की बड़ी समस्या है और अखिलेश यादव के शासनकाल में नौकरियों में यादवों का बोलबाला देखा गया. ज्यादातर विभागों में इसी जाति के लोगों को नियुक्ति दी गई और अन्य वर्ग इससे वंचित रह गए. भले ही वह पिछड़े थे. UPPSC की परीक्षा में यादव जाति के प्रतिभागियों को मिली बड़ी सफलता ने इस तथ्य को और स्थापित कर दिया. बाद में इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई और UPPSC चेयरमैन डॉ. अनिल यादव के कामकाज के तौर तरीकों पर भी आरोप लगे. बाद में कोर्ट ने बोर्ड के चेयरमैन को ही हटा दिया. इससे जनता के बीच यह संदेश गया कि सपा के सत्ता में आने से अन्य वर्गों का कल्याण नहीं होगा और बीजेपी ने इसे ही भुना लिया.
तुष्टीकरण को भी उठाया...
सपा सरकार पर मुसलमानों पर भी अधिक ध्यान देने का आरोप लगा, जिससे एक हद तक हिंदू भी एकजुट होकर बीजेपी की ओर चले गए. कांग्रेस से गठबंधन होने के बाद भी उन्हें इसका फायदा नहीं मिला, क्योंकि कांग्रेस पर तो पहले से ही मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप थे. विकास के नाम पर 'काम बोलता है' का नारा भी फेल रहा, क्योंकि कई लोगों का मानना है कि लखनऊ को छोड़कर कहीं भी विकास कार्य ज्यादा नहीं हुए. खुद उनके विज्ञापन भी लखनऊ केंद्रित रहे.
दूसरी ओर बसपा सरकार के दौरान मायावती पर जाटवों को ही वरीयता देने का आरोप लग चुका था. मतलब जनता के बीच यह संदेश गया कि मायावती वापस सत्ता में आने पर फिर वही करेंगी. फिर क्या था बीजेपी के चुनाव प्रबंधकों और प्रचारकों ने जनता के बीच इस तथ्य को स्थापित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी ही एक ऐसा दल है जो सबके बारे में सोच रहा है और उसी को वोट देने से सबका कल्याण होगा.
इससे अखिलेश यादव और राहुल गांधी को जनता के बीच युवाओं के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने का कांग्रेस और सपा का प्रयास पूरी तरह फेल हो गया... BJP ने उत्तरप्रदेश की जनता के बीच पैठ बनाने के लिए न केवल अपने संगठन को मजबूत बनाया, बल्कि उसने बिहार वाली गलती नहीं दोहराई और चुनाव को विकास जैसे मुद्दे से नहीं भटकने दिया. कुछ विवाद भी हुए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उसके स्टार प्रचारकों ने इनके साथ ही जनता का ध्यान विकास की ओर केंद्रित रखा और ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली…

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