भारत में महिला प्रशासनिक अधिकारियों में इस बात को लेकर रोष है कि उनसे मासिक-धर्म संबंधी जानकारी देने के लिए कहा जा रहा है.
बीबीसी में यह लेख पढ़ते ही काफी कुछ सोचने को मजबूर हो गया. आखिर यह हो क्या रहा है? कामकाज का वार्षिक आकलन और उनकी स्वास्थ्य जाँच के नाम पर किसी की निजता भंग करने का यह कौन सा खेल है. क्या इससे पहले उनका कामकाज बेहतर नहीं होता है जो मासिक धर्म जैसी जानकारी देने के बाद कामकाज में तेजी आ जाएगी. यह तो किसी महिला के मानवाधिकारों का सीधा हनन है. वैसे गाहे बगाहे जागने वाले महिला आयोग को अब तक यह क्यों नहीं दिखा यह भी समझ से परे है.
Thursday, April 12, 2007
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3 comments:
ये तो वाहियात बात है!
अच्छा!!
शायद यही पुछना बाकि था, सो पुछ लिया.
हद कर दी, भाई.
यकीन नहीं आता कि एक सभ्य लोकतांत्रिक समाज में भी ऐसा काम हो सकता है
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