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Thursday, September 29, 2011

सिद्धपीठ मैहर देवी शारदा शक्तिपीठ | Siddha Peeth Maihar Devi (Maa Sharda Shakti Peeth)


Siddha Peeth Maihar
उतर-प्रदेश में जितना महत्व मां विध्यावसिनी का है. उतना ही मध्य प्रदेश में मां मैहर देवी का है. आधाशक्ति मां दुर्गा के विभिन्न रुपों में मां शारदा भी है. बोलचाल की भाषा में इन्हें मइहर देवी के नाम से जाना जाता है. जबकि मइहर या मैहर उस स्थान का नाम है. जहां मां शारदा का धाम है. विद्वज्जन कहते है कि यहां सती के दाहिने स्तन का पतन हुआ था. यहां की शक्ति शिवानी और भैरव  को यहां चण्ड कहा जाता है. कुछ विद्वान कहते है, इ सती के दाहिने स्तन का निपात रामगिरि में हुआ था. रामगिरि स्थान चित्रकूट में है. 
मध्यप्रदेश के सतना से 38 किलोमीटर दूर मैहर है. जो एक छोटा सा कस्बा है, किन्तु मां की ख्याती ने इसे पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया है. मां शारदा का धाम मैहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित है. 

पर्वतमालाओं की गोलाकार पहाडी के मध्य 587 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां शारदा का एतिहासिक मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक है. यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृ्सिंह के नाम पर नरसिंह पीठ के नाम से भी जाना जाता है. यहां की शक्तिपीठ में लगभग 1500 वर्ष पुरानी नरसिंह की प्रतिमा आज भी विराजती है. 

मां का यह मंदिर कितना पुराना है, इसका कोई सही प्रमाण उपलब्ध नहीं है. परन्तु इस मंदिर में प्रतिमा की स्थापना 502 में नुपुलदेव के करायी थी. ऎसा उल्लेख मंदिर में 10वीं शताब्दी के दो शिलालेखों में है, तो मंदिर के निर्माण की गाथा के आधार स्तंभ है. प्रवेश द्वार से मंदिर तक पहुंचने के लिये छोटी-छोटी लगभग 1000 सीढियां चढनी पडती है. जिनपर टीन के शैड लगे हे. ताकि यात्रियों को धूप-बारिश न लगें. पहाड को गोलाई में काट कर सडक भी बनाई गयी है. जो मंदिर के ठीक नीचे तक जाती है, फिर इसके बाद लगभग 200 सीढियां चढनी होती है. अशक्तों व वृ्द्धों को पहुंचाने के लिये डोली की भी व्यवस्था हे. 
किवदंती के अनुसार राजा परमाल तथा पृ्थ्वीराज चौहान के युद्ध में राजा परमाल की पराजय से क्रुद्ध होकर आल्हा ने पृ्थ्वीराज की सेना समूल नष्ट करने हेतू तलवार खींच ली थी. पर उसकी आराध्या शारदा ने उसका हाथ पकड लिया. जंगल में आल्हा तथा ऊदल अखाडा है. यहां एक ताल भी है. ताल का पानी कभी नहीं घटता है. किवंदती है कि आज भी प्रतिदिन आल्हा मां शारदा को पुष्पांजलि देने आते है.  
यह भी कहा जाता है कि आल्हा-ऊदल तथा धानू आदि भक्तों ने युद्ध में विजय की कामना से इस पहाडी पर शारदा देवी की प्रतिमा स्थापित की तथा देवी को प्रसन्न करने एक लिये आल्हा ने अपने पुत्र इन्दल की बलि  भी दी थी. तथा आज भी आल्हा -ऊदल मंदिर बन्द होने के बाद मंदिर में माता का दर्शन करने के लिये आते है. 
प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रों में देश के कोने-कोने से भक्त यहां आते है.

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