मैं नहीं जानता कि इसे पढ़ने वाले आस्तिक है या नास्तिक, किस धर्म को मानने वाले है. लेकिन यदि वे आस्तिक हैं तो किसी देवी देवता पर विश्वास तो करते होंगे. किसी धर्म को मानते हैं तो उसपर आस्था भी होगी. आज जब पूरे विश्व को एक गांव बनाने की सोच जारी है ऐसे में मैं नहीं सोचता कि कोई एक किसी दूसरे की आस्था पर चोट करेगा. सहमत और असहमत होना एक अलग चीज है लेकिन यह नहीं कि हम किसी एक धर्म पर आस्था रखते हैं तो दूसरे धर्म को बुरा कहें. यहां मैं किसी को यह नहीं कहना चाह रहा कि तुमने ऐसा करके गलत किया है लेकिन मेरा निवेदन सभी से है कि किसी की आस्था पर चोट पहुंचा कर आप सच्चाई उजागर नहीं कर सकते. रही बात कमियों की तो वह सबमें कुछ न कुछ है. रही बात रीति रिवाजों की , कर्मकांडों की , प्रथाओं की तो उस धर्म की समाज को चलाने की एक व्यवस्था थी जिसे यह रूप दे दिया गया. हालांकि यह मेरा नजरिया है और जरूरी नहीं सभी इससे सहमत हों. पहले आज की तरह नियम-कानूनऔर शासन प्रणाली नहीं थी. ऐसे में समाज को सही राह दिखाने के लिये धर्म का सहारा लिया गया. धर्म भीरू जनता को बताया गया कि ऐसा करो नहीं तो ऐसा हो जाएगा. गलत काम मत करो वरना देवता - ईश्वर का कहर टूटेगा. जो आगे चलकर एक धर्म व उसके रीति रिवाज व मान्यताओं का रूप लिये. निश्चित तौर पर इनमें भी कोई कमियां रहीं होगी. रही बात किसी धर्म के सहिष्णु होने की तो यदि वह सहिष्णु नहीं होगा तो धर्म ही नहीं होगा. किसी एक व्यक्ति की सोच या खोज से मान्यताएं व विचारधारा नहीं बदल सकती. फिर देवताओं के हथियार रखने की बात जहां तक है तो देवता अच्छाई के प्रतीक है और बुराई के संहार के लिये हथियार रखने पड़े. एक अन्य धर्म में कर्बला में लड़ाई लड़ी गई . वहां भी निश्चित तौर पर हथियार रहे होंगे. सुरापान की बात करे तो होली ऑफ ग्रेल में क्या पिया गया था. रही बात वेश्यागामी होने की तो मेरे समझ में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि देवता वेश्यागामी थे . हां जितना मैने पढ़ा है यह जरूर कि दरबार में नृत्य की महफिल सजती थी अब इसे वेश्यागमन माने तो मैं कुछ नहीं कहूंगा. हां रोमन देवताओं के बारे में कुछ तथ्य जरूर हैं लेकिन वे भी प्रासंगिक है. दूसरा यदि यह सारी बातें सही भी मान ले कि “ये सहिष्णुता का धर्म नहीं है। इस धर्म के तमाम देवता हथियारों से लैस हैं, वेश्यागामी हैं और शराबी तो हैं ही“ तो इस धर्म में यह व्यवस्था भी है कि हर देवता के अपने - अपने उपासक है. तांत्रिक जो श्मसान पूजा करते हैं उनके देव अलग है तो प्रेमियों के कान्हा है तो आदर्श पुरुष देवतुल्य राम के उपासक अलग है. फिर इसी धर्म में ही यह व्यस्था है कि जीवन जीने की कला को चार आश्रमों में बांटा गया और सबमें एक स्पष्ट विभाजक रेखा है किसी को किसी से जोड़ा नहीं गया. अर्थात जीवन के पड़ाव को आश्रम से जोड़ कर उनके कृत्य निर्धारित कर दिए गए. निश्चित तौर पर इसमें भी कमियां हो सकती है. लेकिन जहां उपासना की इतनी छूट है इतने तरीके हैं साथ ही इसी धर्म में ही जैन , बौद्ध जो चीन से जापान तक पताका फहरा रहा है और भी न जाने कितने हैं, कितनी जातियां हैं जो इसमें समाहित है. नदियों को , पशुओं को (किसी की नजर में ) इसमें माता की हैसियत दी गई हो वह धर्म कैसे सहिष्णु नहीं हो सकता . यह तो मेरी अपनी आस्था है . और मैं मानता हूं यह धर्म सहिष्णु है. यह भी हो सकता है किसी को इसके नियम कायदे या कुछ न भाए तो मैं नहीं कहता कि वह इसे स्वीकारे लेकिन मैं यह भी नहीं चाहूंगा कि कमियों के नाम पर कोई किसी की आस्था को चोट करे न ही मैं किसी अन्य की आस्था को चोट पहुंचाना अच्छा समझता , इसलिये मुझ अल्पज्ञानी का निवेदन है कि दोबारा ऐसा न करें. धर्म और जाति की बहस सिर्फ विवाद को जन्म देती है. रही बात मुद्दों की तो इस जहां में और भी है. मैने पूरी कोशिश की है किसी को बुरा न लगे बावजूद यदि कुछ गलत लगा हो तो निवेदन है वो इसे अन्यथा न ले और मुझे कहे . मैं निश्चित तौर पर उसे हटा दूंगा.
Friday, April 20, 2007
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