
भारत को अंग्रेजों ने भले ही सन् १९४७ में आजाद कर दिया हो लेकिन आज भी वे भारत व भारत वासियों को गुलामी की मानसिकता से ही देखते हैं. यही कारण है कि वे हमारे विकास को पचा नहीं पाते चाहे वह विकास आर्थिक , सामाजिक , वैज्ञानिक ,सांस्कृतिक या फिर धार्मिक हो.
इस बार इनका भय हमारी प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धि योग से है. हमारे ऋषि मुनियों ने मानव शरीर को स्वस्थ व स्फूर्ति से भरा बनाए रखने के लिये शरीर के लिये कुछ व्यायाम के तरीके खोजे . जिसके लाभदायी परिणाम का नतीजा है कि यह भारतीय योग आज पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहा है. पूरा विश्व इसकी पनाह में आ रहा है. इस बढ़ती प्रसिद्धि से मिशनरी को अपने धर्म पर खतरा मंडराता दिखाई देने लगा है. या फिर वे आज भी भारत के सांस्कृतिक तौर पर अपना गुलाम मानते हैं.
विगत दिवस इंग्लैंड के बैपटिस्ट चर्च और सेट जेम्स चर्च के पादरियों द्वारा चर्च में चल रहे योग अभ्यास केन्द्रों पर रोक लगाते हुए स्कूलों में भी योग सिखाने पर पाबंदी लगाने की घटना उनकी ओछी और कमजोर मानसिकता को ही दर्शाती है. यह कहना कि ईसाइयत के अनुसार योग का दर्शनशास्त्र झूठा है तथा योग गैर - धार्मिक कृत्य है यह ईसाईत की कौन सी सोच और परिभाषा है ... यह मेरे समझ के परे है. शायद ईसाईत इतनी कमजोर है कि उसे योग से अपनी चूले हिलती नजर आ रही हैं तो फिर इस धर्म के बारे में कुछ कहना बेमानी है. बहरहाल मेरे नजरिये से योग सिर्फ एक शारीरिक व्यायाम का कौशल है जो शरीर को निरोगी रखता है.
वहीं ईसाईत की बात करे तो उनके हिन्दुस्तान में जो कृत्य है वे वास्तव में उचित नहीं कहे जा सकते हैं. कई ऐसे मामले है जो सीधे धर्मान्तरण से जुड़े हैं. फिर भी योग पर प्रतिबंध यह बताता है कि क्रूसेड के धर्मयोद्धा कितने कमजोर हैं .