विगत दिवस सतना जिले के पहाड़ी इलाके में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक मरीज की मौत हो गई. इससे आक्रोशित स्थानीय निवासियों ने चिकित्सालय में तोड़फोड़ की, काफी उत्पात मचाया. पुलिस भी पहुंची. समझाइश भी दी और कुछ के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ.
ये था घटनाक्रम . वहां जाने के बाद जब घटना की हकीकत पर पहुंचे तो पता चला यहां पदस्थ चिकित्सक के इलाज के दौरान कई मरीज असमय काल के गाल में समा चुके हैं. हालांकि चिकित्सक में कोई खोट नहीं है. बाकायदा एमबीबीएस है लेकिन मरीज तो मर ही रहे है.
घटना के दूसरे दिन भी वहां गया. कुछ लोगों ने बताया कि डाक्टर साहब पड़ोस के गांव के ही हैं. ज्यादा दूर न होने पर हम चल दिये. अपने घर में डॉक्टर साहब मिल गए . बिल्कुल डरे सहमे. तमाम दलीलें फिर क्षेत्र में अशिक्षा, फिर क्षेत्र के बाहुबली नेता आदि पर चर्चा होती रही. बात -बात में उनकी शिक्षा पर भी बात होने लगी तब जाकर पता चला कि वे आरक्षित कोटे से चयनित हुए थे . प्रतिशत की बात छोड़िये हुजूर वे तो अंकों के आधार पर आरक्षण के पायदान पर चढ़ कर डाक्टर बन कर नौकरी कर रहे है.
वहां से लौट कर दो घटनाएं जेहन में दौड़ गई -
विगत वर्ष रीवा से 83 प्रतिशत पाने वाले सामान्य कोटे के छात्र का पीएमटी में चयन नहीं हुआ था वहीं महज कुछ अंक (याद नहीं है) पाकर आरक्षित कोटे का छात्र चयनित हो गया.
अब आप सहज ही समझ लीजिए कि इन चिकित्सकों के हाथों में मरीज का भविष्य क्या होगा. वहीं आज फिर उच्च शिक्षण संस्थाओं में एक बार फिर बहस गर्म है. लेकिन नीति नियंताओं को कौन बताए कि इन डाक्टरों का इलाज तो आकर देखें या लगातार 6 महीने खुद अपना इलाज इनसे करा लें और आरक्षण लागू कर दें.
वहीं एक सवाल यह भी है कि आखिर उस 83 फीसदी वाले छात्र का दोष क्या था? यदि उसका कोई दोष नहीं है तो फिर किसी पिछड़े वर्ग को आगे लाना है तो उसे सुविधाएँ देनी चाहिए न कि आरक्षण...
ये था घटनाक्रम . वहां जाने के बाद जब घटना की हकीकत पर पहुंचे तो पता चला यहां पदस्थ चिकित्सक के इलाज के दौरान कई मरीज असमय काल के गाल में समा चुके हैं. हालांकि चिकित्सक में कोई खोट नहीं है. बाकायदा एमबीबीएस है लेकिन मरीज तो मर ही रहे है.
घटना के दूसरे दिन भी वहां गया. कुछ लोगों ने बताया कि डाक्टर साहब पड़ोस के गांव के ही हैं. ज्यादा दूर न होने पर हम चल दिये. अपने घर में डॉक्टर साहब मिल गए . बिल्कुल डरे सहमे. तमाम दलीलें फिर क्षेत्र में अशिक्षा, फिर क्षेत्र के बाहुबली नेता आदि पर चर्चा होती रही. बात -बात में उनकी शिक्षा पर भी बात होने लगी तब जाकर पता चला कि वे आरक्षित कोटे से चयनित हुए थे . प्रतिशत की बात छोड़िये हुजूर वे तो अंकों के आधार पर आरक्षण के पायदान पर चढ़ कर डाक्टर बन कर नौकरी कर रहे है.
वहां से लौट कर दो घटनाएं जेहन में दौड़ गई -
विगत वर्ष रीवा से 83 प्रतिशत पाने वाले सामान्य कोटे के छात्र का पीएमटी में चयन नहीं हुआ था वहीं महज कुछ अंक (याद नहीं है) पाकर आरक्षित कोटे का छात्र चयनित हो गया.
अब आप सहज ही समझ लीजिए कि इन चिकित्सकों के हाथों में मरीज का भविष्य क्या होगा. वहीं आज फिर उच्च शिक्षण संस्थाओं में एक बार फिर बहस गर्म है. लेकिन नीति नियंताओं को कौन बताए कि इन डाक्टरों का इलाज तो आकर देखें या लगातार 6 महीने खुद अपना इलाज इनसे करा लें और आरक्षण लागू कर दें.
वहीं एक सवाल यह भी है कि आखिर उस 83 फीसदी वाले छात्र का दोष क्या था? यदि उसका कोई दोष नहीं है तो फिर किसी पिछड़े वर्ग को आगे लाना है तो उसे सुविधाएँ देनी चाहिए न कि आरक्षण...
4 comments:
यदि मैं आपका समर्थन कर दूँ, तो लोग मुझे दलितों के नाम से गरियाएँगे, इसलिए नो कमेंट्स।
वैसे आपकी बातों में दम है।
भैया मेरे अब मै क्या बॊलू ,हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है हम तो चुप ही रहेगा
83% ! i know someone whose aggregate including hindi and english was more than 91%.maths 99, bio 98, chem 97,physics 94 or 95.but no domicile, no quota.well, as i say,does not matter. such ppl wld do well whatever they do. even if they work at a call centre!
we deserve our policies.so let the ppl die!ppl includes me too. we have voted such ppl to power.we deserve them and our doctors!
ghughutibasuti
अब भईया ऐसे लोग देश को कहाँ ले जाएंगे समझा जा सकता है।
अर्जुन सिंह जी सुन रहे हैं न।
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