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Tuesday, September 4, 2007

हीरा खदानों में अस्मत लुटाने को मजबूर अबला

चारों ओर हल्ला है कि महिलाओं की तस्वीर बदल रही है. लेकिन मेरे नजरिये से ऐसा कहने वाले तस्वीर का सिर्फ एक ही पहलू देख रहे हैं. यह सही है महिलाएं आज हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं कई मामलों में पुरुषों को भी पीछे छोड़ रही हैं लेकिन ग्रामीण भारत की स्थिति आज भी जस की तस है. यह अलग बात है कि कुछ एक महिलाएं अपवाद स्वरूप आगे आ रही हैं लेकिन संपूर्ण स्थितियों का यदि आकलन किया जाए तो आज भी हम उन्हीं पुरातन मान्यताओं के दायरे में उन्हें कैद पाते हैं. आज भी गांवों में महिलाएं शोषण और उत्पीड़न का शिकार हैं.
और तो और कई जगह तो महिलाओं की यह स्थिति है कि उन्हें उस व्यवस्था से गुजरना पड़ता है जिन्हें आज का समाज और कानून कहीं से मान्यता नहीं देता है.
भारत की सबसे प्रसिद्ध पन्ना की हीरा खदानों में महिला उत्पीड़न का नजारा सामान्यतौर पर देखने को मिल सकता है कुछ यही हालात चित्रकूट के तराई अंचल में चलने वाली खदानों के भी हैं. यहां की उथली हीरा खदानों में हजारों की संख्या में महिलाएं काम करती है. इन हीरा खदानों में शुरुआती चरण में जब खुदाई होती है और कठोर पत्थर निकलता है तब तक तो हालात सामान्य रहते हैं लेकिन जैसे ही खदान में भुरभुरा पर मिलता है तो महिलाओं की इज्जत का काला अध्याय यहां के स्थानीय ठेकेदार लिखना शुरू कर देते हैं. दरअसल भुरभुरी मिट्टी को छानने धोने की प्रक्रिया की जाती है क्योंकि इसी में हीरा मिलने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है. रोज शाम को जब मजदूर काम करके वापस जाने लगते हैं तो शुरू होता है इनकी तलाशी का दौर . इस दौरान बाकायदे सबको निर्वस्त्र करके तलाशी ली जाती है. चाहे वह पुरुष हो या महिला . और तलाशी लेने वाले ठेकेदार के आदमी होते हैं. महिला की तलाशी भी वही लेते है. अब कल्पना कीजीए कि इस दौरान महिला को किस स्थिति का सामना करना पड़ता होगा. कई बार तो तलाशी हैवानियत की हद तक पहुंच जाती है और तलाशी के नाम पर गुप्तांगों को भी नहीं बख्शा जाता. लेकिन अब यहां काम करने वाली महिलाएं इन सबकी आदी हो गई है. यहां शासन की रोजगार दिलाने की तमाम योजनाएं चलने के बाद भी वे इन तक नहीं पहुंच पा रही है और महिलाओं को इस प्रथा से मुक्ति नहीं मिल पा रही है. यहां काम करने वाला तबका ज्यादा तर वनवासी व आदिवासी है. जिसे शासन व उसकी योजनाओं का कोई ज्ञान नहीं है. कुछ यही हाल चित्रकूट के तराई क्षेत्र का है. यहां हर दिन महिलाओं की अस्मत से खेला जाता है. यहां काम करने वाली महिलाएं ज्यादातर ठेकेदार और उनके गुर्गों की हवस पूर्ति का साधन बन चुकी है. दरअसल यह क्षेत्र दस्यु प्रभावित है. यहां काम करने से सरकारी अमला डरता है और यदाकदा कोई सूचना मिलती भी है तो उसके निराकरण के लिये जाने से कतराता है. इसलिये यहां दैहिक शोषण जीवनशैली बन चुका है. और महिलाएं भी इसे अपने व्यवहार में शामिल कर चुकी हैं. हालात यहां इतने बदतर हैं कि इनके बच्चे बाहर खेल रहे होते हैं और अंदर झोपड़े में कोई इनकी अस्मत से खेल रहा होता है.
... अब इन परिस्थितियों को देख कर कौन कहेगा कि आज महिलाओं की तस्वीर बदल रही है. हां यह जरूर है तस्वीर का एक पहलू बदल रहा है .

6 comments:

Anonymous said...

agar aap es post ka shirshak badal dae toh lekh aur achha ban sakta hae
lekh mae saar hae per shirshak ne usae sarak chapp bana diya hae
aurto ko badlane kae liyae mardo ka nazria badlana bahut jariuri hae

अनूप शुक्ल said...

दुखद,भयावह हालात हैं !

Ramashankar said...

जी आपने सही कहा. शीर्षक बदल दिया गया है.

Shastri JC Philip said...

रमाशंकर भईया,

ये जो प्रचार हो रहा है कि स्त्रियों की हालत सुधर रही है, यह बकवास है. यह प्रचार आता है उन जनानियों द्वारा चलाई जा रही संस्थाओं से जिन जनानियों आसपास दो दर्जन नौकर घूमते है, जिनको कभी जमीन पर पांव नहीं रखना पडता बल्कि यह सोचना पडता है कि आज किस कार में सफर करें, जिनको अपने हाथ से खाना बनाना या कपडे धोना नहीं पडता है. ऐसे लोग यदि कहें कि "स्त्रियों की स्थिति बदल रही है" तो वे जिस दुनियां मे विचरती हैं वहां यह एक सत्य.

बाकी लोगों की स्थिति आपने लिख ही दी है "हालात यहां इतने बदतर हैं कि इनके बच्चे बाहर खेल रहे होते हैं और अंदर झोपड़े में कोई इनकी अस्मत से खेल रहा होता है."

यह स्थिति तब बदलेगी जब "असली" स्त्रियां (न कि महलों मे जी रही जनानियां) स्त्रीमुक्ति के लिये आंदोलन छेडेंगी -- शास्त्री जे सी फिलिप

आज का विचार: जिस देश में नायको के लिये उपयुक्त आदर खलनायकों को दिया जाता है,
अंत में उस देश का राज एवं नियंत्रण भी खलनायक ही करेंगे !!

Anonymous said...

@rama
shirshk badnae kae liyae dhynavad
prerak likhae , sab khud parehgae
post bahut achchi hae

सुनीता शानू said...

बहुत सही बात लिखी है मै शास्त्री जी बात से सहमत हूँ गरीब औरत नही बदल पाई है उसकी गरीबी उसे बदलने नही देगी...

शानू