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Friday, July 20, 2007

और वह ईसाई हो गया

उसके पास इतना भी नहीं था कि वह अपने बच्चे को दो जून की रोटी और पहनने को कपड़े दे सके. रोजगार की तलाश में पलायन की नौबत आ गई थी. तभी एक दूत उस तक पहुंचा और उसके सारे कष्ट हर दिए
.... और वह ईसाई हो गया.
सतना में मिशनरी कार्यकर्ताओं पर हमले के बाद सबकी निगाहें धर्मान्तरण की ओर गईं. सो हम भी पहुंचे माजरा समझने. काफी खोज बीन के बाद पता चला की ये मिशनरी कार्यकर्ता कुछ दिन पहले एक हरिजन बस्ती में गए थे . वहां के खालिस गरीबों को जाकर खाने पीने का सामान देते. फिर कपड़ो की व्यवस्था की. उनके लड़कों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया. धीरे - धीरे वे लड़के और उनका परिवार मिशनरियों के आश्रम आना शुरू कर दिया. बातो ही बातों में उन्हें अपनी प्रार्थना में भी शामिल करने लगे और एक दिन पाठ पढ़ाया कि देखों इस देवता को इसी के आदेश से हमें तुम्हारा पता चला और इसी की इच्छा थी कि तुम्हारी मदद हम करें. जब यह ईश्वर तुम्हारा इतना ख्याल रखता है तो तुम क्यों नहीं इसके अनुयायी बन जाते हो? बस फिर क्या था इन गरीबों को क्या चाहिये दो जून की रोटी व कपड़े फिर इनका भगवान कोई भी ... और फिर उसने ईसा का धर्म अपना लिया.
यह तो था मामला धर्मान्तरण का लेकिन इसके पीछे के तथ्य अभी भी विचारणीय है-
1. क्या वह गरीब न होता तो दूसरा धर्म अपनाता.
2. क्या उसके अपने धर्म व समाज वाले मदद नहीं कर सकते थे.
3. सरकारी योजनाएं(सतना में रोजगार गारंटी योजना चलरही है) होने के बाद भी पलायन की स्थिति क्यों बन रही है.
4. आज जो हिन्दू संगठन धर्म बदल लेने पर चिल्ला रहे हैं क्या उन्होंने पहले इस गरीब की ओर ध्यान दिया.
5. अपने व अपने परिवार को सुखमय जीवन जीने के अवसर प्रदान करने के लिये धर्म बदलना गुनाह है?
इसके अलावा भी कई प्रश्न हैं लेकिन उत्तर तो हम सबको ढूढ़ना पड़ेगा. नहीं तो हर दिन कोई अपना धर्म बदलेगा और इन स्थितियों में धर्म बदलना मेरी नजर में गुनाह नहीं है. क्योंकि मिशनरियों की तरह किसी भी हिन्दू संगठन में मदद का यह जज्बा नहीं है. हां यह जरूर है कि साल के किसी एक दिन किसी गरीब को कंबल या सेव फल बांट देते हैं ओर दूसरे दिन विज्ञप्तियों के माध्यम से हर अखबार में छप कर लोगों के सामने आ जाता है जिसे साल भर गाया जाता है. ..

5 comments:

संजय बेंगाणी said...

हिन्दू इतने विचारशील होते तो हजार साल की गुलामी क्यों भोगते?
किसी की मजबुरी का फायदा अपने लाभ के लिए उठाना भी कौन-सा धर्म है?

Arun Arora said...

भाइ अब तो यही महानता है,इसाई धर्म के सुबह के प्रवचन देखो,हसी आती है,हिंदू धर्म से ज्यादा कूप्मंडूकता की गहरी खाई मे ले जा रहे है ये लोग..?

अनुनाद सिंह said...

एक और प्रश्न ऐ जो सबसे बड़ा है - किसी की अर्थिक सहायता करने के लिये उसका धर्म-परिवर्तन कराना जरूरी क्यों है? ये धर्म है या धन्धा?

भारत में चर्च इनकारपोरेटेड भारत की गुलामी काल में अंगरेजों के साथ रहा। पाश्चात्य देशों में बड़े-बड़े और भव्य चर्चों में कोई मोमबत्ती जलाने वाला नहीं है और दूसरी ओर भारत में लालच, धोखा, पाखण्ड आदि के माध्यम से सीधे-साधे और भोले हिन्दुओं को इसाई बनाकर हिन्दुओं के विरुद्ध कड़े करने का षडयंत्र चलाया जा रहा है।

सम्यक चिन्तन के बाद स्वयं धर्म बदलने वालों की संख्या नहीं के बराबर होगी। अधिकांश लोग धर्म परिवर्तन नहीं करते बल्कि उन्हें धर्म परिवर्तन के अदृश्य जाल में फंसाया जाता है, उनको आसानी से न समझने योग्य 'ब्लैकमेलिंग' के दौर से गुजारा जाता है, उनको झूठे वादे और आश्वासन (चारा) दिये जाते हैं, हिन्दु धर्म की कपटपूर्ण और छुपे तौर पर निन्दा की जाती है, दूसरे हिन्दुओं के प्रति भड़काया जाता है और उन्हें 'हिप्नोटाइज' करके एक दिन उनके गले में क्रास डाल दिया जाता है। - हो गया धर्म परिवर्तन ! बन गया इसाई !

बात यहीं समाप्त नहीं होती। धीरे-धीरे उन्हे अलग त्यौहार मनाने की सलाह दी जाती है, अलग तरह के कपड़े पहने की सीख दी जाती है, चुनावों में किसी पार्टी विशेष को ही वोट देने की 'ह्विप' जारी की जाती है...
और अन्तत: उसकी जड़ें इस मिट्टी से पूर्णत: काट दी जातीं हैं!!

Anonymous said...

Hindu, Christian, ya koi aur Sabhi dharm paisa kamane ka ek sydicate hain .

Anonymous said...

Shaayad kai logo se ye anjaan ho lekin Gujarat/Maharashtra me ek prayog chal rahaa hai jisaki vajah se vahan dharmantaran ke saamane log khud aavaz uthate hai.

'Swadhyay' naam ka ek parivar (ya sanshtha) ganv ganv main fel raha hai jo har ganv me Agriculture, Fishing, Health ke prayog karata hai.

Agar gaanv ke log kheti karate hai to voh ek eisa khet nikalate hai jahan har koi mahine me ek baar aake kheti kare. Khet kamai ka 1/3 hissa gaanv ke aise logo main baant diya jaata hai jinako usaki jaroorat ho. Or ye kisi ko bataye bina hota hai taaki lene valo ko sharm na lage or samaaj main munh uthake rah sake.

Agar ganv main fishermen rahete hai to ek nuaka aisi banate hai jo ganv ki maaliki ki ho. mahine me thode din us nauka me fishing karenge or usaki kamai ka 1/3 hissa aise logo main baant diya jaata hai.

aise to or bhi prayog hai. aaj tak 10,000 ke karib kheti ke prayog hai or kuchh se Gova tak machimari ke prayog hai.

agar ye prayog pure bhaarat main feil gaya to maano ki dharmantaran hoga hi nahi.