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Wednesday, April 11, 2007

बहस अब इस पर हो

मोहल्ले में आरफा का लेख आने के बाद तमाम जगह बहस शुरू हो गई है. सभी का नजरिया अपनी जगह सही है. लेकिन मैं अब चाहता हूं कि बहस अब इन मुद्दों पर शुरु हो-
1. अल्पसंख्यक कौन हो, उसके निर्धारण की प्रक्रिया क्या हो, कितना प्रतिशत रखा जाये कि वह अल्पसंख्यक कहलाए?
2. आरक्षण का आधार क्या हो, आरक्षण की वर्तमान प्रक्रिया अब खत्म की जानी चाहिये या नहीं?

8 comments:

पंकज बेंगाणी said...

मै स्पष्ट रूप से कहना चाहुंगा, कि मै किसी बहुसंख्यक अल्पसंख्यक जैसे जूमलो पर यकीन नही रखता और ना ही समर्थन करता हुँ. सबको समान अधिकार होने चाहिए, चाहे वो हिन्दु हो, मुस्लीम हो, सिख, ईसाई, बोद्ध जो भी हो. सब समान हैं.


और मै आरक्षण का भी विरोधी हुँ. यहाँ पर भी सबको समान अधिकार होने चाहिए, जो योग्य हो उसे काम मिले और उच्च संस्थानो मे दाखिला भी मिले.

और सब कानुन भी समान होने चाहिए, कोई मुस्लीम पर्सनल लॉ और हिन्दु पर्सनल लॉ नही होना चाहिए.

रवि रतलामी said...

चिट्ठाजगत् में आपका स्वागत् है.

रंग, जाति और धर्म मनुष्यता में कड़वाहट ही घोलते आए हैं और घोलते रहेंगे. इन पर बहस कर अपना टाइम जाया करना तो है ही कड़वाहट को और बढ़ाना है. परंतु इसे ये न समझा जाए कि शुतुरमुर्ग की तरह मुंह छिपा रहे हैं. ये काम वोट बैंक की खातिर सरकारें बख़ूबी कर रही हैं. महात्मा गांधी ने जाति और धर्म विहीन भारतीय समाज की कल्पना की थी, सरकारों ने वोट की खातिर न सिर्फ उन्हें जिंदा रखा है बल्कि उस अग्नि में नियमित घी भी डाला है.

मसिजीवी said...

स्‍वागत है।
रविजी की बात में हमारी बात शामिल मानी जाए।

Anonymous said...

रवी जी की बात से सहमित हूं

ePandit said...

नए चिट्ठे हेतु शुभकामनाएं रमाशंकर जी।

ऊपर के सभी टिप्पणीकार साथियों की तरह हम भी तो यही चाहते हैं कि सबके लिए समान कानून हों। उदाहरण के लिए धारा ३७० समाप्त हो, एक से अधिक शादियाँ सब के लिए गैरकानूनी घोषित हों आदि।

Ramashankar said...

आप सबका धन्यवाद लेकिन मेरे जो २ मुद्दे हैं वो अभी तक अनुत्तरित ही हैं मतलब तो तब निकलेगा जब बात उन पर विस्तार से होगी

Anonymous said...

स्वागत है आपका! आते ही बहस का आवाहन करने लगे!

ravish kumar said...

आपके दोनों मुद्दों का जवाब दिया जाना चाहिए । आरक्षण का नया आधार तय करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए । इसका आकलन होना चाहिए कि कितने परिवारों तक इसका लाभ पहुंचा । इसका विरोध करें लेकिन यह भी देखना चाहिए कि इस सामाजिक नीति का कितना फायदा पहुंचा है ? जिन लोगों को हम आज अफसर कहते हैं वो कल पायदान के किस हिस्से में खड़े थे । आरक्षण से जो फायदा हुआ है उस पर भी गर्व करना चाहिए । सिर्फ यह कह देने से समाज जाति के नाम पर बंटा हुआ है या बांटा जा रहा है । यह पहले से थे । सिर्फ पचास साल में आरक्षण से कितने दलित जिनके पास दो गज जमीन नहीं थी जो सर उठा कर गुजर नहीं सकते थे आज बराबरी पर आ गए हैं । लेकिन रामा जी नए मानक तय करने में कोई मुश्किल नहीं । फिर से गिनती होनी चाहिए

अल्पसंख्यक के प्रतिशत तय किये जा सकते हैं । लेकिन संविधान निर्माताओं ने अल्पसंख्यक का दर्जा दिया वह यह सोच कर नहीं कि देश बंट जाएगा । बल्कि यह सोच कर कि इन्हें अधिकार से कोई वंचित न करें । और अरूण जी की तरह कोई यह न कहें हिंदू मुसलमानों को जीने दे रहे हैं । उनकी आबादी बढ़ रही है । अगर हिंदू कट्टर न होते तो मुस्लिम आबादी नहीं बढ़ती ।

हां बदलते समय के अनुसार नए तथ्यों और मानकों का इस्तमाल गैरवाजिब नहीं होगा

रवीश कुमार