क्या

आपने कभी सोचा है कि अस्पताल, स्कूल या अन्य सरकारी संस्थाएं जहां सरकार कई चरणों की भर्ती प्रक्रिया के बाद बेहतरीन अभ्यर्थियों की भर्ती करती है फिर भी उनसे अपेक्षित सफलता क्यों नहीं मिल पाती है? स्कूल का मामला लें उन शिक्षकों की भर्ती होती है जिनकी योग्यता सर्वश्रेष्ठ होती है, वे प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बेहतरीन अंक लाते हैं , उनका साक्षात्कार भी बेहतर होता है , भर्ती उपरांत इन्हें अच्छा खासा वेतन भी मिलता है लेकिन जब ये शिक्षक बन कर सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं तो उन स्कूलों का परिणाम काफी कमजोर होता है. ठीक इसके दूसरी ओर निजी स्कूलों में कम तनख्वाह में अपेक्षाकृत कम योग्यता वाले शिक्षक शैक्षणिक दायित्व निभाते हैं इन्हें कम वेतन भी मिलता है लेकिन इन्हीं स्कूलों का परिणाम शानदार होता है. दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में बेहतरीन चिकित्सक रखे जाते हैं इन्हें भी अच्छे वेतन के साथ अच्छी खासी सरकारी सुविधाएं व अन्य फंड मिलते हैं लेकिन … इसके विपरीत निजी अस्पतालों में वे चिकित्सक जो सरकारी चयन में असफल रह जाते हैं उनको रखा जाता है लेकिन ज्यादातर मरीज सरकारी अस्पताल से यहां रेफर किये जाते हैं या फिर सरकारी की अपेक्षा निजी अस्पतालों में जाना पसंद करते हैं आखिर ऐसा क्यों … क्या यह माना जाए कि अब सर्वश्रेष्ठ असफल हो रहे हैं या सर्वश्रेष्ठता के मायने बदल गए हैं. जिस दिन इस पर विचार कर इस आधार पर योजनाएं तैयार होंगी तब शायद स्वास्थ्य व शिक्षा के बेहतर परिणाम मिलने लगेंगे.
वहीं इसका दूसरा पहलू और देखें - हम और आप सरकारी अस्पतालों में जाते हैं जहां पाते हैं गंदगी करने में कोई संकोच नहीं करते लेकिन निजी अस्पतालों में जाते ही तमाम निर्देशों का पालन करने लगते हैं. कचरा डस्टबीन में ही फेंकते हैं थूकने के लिए बाहर जाते हैं आदि… तो क्या हम सरकारी व्यवस्थाओं के सहयोगी नहीं हैं… इसमें भी व्यापक सुधार की आवश्यकता हैं वरना हम कह सकते हैं की निजीकरण ही ज्यादा बेहतर विकल्प है सफलता के लिये …
No comments:
Post a Comment