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Friday, July 6, 2007

और ये चैनल के (नंगे) रिपोर्टर

आप अपराधी हैं क्योंकि आप अपना परिवार पालने के लिये अपना स्वयं का व्यवसाय करते हैं और व्यवसाय करने के एवज में चैनल के रिपोर्टरों को पैसा नहीं देते. जी हां यह बिल्कुल सच है सतना शहर में. विगत दिवस पत्रकारों ने छापामार कार्रवाई की तर्ज पर खुद अन्वेषक बन कर जो नंगा नाच (मैं यही कहूंगा) किया वह पत्रकारिता व उन सभी चैनलों व अखबारों के लिये शर्मनाक है जिसके रिपोर्टर वहां शामिल थे.
इस घटना की शुरुआत एक सप्ताह पूर्व से हो गई थी. किसी व्यक्ति ने जी चैनल के नाम से एक चिकित्सक से कुछ रुपये डरा धमका कर ले आए. वजह यह बताई गई कि तुम दूसरे जिले से आकर यहां इलाज कर रहे हो जो कि गलत है. मीडिया की धौंस और वह साधारण सा बीएएमएस चिकित्सक. मारे भय के उसने कुछ रकम उसे दे दी. फिर यह बात सतना के ND टीवी व सहारा के रिपोर्टरों को पता चली. फिर क्या था पहुंच गए अपनी सेटिंग करने. बात बनी नहीं और दूसरे दिन के टाल दी गई . फिर बूधवार को एक बार फिर अंतिम प्रयास सेटिंग का किया गया. लेकिन चिकित्सक ने फिर पैसे देने से इन्कार कर दिया. तब जागरुक चैनल एनडीटीवी व सहारा के जागरुक पत्रकारों ने यहां के सभी चैनलों के संवाददाताओं व अखबारनवीसों को न्यौता देकर डॉक्टर के क्लीनिक में बुला लिया. फिर वहां पत्रकारों की फौज (संख्या व तरीके के अनुसार) पहुंची. फिर चिकित्सक पर प्रश्नों की बौछारें या कहें गाली गलौज का वह तांडव हुआ कि पत्रकारिता तार तार हुई. रिपोर्टर खुद पार्टी बन गए. खुद ही गाली गलौज व मारपीट की स्थितियों तक पहुंच गए. पैसे न पाने की नाराजगी का आतंक इस कदर रहा कि चिकित्सक घबराहट में अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहा था. या कहें स्पष्ट करने नहीं दिया जा रहा था. फिर पुलिस व प्रशासन के अमले को भी न्योता दिया गया. इसी दौरान चिकित्सक द्वारा क्लीनिक में रखी महंगी दवाओं को इन पत्रकारों ने चोरी से अपने कपड़ों के अंदर व जेबों में भी डाला(यह पराकाष्ठा थी). फिर सभी ने संतुष्टि के भाव से विदा ली और कहा आज शानदार स्टोरी बन गई.
सवाल यह उठता है कि यदि वह चिकित्सक गलत था तो नियमन कार्रवाई करवाई जा सकती थी या अपने पत्रकारिता के तरीकों से स्टोरी बनाई जा सकती थी. दूसरी ओर शहर में कई फर्जी चिकित्सक हैं उनपर नजर क्यों नहीं जाती ....
इसके अलाबा भी इस स्टोरी के बाद कई सवाल उठ रहे है जिनका जवाब शायद मैं नहीं दे पा रहा हूं. हां यह जरूर पता चला है कि दूसरे दिन पुलिस को उक्त चिकित्सक ने अपने प्रमाण-पत्र जरूर दिखाएं हैं .

7 comments:

Anonymous said...

दुसरों का परदाफास करते पत्रकारों का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया.

जब हर साख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा.

चंद्रभूषण said...

डूब मरने वाली बात है। लोगों को इन ब्लैकमेलरों को दौड़ा-दौड़ाकर मारना चाहिए और चैनल वालों को यह दृश्य टेलीकास्ट करने के लिए मजबूर करना चाहिए।

Sanjeet Tripathi said...

अधिकतर जगहों पर चैनलों के स्ट्रींगर्स के साथ और कई जगहों पर तो स्टाफ़र्स के साथयही दिक्कत है, सुबह हुई नही कि वसूली का जुगाड़ शुरु!!

Unknown said...

एकदम सही... आजकल पत्रकार और वकील इन जमातों में असामाजिक तत्व काफ़ी घुस आये हैं, इनका एक ही काम होता है "कैसे भी लूटो", इन दोनों के कारण पुलिस भी परेशान है, इसीलिये जब तब मौका मिलने पर पुलिस वकीलो की पूजा कर देती है, रिपोर्टरों की पूजा का काम जनता को अब अपने हाथ में लेना पडेगा... तभी ये भंभोड़ने वाले कुत्ते सुधरेंगे...

Udan Tashtari said...

शर्मनाक!!!

Sanjay Tiwari said...

वैसे इस तरह की पत्रकारिता का दूसरा पहलू यह है कि स्ट्रिंगर को तनख्वाह नहीं मिलती, फिर रोजी रोटी कैसे चले. एनडीनटीवी और सहारा वाले भी यह सब करते हैं स्टोरी में यह नया एंगल है.

आलोक said...

छोटे छोटे परिच्छेदों में अपना लेख विभाजित कर लें तो पढ़ने में थोड़ी आसानी हो।