
यह खबर महज खबर नहीं है बल्कि मेरे नजरिये से यह भारत की अस्मिता पर एक वैचारिक हमला है. आखिर भारत संपूर्ण प्रमुत्व सम्पन्न स्वतंत्र राष्ट्र है. इसके अनुसार हम अपना फैसला स्वयं लेते है. फिर आखिर भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल को फांसी की सजा पर ब्रिटेन की संसद का क्या काम. वहीं ब्रिटेन के 4 सांसद अफजल के प्रति दयालु रवैया अपनाने की बात करते हैं. आखिर ये दोगली नीति भारत के ही साथ क्यों. जब सद्दाम का मामला आया तब दयालु रवैया क्यों नही दिखा, अमेरिका में 11 सितंबर के बाद दयालु रवैया क्यों नहीं दिखा ... तब ये सांसद अंधे और बहरे थे क्या ...
लेकिन यह उनका नहीं हमारा ही दोष है जो हमने सबको कुछ भी कहने की छूट दे रखी है... अब वक्त है कि हम भी दूसरों के मामलों में बोले तब लोगों को शायद समझ में आए ...
इसके अलावा भारत में ही खुद अफजल के खैरख्वाह काफी है. मेरे नजरिये में तो इन्हें भी सजा सुना देनी चाहिये . क्योंकि अपराधी को शरण देने वाला व उसको बचाने की कोशिश करने वाला मेरी नजर में स्वयं एक अपराधी है.
यहां अफजल को फांसी न देने की वकालत करने वाले कश्मीर के गुलाम नबी आजाद, महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला कर रहे हैं . क्यों ? क्योंकि इन्हे न तो अफजल से मतलब है, न भारत की अष्मिता से, न संसद की गरिमा से, न आतंकवाद और न ही देश की सुरक्षा से. ये अपना भला और वोट के मोहताज है.
यही वे लोग हैं जो अब कश्मीर से सेना की वापसी चाहते है. अब तो इन्हें नेता कहने में शर्म आती है. ये नेता नहीं मौत व वोटों के सौदागर हैं. ये यह भी भूल जाते है कि आतंकवादी जब निर्दोष लोगों का खून बहा रहे हैं तब सेना ही इन्हें रोक रही है. अब भला सेना हटाकर ये किसका भला चाह रहे हैं आम जनता का या आतंकवादियों का. ऐसे में धन्य है प्रधानमंत्री जी जो सत्ता की लालच में इन्हे तव्वजों दे रहे हैं.
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इन्हे और इन जैसे लोगों के हाथों में देश की कमान है.
जब तक इनका स्वहित रहेगा तब तक स्वाधीन देश में भी हम स्वाधीन नहीं हैं. क्योंकि देश का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद के हमलावर को बचाने की कोशिश यह बताती है कि देश से बड़ा है अफजल.
5 comments:
ये सारी हरकत होती है उस "नपुंसक" जीन्स के कारण जो आजादी के समय से ही भारत के शरीर और आत्मा में घुसा हुआ है.."यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो" और अब गाल आगे करते करते न तो थोबडा बचा ना ही इज्जत और गाल के बजाय अब वे गला माँगने पर उतारू हो गये हैं और हम सिर्फ़ गाल ही बजाते रह जायेंगे..कुछ करने के लिये चाहिये होता है पुरुषार्थ..जो कि हमें "संयोगवश" मिली आजादी के कारण कहीं खो गया है..
सच कहा आपने, किसी को अधिकार नहीं हमारे देश के मामले में टांग अड़ाने का, पर जब अपने ही सिक्के खोटे हों ( गुलाम नबी आजाद, महबूबा मुफ्ती आदि) तो किसी को क्या दोष दें हम?
सुरेश जी की टिप्पणी जबरदस्त रही।
सही कहा, बेच खाया है इन नेताओं ने देश को, अफजल से पहले इन्हें फांसी दी जानी चाहिए। सुरेश भाई एकदम सही कहते हैं हम हद से ज्यादा सहनशील हो गए हैं जिसे नपुंसकता कहना अधिक ठीक होगा, जो भी आता है हम पर मूत कर चला जाता है ऐसा क्यों है सिर्फ इसलिए कि भारत ने खुद ही अपनी इमेज गिरा ली है। जरुरत है कि इस प्रकार के देश विरोधी तत्वों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए ताकि आगे से किसी में ऐसा करने की हिम्मत न हो और न ही उनकी देखा देखी इन विदेशियों में।
रमाशंकर, बहुत सही बात कही। भारत छोड़कर चले गये लेकिन अभी भी अपनी चलानी की आदत नही गयी देखना है अपने रीढ़ विहीन नेता जवाब में ईराक के बारे में इन मानवाधिकार के रहनुमाओं से सवाल करते हैं कि नही। बहुत सही बात करी है वाकई में दोगले हैं
गड्ड-मड्ड मत करिये. पहले अफजलियों से निपटिये. फिरंगी तो तब निपट पायेंगे जब देश आर्थिक तौर पर मजबूत कर लेंगे.
Post a Comment