आज खबर पढ़ी कि ग्रेग चेपल ने एक आस्ट्रेलियाई अखबार में अपने साक्षात्कार में कहा है कि भारत का मीडिया सिर्फ सनसनी के लिए काम करता है फिर उल्लेख किया भारत छोड़ने से पहले अपने इलाज के दौरान की खबरों का साथ ही भारतीय टीम की हार के बाद अपनी असुरक्षा की. एक और खबर - इरान के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी अमेरिका को पच नहीं रही और एक बार फिर परमाणु करार टूटने का खतरा. फिर एक और खबर शांति वार्ता के दौरान पाकिस्तानी अधिकारी टेबल छोड़ कर चल दिये वहीं एक और खबर अग्नि 3 की सफलता चीन को रास नहीं आई उसने कठोर रवैया अपनाया ...
आखिर हम क्या इतने गिरे हुए है कि हमारी हर गतिविधि पर जिसे जो चाहे बोलने लगे. नहीं लेकिन कभी -कभी लगता है हां क्योंकि न तो कभी हम इसका सही खंडन करते हैं और न ही प्रतिकार. हां अपनी झूठी शान के लिये यह गाहे बगाहे जरूर कह देते हैं कि विश्व को हम आई टी में लीड करते है.
अरे हम चाहे तो आई टी ही नहीं सभी में लीड कर सकते हैं, लेकिन पुरानी सोच और पैमाने से निकलना होगा.
आखिर क्यों हमारे देश की प्रतिभाएं यहां से पलायन करती हैं. सभी जानते हैं सरकारें बयानबाजी करती हैं घोषणाएं होती है. लेकिन जमीनी हकीकत जस की तस . जब तक यह नहीं सुधरेगा हम कमजोर ही रहेंगे और हर कोई हमें घुड़की देता रहेगा.
अभी एक घटना और याद आ गई विगत वर्षों हमारे द्वारा पैदा किया बंगलादेश ही हमारी सीमा पर हमारे बीएसएफ कर्मियों को मारकर उनके शव बुरे हालात में लौटाए. और हमने क्या किया - कुछ नहीं. संसद पर हमला होने के बाद सीमा पर सेना पहुंची क्या हुआ - कुछ नहीं . चीन का हमारी सीमाओं के पास तक कहीं कहीं सीमा के अन्दर तक सैन्य पोस्ट तैयार किया जाना - यहां भी बोलने के अलावा हम कुछ नहीं कर सके ... कितने कमजोर है हम , कितना कमजोर है हमारा हिन्दुस्तान फिर कहते हैं मेरा देश महान्
Saturday, April 14, 2007
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3 comments:
सही है.
रमाशंकर जी,
अब आपका चिट्ठा तो फ़ॉयरफ़ॉक्स में भी बढ़िया दिख रहा है. संभवतः आपने चिट्ठा टैम्प्लेट हिन्दी फ्रेंडली ले लिया है इसलिए.
साहब सलाम !
आपके चिठ्ठे का नाम पढ कर जनवादी
विचार धारा का भान होता है, पढाई के दिनो में
जनवादी ग्रुप से जुडने की मंशा के बावजूद
जुड नहीं पाया,
आशा है आपसे कुछ सिखने को मिलेगा
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